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ऑनलाइन एजुकेशन ने न सिर्फ छात्रों बल्कि शिक्षकों की जिंदगी में भी डिजिटल विभाजन पैदा कर दिया है. इस असमानता का खामियाजा सरकारी स्कूलों और किफायती निजी स्कूलों के शिक्षक कई कारणों से भुगतते हैं. ट्रेनिंग से लेकर आधारभूत ढांचे तक में ये सहयोग करते हैं और इस वजह से महंगे स्कूलों में ऑनलाइन एजुकेशन दे रहे अपने साथियों की तुलना में पिछड़ जाते हैं. Teachers day पर इन स्कूलों के शिक्षकों के बारे में खास तौर पर बात करना जरूरी लग रहा है.
छात्रों की पढ़ाई पर इसका असर पड़ता है और यह आगे भारत में शैक्षिक असमानता को बढ़ावा देता है.
ऑनलाइन एजुकेशन की अच्छाई और बुराई के बारे में बातचीत करते समय जब हम कम आय वर्ग के लोगों को पढ़ा रहे शिक्षकों के सामने पेश आ रही दिक्कतों पर ध्यान देते हैं तो अक्सर पूरी चर्चा छात्रों में असमानता पर केंद्रित हो जाती है.
यहां तक कि जब कम आमदनी वाले शिक्षकों और सरकारी स्कूलों के समक्ष परेशानियों की ओर ध्यान खींचा जाता है तो बहस इन्फ्रास्ट्रक्चर या तकनीक जैसे मुद्दों पर सिमट जाती है और इस असमानता के पीछे व्यवस्थागत मुद्दे नजरअंदाज हो जाते हैं.
सरकारी और किफायती निजी स्कूलों में एक शिक्षक को अंतहीन बाधाओं का सामना करना पड़ता है. बगैर किसी पूर्व प्रशिक्षण के ऑनलाइन क्लास कराने के लिए ये शिक्षक उपकरण जुटाने से लेकर प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने तक वह सबकुछ सीखते हैं जिससे बच्चों को संतुष्ट किया जा सके. इस दौरान शिक्षक कई तरह की बाधाओं का सामना करते हैं.
यहां तक कि शिक्षकों की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा में प्री-सर्विस टीचर ट्रेनिंग पाठ्यक्रम में भी ‘डिजिटल टीचर ट्रेनिंग’ और ‘टेक्नॉलॉजी’ जैसे शब्दों का कहीं कोई जिक्र नहीं है.
बेहतर पढ़ाने के लिए तकनीक को कैसे महत्व दिया जाए, इसके लिए बुनियादी बातें अगर बतायीं गयीं होतीं और प्रोत्साहन देने का नजरिया रखा गया होता, तो आज महामारी के समय छात्रों को पढ़ाने की तैयारी के ख्याल से शिक्षक बेहतर स्थिति में होते.
अगर कुछ शिक्षकों के पास ये उपकरण हैं भी, तो उनके लिए चुनौती यह है कि वे किसी अध्याय को कैसे तैयार करें ताकि उसे वॉट्सऐप में शेयर किया जा सके या वीडियो क्लास के लिए प्रजेन्टेशन के तौर पर प्रस्तुत किया जा सके.
वॉट्सऐप और ऑनलाइन आधारित अध्ययन के लिए बिल्कुल ही अलग शिक्षा-विज्ञान है जिसके लिए शिक्षक प्रशिक्षित नहीं हैं और उसके प्रभावों को भी अब तक पूरी तरह जांचा नहीं गया है. और, इस तरह उन्हें इसमें धकेलना और नतीजों की उम्मीद करना अन्यायपूर्ण और परेशान करने वाला है.
स्कूलों को फंड की जरूरत है ताकि शिक्षकों के लिए तकनीकी उपकरण जुटाए जा सकें जिससे वे अध्याय, वर्कशीट तैयार करें और उन्हें छात्रों में साझा करें.
सेंट्रल स्क्वॉयर फाउंडेशन ने हाल में एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि “निजी स्कूलों के 20 फीसदी से भी कम शिक्षकों को मार्च के बाद से वेतन मिलना जारी है.”
अभिभावक स्कूल फीस देने को लेकर भरपूर प्रतिरोध जताते रहे हैं क्योंकि वे ऑनलाइन एजुकेशन के प्रभाव को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. यह समस्या परस्पर विरोधी पाटों में फंसी हुई है- प्रभावी शिक्षा के लिए आधारभूत संरचना को मजबूत करना जरूरी है और अभिभावकों के फंड को रोके रखने का कारण भी मुख्य तौर पर प्रभावी शिक्षा संबंधी शिकायत है.
ठीक इसी तरह सरकारी और निजी स्कूलों के क्रमश: केवल 22.7 फीसदी और 40 फीसदी छात्र सही तरीके से भाग दे सकते हैं.
अगर शिक्षकों को तकनीकी उपकरण और उचित प्रशिक्षण नहीं मिलता है तो वो किस तरह से ऑनलाइन क्लास संचालित करें. इससे खाई कई गुणा चौड़ी हो जाएगी और संबंधित अथॉरिटी ही इस संकट के लिए जिम्मेदार माने जाएंगे.
सरकारी और किफायती निजी स्कूलों के शिक्षक अपनी नौकरी में कई तरह की बाधाओं का सामना करने को मजबूर हैं और अब महामारी ने उनके लिए स्थिति को और भी जटिल बना दिया है.
देश के शिक्षकों के साथ सहानुभूति रखने, जिन चुनौतियों से वे जूझ रहे हैं उन्हें समझने और उनकी मदद करने की आवश्यकता है ताकि वे करोड़ों छात्रों की मदद कर सकें.
हर हफ्ते वर्कशीट साझा करने जैसे दिल्ली सरकार के मॉडल की तरह अतिरिक्त सक्रियता वाले रुख से सीख लेकर तौर-तरीके अपनाए जा सकते हैं. शिक्षा विभाग निजी स्कूलों के साथ-साथ सरकारी स्कूलों के छात्रों के साथ वर्कशीट शेयर करना शुरू कर सकता है.
आत्मनिर्भर योजना के तहत वर्तमान सरकार को चाहिए कि वह कम आय वाले उन निजी स्कूलों के लिए ब्याज मुक्त लोन दे जहां फीस 25 हजार सालाना से कम है और रकम लौटाने के लिए मॉरेटोरियम का विस्तार भी करे.
आखिर में जैसा कि बिल गेट्स ने कहा है, “तकनीक महज उपकरण है. बच्चों को एक साथ काम करने और उन्हें प्रेरित करने के लिए शिक्षक ही सबसे महत्वपूर्ण हैं.”
सरकारी या किफायती निजी स्कूलों में 90 फीसदी से ज्यादा बच्चे हैं. महामारी के दौरान इन स्कूलों में बच्चों की मदद करने के लिए शिक्षकों का अधिक से अधिक सहयोग सरकार को करना होगा.
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