advertisement
टैक्स सुधार का सबसे ऐतिहासिक कानून अमल में आ गया है. लेकिन जीएसटी के भारी शोर-शराबे में इन कानूनी पहलुओं पर विचार ही नहीं हुआ कि विवाद की स्थिति में मामलों का प्रभावी तरीके से निपटारा कैसे होगा. खास तौर पर अगर केंद्र और राज्य के साथ जीएसटी काउंसिल का विवाद हुआ तो उसका समाधान कैसे होगा?
इसे कुछ इस तरह समझिए कि भारत राज्यों का संघ है. यहां शासन व्यवस्था दो स्तरों पर बंटी है.
मतलब कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद और राज्य की विधानसभाओं के पास है. संविधान में संसद और विधानसभाओं के कानून बनाने के अधिकार स्पष्ट तौर पर बताए गए हैं. केंद्र और राज्य दोनों किन-किन विषय पर कानून बना सकते हैं इसके लिए संविधान में तीन अलग अलग लिस्ट दी गई हैं.
राज्यों के पास पहले शराब, अफीम, गांजा और नशे से जुड़े दूसरे उत्पाद को छोड़कर किसी भी सर्विस और प्रॉडक्ट के प्रोडक्शन पर टैक्स लगाने का अधिकार नहीं था. यहां तक कि राज्यों के विषय वाली जो दूसरी लिस्ट है उसमें भी राज्यों के पास टैक्स से जुड़े ज्यादा अधिकार नहीं थे. लेकिन जीएसटी से जुड़े 101 वें संविधान संशोधन कानून के बाद उनके पास ये अधिकार आ गए हैं.
हालांकि, कनकरेंट लिस्ट में एक अलग एंट्री के जरिए गुड्स एंड सर्विस पर टैक्स लगाने का अधिकार शामिल किया जा सकता था. अब मान लीजिए केंद्र और राज्य एक ही आइटम पर दो अलग अलग कानून पास करते हैं तो आर्टिकल 254 (1) के मुताबिक विवाद की स्थिति में संसद की तरफ से पारित कानून मान्य होगा और राज्य विधानसभा की तरफ से पारित कानून रद्द मान लिया जाएगा.
यह भी पढ़ें: ब्रेकिंग Views: GST आने से महंगाई और विकास दर पर कैसे पड़ेगा असर?
आर्टिकल 254(1) के मुताबिक कनकरेंट लिस्ट में अतिरिक्त एंट्री शामिल करने का मतलब यह नहीं है कि राज्य विधानसभाओं के अधिकार संसद के अधिकारों के बराबर हो जाएं. इसलिए इस जटिलता को संविधान में नया आर्टिकल 246A शामिल करके दूर किया गया है. जिसके मुताबिक:
इस आर्टिकल के प्रावधान जीएसटी काउंसिल की तरफ से बताई गई तारीख से लागू होंगे. आर्टिकल 279A के क्लॉज 5 में दिए गए गुड्स और सर्विसेज से जुड़े सभी मामलों पर लागू होगा.
आर्टिकल 246 A में संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों के पास जीएसटी के संबंध में कानून बनाने का हक आ गया है. संविधान में जीएसटी काउंसिल बनाने का प्रावधान किया गया है. लेकिन स्पष्ट किया गया है जीएसटी काउंसिल राज्य और केंद्र को नीचे दिए गए मामलों पर सिफारिशें करेगी.
अरुणाचल प्रदेश, असम, जम्मू कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए विशेष प्रावधान
जीएसटी काउंसिल के पास अधिकार नहीं?
जीएसटी काउंसिल की भूमिका सिर्फ सिफारिश करने की होगी. लेकिन सवाल यही है कि क्या जीएसटी काउंसिल की सिफारिशों का पालन करना संसद और विधानसभाओं के लिए जरूरी होगा?
मेरा मानना है कि संविधान की व्यवस्था से ऐसा महसूस होता है कि जीएसटी काउंसिल की सिफारिशें सिर्फ सुझाव या गाइडलाइंस ही होंगी. ऐसे में ये संसद या विधानसभाओं पर है कि वो इन्हें पूरी तरह मंजूर करें या फिर ठुकरा दें. संवैधानिक संस्थाओं को सिफारिशें देने का अधिकार देने की व्यवस्था नई नहीं है. मौजूदा न्याय व्यवस्था में स्पष्ट तौर पर या अपने आप यह नहीं माना जा सकता कि ऐसी संस्थाओं की सभी सिफारिशें अनिवार्य तौर पर मंजूर की ही जाएंगी. ऐसे में अगर जीएसटी काउंसिल की सिफारिशों पर अमल नहीं हुआ और कोई विवाद के हालात बने तो न्यायपालिका के पास जाने के अलावा विकल्प नहीं होगा.
यह भी पढ़ें: GST है बड़े टैक्स रिफॉर्म में इंडियन जुगाड़: राघव बहल
अमेरिका में भी ऐसे हालात
अमेरिका में भी राष्ट्रपति और कांग्रेस के बीच अक्सर इस तरह के मामलों पर तकरार होती है.
अब जीएसटी से जुड़े विवाद पर आते हैं. इसमें विवाद निपटाने का कानूनी तरीका क्या होगा? मान लीजिए राज्यों ने जीएसटी काउंसिल की सिफारिशों की पूरी तरह अनदेखी करते हुए उससे उलट कानून बना दिया? ऐसे हालात अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकते हैं और इससे अराजकता की स्थिति बन सकती है. अगर ऐसा हुआ तो पूरे देश को एक ही बाजार बनाने का जीएसटी का मकसद ही फेल हो जाएगा.
जीएसटी लागू हुए अभी 24 घंटे ही हुए हैं इसलिए अभी ऐसे हालात भले नजर ना आएं. पर इस बात का खतरा तो है, इसलिए हालात बनने से पहले ही उससे निपटने के उपायों पर चर्चा जरूरी है. यह तो वक्त ही बताएगा कि अब ऐसी स्थिति का खतरा है या नहीं. साथ ही अभी यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि इस तरह के मामलों में न्यायपालिका की भूमिका क्या होगी, वो किस तरह दखल देगी?
यह भी पढ़ें: GST का असर: मारुति की छोटी गाड़ियां और iPhone हुआ सस्ता
मैं यहां साफ तौर पर बताना चाहूंगा कि आर्टिकल 279A (11) में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि किसी भी विवाद की स्थिति को निपटाने का तरीका या मैकेनिज्म बनाने की जिम्मेदारी जीएसटी काउंसिल की होगी. ये विवाद केंद्र और राज्य सरकारों के बीच का हो, या जीएसटी काउंसिल की सिफारिशों को लेकर हो. लेकिन ये मैकेनिज्म क्या होगा इसे लेकर पूरी तरह अस्पष्टता है. खास तौर पर इन सवालों के जवाब मौजूदा कानून में नहीं हैं.
हालांकि यहां यह बताना जरूरी है कि 115 वें संशोधन बिल 2011 के आर्टिकल 279 (B ) में विवाद की स्थिति से निपटने के कुछ तरीके सुझाए गए हैं.
क्या जीएसटी आधारभूत ढांचे के लिए चुनौती है?
जीएसटी काउंसिल में व्यवस्था है कि हर फैसला बैठक में मौजूद सदस्यों के तीन चौथाई बहुमत से पास होना जरूरी है. लेकिन यह भी मुमकिन है कि जीएसटी काउंसिल के कुछ फैसले कुछ राज्य या केंद्र को मंजूर ना हों. ऐसे में पूरी आशंका है कि जीएसटी काउंसिल के कुछ फैसलों अदालती लड़ाई में फंस सकते हैं. ऐसे में केशवानंद भारती Vs केरल मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला विवाद सुलझाने के लिए नजीर बन सकता है.
इन दलीलों से विवाद बढ़ सकता है..
केंद्र अपने अधिकारों को बंटवारा ना करे तो...
ऐसे हालात बन सकते हैं जिसमें केंद्र और राज्यों के अधिकार एक दूसरे के कार्यक्षेत्र में आ जाएं. राज्य कह सकते हैं कि उन्होंने तो अपने बहुत अधिकार छोड़ दिए हैं, लेकिन केंद्र ने नहीं छोड़े और यही वजह बड़े विवाद की वजह बन सकती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 02 Jul 2017,09:48 AM IST