advertisement
महाराष्ट्र (Maharashtra) में 2019 से 2022 के दौरान 4 वर्षों में वन्य प्राणियों के हमले में 298 लोगों ने अपने प्राण गवाएं हैं. ये आंकड़े नवंबर की शुरुआत के हैं. जंगली जानवरों के हमले की घटनाएं जारी हैं और मरने वालों की संख्या बढ़ी ही है. ये मौतें बाघ, तेंदुआ, हाथी, मगर, भालू और जंगली सूअर के हमलों में हुई हैं. सूचना के अधिकार (RTI) के जरिए प्राप्त जानकारी में बताया गया है कि 2019 में चंद्रपुर जिले में 39 लोगों की जानें गई.
2020 में बाघ के हमलों में चंद्रपुर में 27, गडचिरोली में 6, नागपुर में 5 और यवतमाल जिले में 1 व्यक्ति मारा गया.
2020 में ही औरंगाबाद, चंद्रपुर, धुले, गडचिरोली, नागपुर, नासिक और पुणे जिले में तेंदुए के हमले में 32 लोग मारे गए.
2021 में बाघ के हमलों में चंद्रपुर में 36, गडचिरोली में 13, नागपुर में 3 और अमरावती जिले में 2 व्यक्ति मारे गए.
2021 में ही तेंदुए के हमलों में चंद्रपुर, गडचिरोली, नागपुर, यवतमाल, नासिक, पुणे और कोल्हापुर जिले में 24 लोगों की मौत हुई.
आरटीआई में 9 नवंबर 2022 तक की घटनाओं का हवाला देते हुए बताया गया है कि बाघ के हमले में चंद्रपुर में 37, गडचिरोली में 21 और नागपुर जिले में 7 लोगों की जानें गई. नवंबर में ही यवतमाल जिले की वणी तहसील में 27 नवंबर को बाघ के हमले में एक चरवाहे की मृत्यु हो गई जबकि 28 नवंबर को चंद्रपुर जिले के तालोधी बालापुर 1 सर्किल में एक महिला की मौत हुई.
महाराष्ट्र में विदर्भ क्षेत्र में गडचिरोली, अमरावती, नागपुर, अमरावती, गोंदिया जिले में बाघ प्रकल्प स्थित है. मुख्य रूप से मेलघाट, ताडोबा, पेंच व्याघ्र प्रकल्प प्रसिद्ध है. 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार मेलघाट (अमरावती) में 44 ,कांटे पूर्णा (अकोला) में 5, ज्ञान गंगा बुलढाणा में 7, आर्णी (यवतमाल)में 5, पांढरकवडा में 10, वाशिम में 2, ताडोबा- अंधारी चंद्रपुर में 85, नागपुर में 12, टिपेश्वर में 25, गोंदिया में 10, भंडारा में 8, बोर (वर्धा) में 8, गडचिरोली में 9 बाघ होने का अनुमान है.
विदर्भ के जंगलों से बाघ मध्य प्रदेश के वनों में भी जाते हैं. एक वयस्क नर बाघ 60 से 100 वर्ग किलोमीटर और मादा बाघ करीब 20 वर्ग किलोमीटर के दायरे में शिकार और जोड़ीदार की तलाश में विचरण करता है. वनों में इंसानी घुसपैठ के कारण बाघों का भ्रमण क्षेत्र भी अतिक्रमित हो रहा है. व्याघ्र प्रकल्प से बाहर जाने वाले बाघों ने अपना कॉरिडोर सा बना लिया है लेकिन प्रकल्प से बाहर भटकने वाले बाघों के जीवन को खतरा ज्यादा बढ़ जाता है. वे अवैध शिकार करने वालों का निशाना बनने का खतरा मोल लेते हैं.
जंगली जानवरों के हमले में मारे गए लोग जंगलों के नजदीक रहने वाले हैं. मारे गए अधिकांश व्यक्ति चरवाहे या खेत मजदूर है. विदर्भ में धान की खेती प्रमुखता से होती है जबकि पश्चिम महाराष्ट्र में गन्ने की खेती मुख्य रूप से की जाती है. धान के अलावा सर्दियों में यहां दलहन की फसलें ली जाती हैं.
बाघों के डर से आदिवासी जंगल से लगे खेतों में सर्दियों में बुवाई नहीं करते. ऐसा कहते हैं कि बारिश के मौसम में बाघ की सक्रियता कम रहती है इसलिए धान की कटाई तो हो जाती है पर ठंड के समय खेतों में बुवाई नहीं की जाती.
पश्चिमी महाराष्ट्र में अधिकतर देखा गया है कि गन्ने के खेतों में मादा तेंदुए बच्चे देती हैं. गन्ने की कटाई के दौरान तेंदुओं के हमलों की घटनाएं ज्यादा होती हैं. तेंदुआ, मझोले और छोटे आकार के प्राणियों का शिकार करना पसंद करता है. गांव में घुसे तेंदुए अक्सर गाय, बैल, बकरी और कुत्तों को अपना शिकार बनाते हैं. खेतों में काम कर रहे मजदूर बाघों का शिकार इसलिए भी बनते हैं कि काम करने के लिए झुके मजदूर को बाघ कोई जानवर ही समझता है इसलिए उस पर हमला करता है.
जंगली जानवरों के हमलों में मारे गए व्यक्तियों के परिजनों, पशुओं के मालिकों को सरकार की ओर से मुआवजा दिया जाता है. महाराष्ट्र में 2019 से 2022 के दौरान वन्य प्राणियों के हमले में 43990 पालतू जानवर मारे गए और 1134 पालतू जानवर जख्मी हुए. वन्य प्राणियों के हमले में हुई जनहानि, पशुधन हानि तथा फसलों को हुई क्षति के लिए वन विभाग ने 356. 64 करोड़ रुपए की नुकसान भरपाई दी है.
दूसरे बैल के साथ जोड़ी के रूप में काम करने के लिए नए बैल को 6 महीने से 1 साल तक का समय लगता है. इस दौरान किसान को बहुत आर्थिक नुकसान होता है जिसकी भरपाई नहीं होती. इसके अलावा वन्य जीवों से फसलों को हुए नुकसान के आकलन का तरीका भी जटिल है मिलने वाला मुआवजा कृषि लागत से भी कम होता है. हर्जाना देने की नीति बदलने की मांग लंबे समय से की जा रही है पर सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है.
गांव के आसपास बाघ, भालू, हाथी जैसे वन्य जीव देखे जाने पर ग्रामीणों को खेतों और जंगल की ओर न जाने की सलाह दी जाती है तथा घरों में रहने के लिए कहा जाता है. बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया जाता है जिसके कारण उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है. घर से बाहर न निकलने की सलाह देने के कारण आदिवासियों को दैनंदिन कामकाज रुक जाता है और दिन भर में जो कुछ रोजी मिलती थी, वह भी बंद हो जाती है.
देश में बाघों की संख्या बढ़ रही है लेकिन मानव जनसंख्या वृद्धि की दर बहुत ज्यादा है. इसी दबाव के कारण बाघों के प्राकृतिक आवास में मानव की घुसपैठ बढ़ती ही जा रही है. परिणाम बाघ और मानव के बीच संघर्ष के रूप में सामने आता है. 22 नवंबर को ही दक्षिण ब्रम्हपुरी वन क्षेत्र के अंतर्गत करीब दो- ढाई वर्ष के एक नरभक्षी नर बाघ नर के-4 को बेहोश कर पकड़ा गया. इसने कई नागरिकों को मार डाला था.
इससे पहले 8 नवंबर को ब्रम्हपुरी वन क्षेत्र में लगभग दो-ढाई साल के एस ए एम-2 नामक बाघ को बेहोश कर पकड़ा गया था. इस बाघ ने क्रमशः 28 जून, 16 अगस्त, 17 अगस्त तथा 4 नवंबर को 4 लोगों को मार डाला था.
अक्टूबर 2022 में 13 लोगों को मारने वाले सी टी-1 नरभक्षी बाघ को वडसा वन क्षेत्र में बेहोश कर पकड़ा गया. इस बाघ ने वडसा में 6, भंडारा में 4 तथा चंद्रपुर जिले की ब्रम्हपुरी रेंज में 3 लोगों को मार डाला था.
उल्लेखनीय है कि यवतमाल जिले के पांढरकवडा परिसर में 2017-2018 में दहशत फैलानी वाली बाघिन टी-1 को सरकार की अनुमति से गोली मारी गयी थी. यह बाघिन ‘अवनी’ के नाम से मशहूर थी. अवनी पर आरोप था कि उसने इस परिसर में 13 लोगों को अपना शिकार बनाया था. ‘अवनी’ को मारे जाने पर पशु प्रेमियों और पर्यावरण प्रेमियों ने पूरे मामले पर सवाल उठाये थे और अदालत में मुकदमा भी दायर किया था.
बाघों की संख्या में वृद्धि तो हो रही है लेकिन उनके शिकार की घटनाएं भी कम नहीं है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2017 से 2021 के 5 वर्षों में 547 बाघों की मृत्यु हुई. इनमें से 393 बाघों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई जबकि 154 बाघों की मौत अनैसर्गिक कारणों से हुई. मरने वालों वाले बाघों में से 25 की विषबाधा से, 9 की जाल में फंसने से और 33 का शिकार किया गया था. बिजली का करंट देकर 22 बाघों को मारा गया था.
नवंबर के आखिरी हफ्ते में विदर्भ में पेंच व्याघ्र प्रकल्प क्षेत्र में बाघ के अवैध शिकार और उसके अंगों की तस्करी के संदेह में नागलवाड़ी रेंज में तीन संदिग्ध आरोपियों को गिरफ्तार किया गया.
बाघ और अन्य वन्य प्राणियों तथा मानव के बीच के संघर्ष को हमें सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से देखना होगा. पिछले कुछ वर्षों से पर्यावरण की रक्षा पर ध्यान देने की कोशिश की जा रही है. इसके साथ ही विकास की योजनाएं भी लगातार नए रूप में सामने आ रही है. लगभग हर रोज कोई नई विकास योजना शुरू की जाती है. विकास का सबसे पहला शिकार प्रकृति और पर्यावरण होता है. सड़क, बांध निर्माण जैसी बड़ी परियोजनाएं, बड़े उद्योग सभी पर्यावरण की कीमत पर ही बनते हैं.
शहरों का विकास गांव की सीमा हड़प कर वनों के भीतर घुस रहा है. इस हालत में वन्य प्राणियों और मानव के बीच टकराव तो होना ही है. बाघ और इंसान के बीच का संघर्ष अनवरत जारी है. मनुष्य ने जंगल में घुसकर बाघ के घर पर कब्जा कर लिया है और जब बाघ अपने घर आने की कोशिश करता है तो लोग बाघ को ही दोषी ठहराते है. बाघ और इंसान के इस टकराव को टालने के उपाय सोच समझकर और ईमानदारी के साथ लागू किए जाने चाहिए.
(विष्णु गजानन पांडे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे दी क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined