मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019The Kerala Story: क्या एक ही नफरती बात बार-बार कहने से सच हो जाएगी?

The Kerala Story: क्या एक ही नफरती बात बार-बार कहने से सच हो जाएगी?

संयोग से, केरल देश के उन गिने-चुने राज्यों में से एक है, जिसने दक्षिणपंथी धार्मिक भावनाओं को खारिज कर दिया है.

मीनाक्षी शशि कुमार
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>द केरला स्टोरी: क्या एक ही बात बार-बार से वो सच हो जाएगी?</p></div>
i

द केरला स्टोरी: क्या एक ही बात बार-बार से वो सच हो जाएगी?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

कुछ दिनों पहले, जब मैंने 'द केरला स्टोरी' के डायरेक्टर, सुदीप्तो सेन को उनकी फिल्म द्वारा किए गए एक कुख्यात दावे - कि केरल से 32,000 महिलाओं का अपहरण किया गया और ISIS को बेच दिया गया को लेकर फोन किया, तो उन्होंने मुझसे कहा कि मेरा सवाल "घिसा-पिटा था.

फिर उन्होंने मुझे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले फिल्म देखने को कहा. तो, मैंने ठीक यही किया, मैंने फिल्म देखी. और वो सही थे, मैं जल्द निष्कर्ष पर पहुंच गई थी. फिल्म के टीजर और ट्रेलर ने मुझे इस इस्लामोफोबिया (मुस्लिमों के प्रति नफरत) के लिए तैयार नहीं किया था, जो 'द केरला स्टोरी' फिल्म में थी.

सिनेमा के नजरिये से भी, फिल्म अच्छी तरह से नहीं बनाई गई थी. ये ज्यादातर जगहों पर कैरिकेचर जैसी थी. लेकिन जिस तरह से कहानी को बताया गया था... ये व्यवस्थित थी, हर एक फ्रेम में नफरत भरी हुई थी.

धार्मिक अतिवाद पर जो एक ठीक-ठाक फिल्म हो सकती थी, वो एक ढीले धागे में यौन हिंसा और स्वदेशीकरण का मात्र दृश्य बनकर रह गई.

इसलिए, जब मैं थिएटर से बाहर निकली, जिसमें मुश्किल से 50 लोग थे, मेरे दिमाग में और भी कई "घिसे-पिटे" सवाल थे.

सबसे पहला सवाल. बात करने का वो लहजा क्या और क्यों था?

केरल, कथकली की भूमि

मैं केरल में जन्मीं और पली-बढ़ी एक मलयाली हूं. हां, बॉलीवुड ने आपको जरूर ये यकीन दिला दिया होगा कि केरल कथकली, हाउसबोट और बालों में मुल्लप्पू (चमेली के फूल) वाली लड़कियों के बारे में है.

और कोई हैरानी की बात नहीं है कि सुदीप्तो सेन ने इन्हीं रूढ़ियों के साथ कहानी कहना चुना. जब फिल्म हमें केरल में लाती है, तो शालिनी उन्नीकृष्णन (मैं उस नकली मलयाली लहजे को अनसुना नहीं कर सकती) की भूमिका निभाने वाली अदा शर्मा को अपने बालों में मुलप्पू के साथ एक मंदिर के चारों ओर घूमते हुए और एक कथकली आर्टिस्ट के साथ बात करते हुए देखा जाता है. लेकिन क्यों!

'द केरला स्टोरी' फिल्म का एक दृश्य

(फोटो: स्क्रीनशॉट)

फिर वो अपनी अम्मा और अम्मुम्मा (जो शायद फिल्म में मलयाली बोलने वाली एकलौती कैरेक्टर हैं) के पास घर लौटती हैं - और वो वाझा एला (केले के पत्ते) पर खाना खाते हैं. आपको अगर पता न हो तो बता दूं कि हमारे घरों में प्लेटें होती हैं.

फिर से उस लहजे पर वापस जाते हैं, जिसका कोई मतलब नहीं है. मैं समझती हूं कि फिल्म के ज्यादातर कलाकार गैर-मलयाली हैं. लेकिन हिंदी और अंग्रेजी बोलते समय भी वो नकली मलयाली लहजे में बोलते हैं (जब अदा शर्मा "मेक-अप" की बजाय "मैक-अप" कहती हैं, तो आपको गुस्सा आता है).

और जब वो मलयालम बोलते हैं, तो उनका लहजा गैर-मलयाली होता है. इस नकली लहजे को भी एक जैसे इस्तेमाल नहीं किया गया है; ये अपने मन मुताबिक आता और जाता है.

तो आखिर मामला क्या था, सर?

मुझे लगता है कि ये बहुत आसान है.

