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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने गुजरात में पार्टी की सत्ता वापसी और हिमाचल प्रदेश में हार के एक दिन बाद ही राजस्थान से राज्यसभा सदस्य किरोड़ी लाल मीणा को प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर 'समान नागरिक संहिता, 2020' (The Uniform Civil Code in India Bill, 2020) लाने को हरी झंडी दे दी. इसका राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों ने भारी विरोध किया.
यह बताता है कि पार्टी हिंदुत्व की अपनी नीति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को आगे बढ़ाने पर आमादा है. राजस्थान उन पांच राज्यों में शामिल है जहां अगले सर्दियों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें से तीन हिंदी,हिंदू और हिंदुत्व वाली राजनीति के गढ़ हैं.
समान नागरिक संहिता (UCC) पर पार्टी की दृढ़ता इस तथ्य से स्पष्ट होती है कि लगभग तीन साल पहले भी किरोड़ी लाल मीणा ने विधेयक पेश किया था, लेकिन हिमाचल प्रदेश में पार्टी के सत्ता से बाहर होने तक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई थी.
बीजेपी ने राजस्थान से राज्यसभा सदस्य किरोड़ी लाल मीणा को समान नागरिक संहिता बिल पेश करने के लिए हरी झंडी दी. इसे उन्होंने प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर पेश किया.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा से पहले CAA विरोधी आंदोलन और दिल्ली दंगों के बीच बीजेपी ने UCC विधेयक पर चुप्पी साधने का विकल्प चुना.
UCC पर कोई भी प्रगति 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों और बाद में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए चुनावी रूप से फायदेमंद होगी.
बीजेपी का उद्देश्य UCC के मुद्दे पर सियासी पारा को बढ़ाना है- एक ऐसा मुद्दा जो धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप करता है.
बीजेपी के महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों में UCC को लागू करने और लागू करने के तरीकों की जांच करने के लिए एक समिति का गठन है.
बिल को पहली बार 7 फरवरी 2020 को लंच के बाद सदन के सत्र में लाने के लिए सूचीबद्ध किया गया था. हालांकि, जब सदस्य का नाम राज्यसभा में लिया गया तो पता चला कि वो खुद उपस्थित नहीं हैं. बाद में वो हाजिर हुए तो उन्होंने दूसरा निजी विधेयक पेश किया- तुलनात्मक रूप से यह एक गैर-विवादास्पद मामले पर, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए राजस्थान को विशेष वित्तीय सहायता प्रदान करने से जुड़ा था.
इसमें कोई संदेह नहीं था कि CAA विरोधी आंदोलन उग्र रहने और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा से ठीक एक हफ्ते पहले दिल्ली में दंगे शुरू होने की स्थिति में बीजेपी ने UCC मामले को तूल नहीं देने का विकल्प चुना.
अब, बीजेपी स्पष्ट रूप से इस समय को ऐसा सही मौका मान रही है जब विधेयक को पेश किया जा सकता है. भले ही इस बिल को विपक्षी नेताओं ने राज्यसभा में शांति भंग करने और देश की धर्मनिरपेक्ष साख को चोट पहुंचाने वाला बताया हो. यह सबको समझ में आ रहा है कि UCC पर कोई भी कदम 2023 में तय विधानसभा चुनावों में और बाद में 2024 में लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए चुनावी रूप से फायदेमंद होगा.
केंद्रीय वाणिज्य मंत्री और सदन के नेता पीयूष गोयल का विधेयक के पक्ष में मजबूत बचाव बीजेपी का पक्ष साफ-साफ दिखाता है. उन्होंने कहा कि UCC को संविधान सभा ने सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का हिस्सा बनाया था. उन्होंने राज्यसभा अध्यक्ष और वाइस प्रेसिडेंट से बिल को पेश करने की अनुमति मांगते हुए कहा कि
इसके बाद उपराष्ट्रपति ने सदन की राय जानना चाहा. वहीं विपक्ष ने इसका विरोध किया. विपक्ष के पास चूंकि नंबर काफी कम था इसलिए इस बिल को पेश किए जाने से रोका नहीं जा सका. बिल के पेश किए जाने के पक्ष में 63 सदस्यों ने मतदान किया और सिर्फ 23 मत विरोध में पड़े.
चूंकि विपक्षी पार्टियों ने अपने सदस्यों को मौजूद रहने के लिए व्हिप जारी नहीं किया ता इसलिए आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस समेत कई विपक्षी सदस्य चर्चा और वोटिंग के दौरान गैरहाजिर रहे.
चाहे अनुपस्थित हों या न हों, राज्यसभा सदस्य सप्ताह के अंतिम दिन गायब रहे. वैसे भी लंबे समय से हफ्ते के आखिरी दिन सांसद अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जाने की तैयारी में रहते हैं. लेकिन, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पार्टियों के साथ-साथ व्यक्तिगत तौर पर सांसद भी अक्सर ऐसे मुद्दों पर कोई स्टैंड लेने से बचते हैं जो बहुसंख्यक झुकाव वाले व्यक्तियों और समूहों को खुश करने वाले होते हैं.
इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि BJP ने लगातार UCC पर सामाजिक गरमी बढ़ाने का लक्ष्य रखा है- एक ऐसा मुद्दा जिसे धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के व्यक्तिगत मामलों में 'हस्तक्षेप' के रूप में देखा जाता है.
गुजरात और हिमाचल प्रदेश का फैसला एक ही दिन घोषित किया गया था लेकिन चुनाव आयोग ने इन चुनावों को एक साथ नहीं कराया था. इसने गुजरात में भाजपा को महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेने के अलावा कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करने की रियायत दी, जो आदर्श आचार संहिता के लागू होने पर संभव नहीं था.
कांग्रेस पार्टी ने ठीक ही तर्क दिया कि गुजरात में अक्टूबर 1996 और मार्च 1998 के बीच केवल अठारह महीने के ब्रेक को अगर छोड़ दें तो बाकी के वक्त बीजेपी ही 27 साल से सरकार में रही. फिर चुनाव से ठीक पहले समिति का गठन क्यों? खास बात है कि AAP ने बीजेपी की राज्य सरकार के इस कदम की आलोचना नहीं की.
यदि बीजेपी गुजरात में UCC को लागू करने के लिए इतनी ही उत्सुक थी, तो कांग्रेस ने सही ही पूछा कि उसने पहले कदम क्यों नहीं उठाया. चुनाव से ठीक पहले कमिटी बनाने का फैसला क्यों किया? स्पष्ट रूप से, इरादा हिंदुत्व-समर्थक मतदाताओं को यह बताना था कि बीजेपी उन नीतियों का का पालन कर रही है जिन पर मुसलमानों और कुछ अन्य अल्पसंख्यकों को आपत्ति है.
UCC की मांग उन तीन विवादास्पद मुद्दों में से आखिरी है, जिन्हें बीजेपी 1980 के दशक के मध्य से लगातार उठा रही है. अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण और जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने की मांगों के साथ समान नागरिक संहिता भी उसकी राजनीति में था.
अपने सीमित अधिकार क्षेत्र वाली बीजेपी राज्य सरकारों के मामले में, UCC को लागू करने से जुड़े अध्ययन करने के लिए समितियों का गठन सिर्फ दिखावे का है. दूसरे, यदि केंद्र मीणा के विधेयक का समर्थन करता है, तो क्या यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि "राज्य/स्टेट" नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने के अपने दायित्व को पूरा नहीं कर रहा है?
भारत में कई लोगों ने देश में समान नागरिक संहिता को लाने का समर्थन उस समय किया था जब राजनीति पर बहुसंख्यक अधिनायकवाद हावी नहीं था और यह संवैधानिक लोकतंत्र से सिर्फ चुनावी लोकतंत्र बनने की तरफ नहीं बढ़ा था.
UCC की आवश्यकता और दूसरे मुद्दों पर विचार करने की अब कोई प्रासंगिकता नहीं रह गई है क्योंकि मीणा के निजी सदस्य की हैसियत से UCC बिल को पेश कराने को मंजूरी मिलना बीजेपी की एक राजनीतिक रणनीति है. इसका उद्देश्य उन लोगों से चुनाव में समर्थन हासिल करना है, जिन्हें पार्टी ने पहले इस्लामोफोबिया का चारा खिलाया है. अब वो इसे और बढ़ाचढ़ाकर दिखाना चाहती है. इसके पीछे सिर्फ वही मकसद है और कुछ नहीं. किसी अच्छे इरादे से ये सब नहीं लाया जा रहा है.
(नीलांजन मुखोपाध्याय लेखक और पत्रकार हैं. उनकी लेटेस्ट किताब का नाम 'द डिमोलिशन एंड द वर्डिक्ट: अयोध्या एंड द प्रोजेक्ट टू रिकंफिगर इंडिया' है. उनका ट्विटर हैंडल @NilanjanUdwin है. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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