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कोरोना महामारी के बीच चैनल, सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने की बीमारी

कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट बना हथियार

शुमा राहा
नजरिया
Published:
सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने की बीमारी
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सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने की बीमारी
(फोटो- Kamran Akhter/The Quint)

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टीवी पर बनावटी आक्रोश दिखाने के लिए मशहूर अर्णब गोस्वामी के मानक से भी उनका वो शो बेहद हैरान करने वाला था. इस हफ्ते रिपब्लिक टीवी के स्टार एंकर, जिन्होंने स्टूडियो में मेहमानों पर चिल्लाने को अपनी पत्रकारिता की अनूठी पहचान बना ली है. कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ तबलीगी जमात की वजह से कोविड-19 का संक्रमण बढ़ने पर बातचीत कर रहे थे.

लेकिन मैं यहां ‘बातचीत’ शब्द का इस्तेमाल हल्के तौर पर कर रही हूं. जब अर्णब गोस्वामी प्राइम टाइम डिबेट करते हैं तो सभ्य तरीके से बातचीत तो हो ही नहीं सकती. और उस रात तो उन्होंने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया.

आवाज कम!’ अचानक वो गरजे. जिस शख्स की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने दहाड़कर अपना फरमान जारी किया था वो दरअसल बहुत धीमी आवाज में अपनी बात कहने की कोशिश कर रहा था. लेकिन गोस्वामी ने इस पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया. बंदूक के धमाके जैसी अपनी आवाज से और उत्साहित होते हुए, वो लगातार चीखते रहे ‘आवाज कम!’, अपना मुक्का हवा में जोर-जोर से हिलाते रहे. और कहीं किसी को अगर गलतफहमी रह गई हो कि इन लोगों को बलपूर्वक चुप कराना क्यों जरूरी हो गया था, उन्होंने आगे कहा, ‘देश भर में हाहाकार फैलाकर रखा है आप लोगों ने.

  • तबलीगी जमात की बैठक से भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण पर खौफनाक असर पड़ा है
  • लेकिन इस भयावह चूक की रिपोर्टिंग करते हुए मीडिया सिर्फ एक बात पर फोकस कर रही है- वो है रूढ़िवादी इस्लामिक संगठन के खिलाफ प्रोपेगेंडा छेड़ना.
  • इस शोर में जल्द सोशल मीडिया भी शामिल हो गया और कई दिनों से #CoronaJihad और #JamaatiVirus ट्रेंड कर रहा है.
  • इससे पहले कभी आपसी कलह और भेदभाव बढ़ाने की कोशिशों से इससे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ.

कोविड-19 इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सांप्रदायिक प्रोपेगेंडा का बहाना है

इसमें कोई दो राय नहीं कि तबलीगी जमात के कार्यक्रम से विनाशकारी तौर पर कोरोना वायरस का संक्रमण पूरे भारत में फैल गया. देश में कोविड-19 के अब तक सामने आए मामलों में से 30 फीसदी मामले तबलीगी जमात की वजह से फैले, जिसमें तेलंगाना में हुई कई मौत और कश्मीर में हुई एक मौत भी शामिल है.

भीड़ इकट्ठा करने के खिलाफ सरकार के स्पष्ट परामर्श के बावजूद 3000 से ज्यादा लोगों की धार्मिक बैठक बुलाना, जिसमें ज्यादातर लोग उन देशों से आ रहे हों जो पहले से कोरोना की चपेट में हो, लापरवाही का बेहद डरावना प्रदर्शन है. दिल्ली पुलिस और राज्य सरकार ने इस कार्यक्रम की इजाजत देकर इससे भी बड़ी लापरवाही की और उन्हें भी इसकी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी.

लेकिन जमात और सरकारी अधिकारियों की इस खौफनाक चूक की रिपोर्टिंग करने में मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सिर्फ एक ही बात पर आमादा दिखती है- रुढ़िवादी इस्लामिक संगठन के खिलाफ प्रोपेगेंडा छेड़ना.

चाहे वो रिपब्ल्कि टीवी हो या ABP न्यूज या टाइम्स नाऊ या आज तक या फिर दूसरे हिंदी न्यूज चैनल, हर कोई जमात और उसके सदस्यों के खिलाफ भड़काऊ अपशब्दों की भरमार लगा चुका है, उनकी हरकत को देश के खिलाफ साजिश बता रहा है, उनके खिलाफ लोगों का आक्रोश बढ़ा रहा है और नतीजा ये हुआ कि लोक स्वास्थ्य से जुड़ी इतनी बड़ी गड़बड़ी को इस्लामिफोबिया बढ़ाने के मौके में तब्दील कर दिया गया है.

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कोविड-19 संक्रमण पर रिपोर्ट की भाषा क्या है

हमेशा की तरह गोस्वामी, जिनका शो सरकार के लिए समर्थन जुटाने और आलोचकों के खिलाफ नफरत फैलाने का एक जरिया भी है, ने जहरीले आरोपों से इसकी शुरुआत की. ‘उन लोगों ने हम सबकी जिंदगी खतरे में डाल दी है, हम बस जीतने ही वाले थे जब उन्होंने वो सब कर दिया जिससे हमारी हार हो जाए,’ गोस्वामी चीख रहे थे. ‘भारत के खिलाफ इस साजिश को हमें हर हाल में हराना होगा.’

बाकी चैनल भी पीछे नहीं रहे. ‘आदेशों की धज्जियां उड़ाई, सोशल डिस्टेंसिंग का मजाक बना दिया,’ आज तक की अंजना ओम कश्यप ने ऐलान किया. ‘मरकज ने मामला बिगाड़ दिया.’ वो चीखती हुई बोलीं.

जबकि ABP न्यूज की रुबिका लियाकत लगातार जमातियों के खिलाफ क्रोध भरा अपना अलंकार दोहराती रहीं, टाइम्स नाऊ की हेडलाइन्स में लिखा था, ‘अब आपे से बाहर हुए तबलीगी.’ चैनल की एंकर नाविका कुमार चीख रहीं थीं, ‘उन्होंने हमारे कोविड योद्धाओं को निशाना बनाया है, ये लोग वो सब भयानक हरकत कर रहे हैं जिसकी हम और आप कल्पना तक नहीं कर सकते... कैसे उपद्रवी लोग हैं ये सब.’

सोशल मीडिया कैसे पीछे रह सकता था

सोशल मीडिया भी इस शोर में शामिल हो गया, हैशटैग #कोरोनाजेहाद और #जमातवायरस कई दिनों से ट्रेंड कर रहे हैं. अनाप-शनाप आरोप, जैसे कि क्वॉरंटीन में रखे गए जमात के सदस्य नर्सों का शारीरिक शोषण कर रहे हैं, हेल्थ वर्कर्स के साथ बदसलूकी कर रहे हैं और उन पर थूक रहे हैं, ट्वीट और रीट्वीट किए जा रहे हैं. इस तरह की झूठी खबरें वीडियो शेयर करने वाले प्लेटफॉर्म टिकटॉक पर भी खूब देखी जा रही हैं.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में कई टिकटॉक वीडियो दिखाए गए जिसमें मुसलमानों को बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस का उन पर कोई असर नहीं होता और वो जैसे चाहे वैसे रह सकते हैं.

कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे खतरनाक वीडियो कई ऐसे हिंदुओं को भड़काने का काम करते हैं, जो कि ये मानने को तैयार बैठे हैं कि एक मुस्लिम संगठन ने कोरोना के खिलाफ भारत की जंग को कमजोर कर दिया है.

इसमें कई पुराने वीडियो भी शामिल हैं जिससे ये छवि बनाई जा रही है कि मुसलमान जानबूझकर खांस और छींक रहे हैं ताकि इससे भारत के ज्यादा से ज्यादा लोग संक्रमित हो जाएं. द क्विंट के वेबकूफ सेक्शन में ऐसे वीडियो की असलियत पर कई सारी फैक्ट-चेकिंग रिपोर्ट मौजूद हैं.

तबलीगी जमात पर लौटें तो इस पर कोई विवाद नहीं है कि जो उन्होंने किया वो माफी के काबिल नहीं है. जमात की बैठक बुलाना बिलकुल एक आपराधिक लापरवाही थी, क्योंकि वहां से बड़ी तादाद में देश भर में निकले लोग कई लोगों को संक्रमित कर चुके हैं, जिससे देश में कोविड-19 के मामलों में अचानक तेजी आ गई. इसमें कोई शक नहीं कि इस लापरवाही और मूर्खतापूर्ण हरकत के लिए कानून तबलीगी नेताओं को कसूरवार ठहराए.

कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट बना हथियार

बेशक मीडिया के पास इन तथ्यों को रिपोर्ट करने का अधिकार है और इसे ऐसा करना भी चाहिए. लेकिन एक बात और है. इसे ये तथ्य भी उजागर करना चाहिए कि देश के कई बड़े धार्मिक स्थल, जहां रोज हजारों श्रद्धालू पहुंचते हैं, उस समय खुले थे जब दिल्ली में जमात का कार्यक्रम चल रहा था. और लोगों पर थूकने वाले वीडियो दिखाने से पहले उसकी सत्यता निर्धारित करनी चाहिए और बताना चाहिए कि कोविड–19 के संक्रमण की शुरुआत होते ही पूरी दुनिया में इस तरह के वीडियो सामने आ रहे हैं. ये बेहद घिनौनी हरकत है, क्योंकि ऐसे थूकने से दूसरा व्यक्ति जानलेवा वायरस से संक्रमित हो सकता है, लेकिन ये सिर्फ भारत में खास तरह के लोग ही नहीं कर रहे हैं.

हालांकि आज जिस तरह पत्रकारिता हो रही है उसमें तथ्यों को बार-बार किसी ना किसी एजेंडा के तहत हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है और चुनिंदा तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. कोरोना वायरस को लेकर तबलीगी जमात पर की जाने वाली रिपोर्ट कोई अपवाद नहीं है.

टीवी चैनलों पर रोज रात तबलीग के खिलाफ आक्रोश व्यक्त करना ना सिर्फ उनके विरोध में बल्कि मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भी माहौल खड़ा करने का एक संगठित प्रयास है. ये कोरोना के खिलाफ जंग को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश है, पिछले दिनों मुसलमानों के खिलाफ बनी नफरत को और तेज करने का प्रयास है. हमें ये भूलना नहीं चाहिए कि अभी एक महीना से कुछ दिनों पहले ही उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भीड़ के खौफनाक हमले में कई मुसलमानों की जान चली गई और उससे भी ज्यादा बेघर हो गए.

शुक्रवार को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की कि कोरोना वायरस के खिलाफ इस लड़ाई को सांप्रदायिक ना बनाएं. शायद उन्हें मीडिया के सदस्यों से भी ये अपील करनी चाहिए थी, क्योंकि इनमें से कई सरकार की आवाज बनकर काम करते हैं.

कोरोना वायरस का खतरा किसी भी समुदाय से कहीं बड़ा है- चाहे उस समुदाय के लोगों की तादाद कितनी भी हो. इससे लड़ने के लिए, हर किसी को आगे आना होगा. अंदरूनी कलह और भेदभाव बढ़ाने से पहले से कहीं ज्यादा नुकसान होगा.

(लेखिका शुमा राहा दिल्ली की वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका हैं. ट्विटर पर @ShumaRaha पर उनसे संपर्क किया जा सकता है. आलेख में दिए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं. क्विंट का इसमें सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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