'द केरला स्टोरी' मलयाली ऑडियंस के लिए नहीं बनाई गई है. ये केरल के बाहर रहने वाले लोगों के लिए केरल को एक आकर्षक रूप में पेश करती है - देश में एकमात्र कम्युनिस्ट पार्टी शासित राज्य के बारे में उनके पूर्वाग्रहों को पक्का करती है. संयोग से, केरल देश के उन गिने-चुने राज्यों में से एक है, जिसने दक्षिणपंथी धार्मिक भावनाओं को खारिज कर दिया है.

फिल्म के बारे में पहले बोलते हुए, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा था, "ट्रेलर पर एक नजर डालने से ये आभास होता है कि फिल्म को जान-बूझकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और केरल के खिलाफ नफरत फैलाने के उद्देश्य से बनाया गया था. प्रोपेगैंडा फिल्मों और मुस्लिमों को अलग करना, केरल की राजनीति में लाभ प्राप्त करने के लिए संघ परिवार द्वारा किए गए विभिन्न प्रयासों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए."

और कम्युनिज्म की बात करते हुए, पूरी फिल्म में सोशलिस्ट प्रतीकों और हीरो (पश्चिमी प्रचारक) के उपहासपूर्ण जिक्र को भूलना भी मुश्किल है, जिससे ये दिखाने का प्रयास किया जा रहा है कि ये विचारधारा "केरल की गरीब, असहाय महिलाओं" की मदद नहीं कर रही है.

उदाहरण के लिए, 'टारगेटेड' महिलाओं में से एक, गीतांजलि (सिद्धि इदनानी), अपने 'नास्तिक' पिता से कहती है कि ये उनकी गलती है कि वो एक धार्मिक जाल में फंस गई. "आपको मुझे हमारी संस्कृति और धर्म के बारे में बताना चाहिए था..." यानी हिंदू धर्म.

लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि राज्य में फिल्म की ऑडियंस नहीं है. जब 24 साल की हादिया (जो एक हिंदू महिला थी) ने 2017 में अपनी मर्जी से इस्लाम कबूल किया, तो मलयाली लोगों ने उसे 'बचपना' दिखाने और ब्रेनवॉश होने कहने में देर नहीं की. और असल में, केरल सालों से कथित 'लव-जिहाद' की राजनीति के केंद्र में रहा है.

और स्पष्ट रूप से, ये अविश्वसनीय है कि 32,000 महिलाओं के कथित रूप से लापता होने पर कोई शोर-शराबा नहीं हुआ था - जैसा कि फिल्म इशारा करती है.

जब द क्विंट ने इस दावे के बारे में एक रिटायर्ड वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे) से बात की, तो उन्होंने कहा,

"अगर केरल में 32,000 महिलाएं लापता हो जाती हैं, तो क्या प्रतिक्रिया होगी? यहां, अगर एक महिला भी गायब हो जाती है, तो भारी हंगामा होता है. इसलिए मुझे ये बताने की जरूरत नहीं है कि उस संख्या का कोई मतलब क्यों नहीं है. केरल में 12,000 हैं, और इस आंकड़े के मुताबिक, हर स्कूल से तीन लड़कियों को गायब होना पड़ेगा. केरल में केवल 1,000 पंचायतें हैं - इस आंकड़े के मुताबिक, वहां से 32 महिलाओं को गायब होना पड़ेगा. इसके बारे में सोचिए!"

जादुई नंबर

मैं 32,000 को जादुई नंबर इसलिए कह रही हूं क्योंकि ये संख्या फिल्ममेकर्स की सुविधा के मुताबिक फिल्म में आती रहती है. फिल्म के टीजर ने पहले 32,000 कहा, और फिर ट्रेलर ने 3 कहा.

और फिल्म में, जब पीड़ितों में से एक, निमा (योगिता बिहानी द्वारा अभिनीत), एक पुलिस अधिकारी के सामने एक भावुक भाषण देती है, तो वह भी "30,000 से अधिक" महिलाएं कहती है.

वो कहती हैं, "हमारे एक्स-चीफ मिनिस्टर ने बोला है, अगले 20 साल में केरल इस्लामिक स्टेट बन जाएगा."

'द केरला स्टोरी' फिल्म का एक दृश्य

(फोटो: स्क्रीनशॉट)

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
ये 2010 में CPI(M) नेता वीएस अच्युतानंदन द्वारा केरल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के प्रभाव के संबंध में दिए गए एक बयान के संदर्भ में है.

वो आगे पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी को भी कोट करती हैं - जैसे कि ये कोई भाषण प्रतियोगिता या कुछ और थी - जिन्होंने विधानसभा में कहा था कि हर साल, लगभग 2,800 से 3,200 लड़कियां केरल में इस्लाम में परिवर्तित हो रही थीं.

और उसके बाद, वो कहती हैं, "32,000 से ज्यादा लड़कियां लापता हैं," और ये भी कहती हैं कि अनौपचारिक आंकड़ा 50,000 है.

जब पुलिस उससे सबूत और दस्तावेज मांगती है, तो वो आसानी से कहती है कि इस तरह के मामलों में सबूत ढूंढना मुश्किल है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि ये सच नहीं है.

संयोग से, डायरेक्टर सुदीप्तो सेन ने पहले कहा था कि 32,000 एक "मनमाना" आंकड़ा है और ये वास्तव में मायने नहीं रखता है. हम्म…

अगर मैंने इस पर पर्याप्त जोर नहीं दिया, तो ये दावा कि 32,000 महिलाएं लापता हैं, निराधार है. फिल्म के अंत में, मेकर्स कहते हैं,

"पिछले 10 सालों में 32,000 धर्मांतरण के दावे को वेरिफाई करने के लिए हमने एक आरटीआई आवेदन दायर किया. जवाब में, हमें www.niyamasbha.org.in पर जानकारी खोजने के लिए कहा गया, लेकिन ये वेबसाइट मौजूद नहीं है."

ओके, तो पहला, एक आसान से गूगल सर्च से पता चलता है कि ये वेबसाइट मौजूद है — लेकिन इस समय, मैं इसे द क्विंट की फैक्ट-चेक टीम पर छोड़ती हूं. दूसरा, आप इस तरह के दावे का प्रचार क्यों कर रहे हैं अगर ये पहले वेरिफाई नहीं किया गया है तो? और आखिर में, फिल्म का दावा सिर्फ इन महिलाओं के धर्मांतरण के बारे में नहीं था, बल्कि ये था कि वो लापता हैं. इसका कोई मतलब नहीं निकलता है.

और अब, फिल्ममेकर्स ने केरल हाईकोर्ट, जिसने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, से कहा है कि वो अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट से उस आंकड़े वाले टीजर को हटा देंगे. ये एक्शन काफी देर से नहीं लिया जा रहा?

इस्लामोफोबिया और महिलाओं की एजेंसी

डायरेक्टर सुदीप्तो सेन, प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल और एक्टर अदा शर्मा ने फिल्म प्रमोशन के दौरान एक स्वर में कहा कि "ये किसी भी धर्म को टारगेट नहीं करती है."

मैं इससे असहमत हूं. 'द केरला स्टोरी' में कहानी सुनाने का उद्देश्य धर्म परिवर्तन के बारे में जानकारी देना या चर्चा शुरू करना नहीं है, बल्कि केवल नफरत की भावनाओं को जगाना है.

उदाहरण के लिए, बुरे मुस्लिम कैरेक्टर (वैसे, वो सभी दुष्ट दिखाये गए हैं) एक ही बुरी बातें बार-बार कहते हैं, जैसे कि वो चाबी से चलने वाले किसी तरह के खिलौने हों.

'द केरला स्टोरी' फिल्म का एक दृश्य

(फोटो: स्क्रीनशॉट)

इस्लाम की कई धार्मिक प्रथाएं - जैसे हिजाब पहनना या ईद मनाना - फिल्म में किसी खलनायक की तरह दिखाई गई हैं. मुख्य बुरे कैरेक्टर में से एक आसिफा (सोनिया बलानी) है, जो कथित तौर पर शालिनी और गीतांजलि को हिजाब द्वारा मिलने वाली सुरक्षा के बारे में बताकर उनका ब्रेनवॉश करती है.

ये कितनी दूर की बात है, जब हकीकत में कर्नाटक के स्कूलों और कॉलेजों की हिजाबी लड़कियों को हेडस्कार्फ पहनने की भी अनुमति नहीं है और इसके कारण उन्हें गालियां भी झेलनी पड़ती हैं.

यहां हिजाब जैसी दिखने वाली चीज को जलाने वाली लड़की का एक शॉट भी है, जो शायद सीरिया और ईरान में महिलाओं के आंदोलनों से प्रेरित है. एक फ्रेम में 'My Body, My Rules' ग्राफिटी भी दिखता है, जो दुर्भाग्य से ऐसी फिल्म में कोई मायने नहीं रखता है, जो महिलाओं की एजेंसी के खिलाफ अभियान चलाती है.

जब आखिर में एंड क्रेडिट में 'असली' पीड़ितों को दिखाते हैं, तब मेरे बगल में बैठी महिला मुझसे कहती है कि उन्हें स्कूलों और कॉलेजों में ऐसी फिल्मों की स्क्रीनिंग शुरू करनी चाहिए. अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद 'द केरला स्टोरी' का समर्थन किया है, तो मैं वास्तव में ऐसा होता देख सकती हूं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT