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पिछले कॉलम और वीडियो में हमने 3 विजेताओं पर चर्चा की- मायावती, आरजेडी और जाति और 3 हारने वाले- नीतीश, कांग्रेस और बीजेपी. इस कॉलम में हम बीजेपी को मिले 3 सबकों के बारे में चर्चा करेंगे. उसे 50 प्रतिशत वोट शेयर की जरूरत है, जो विभाजन से हासिल नहीं होगा और इसलिए उन्हें समृद्धि को लक्ष्य बनाना होगा.
2014 के चुनाव अभियान में नरेंद्र मोदी के किए गए वादों को याद दिलाने के लिए यह एक चेतावनी भी है जो वह भूल गए हैं, लेकिन मतदाता नहीं.
2014 के चुनाव में, हममें से कुछ लोग जो चुनाव अभियान में शामिल थे, बात करते थे कि अधिक सीटों पर जीत हासिल करने के लिए बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 40 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर की जरूरत होगी. उसने वैसा ही किया. पर अब खेल बदल गया है. गैर-बीजेपी पार्टियों के सामने अपने अस्तित्व को बनाए रखने की चुनौती है. या तो वे गठबंधन करें या नष्ट हों जाए.
50 प्रतिशत या उससे अधिक वोटशेयर बीजेपी जाति, समुदाय या वर्ग को विभाजित कर हासिल नहीं कर पाएगी. अतीत में खेला गया दांव भविष्य को दिशा नहीं दे सकता. वादे करने के लिए भी लायक नहीं होंगे. इसका फैसला अब इनके केंद्र और सत्तारूढ़ राज्यों में किए गए कामों के आधार पर तय किया जाएगा.
नरेंद्र मोदी वोट कैचर हैं हालांकि अब उनका करिश्मा कम हो गया है. ध्रुवीकरण और बंटवारे की राजनीति, बीजेपी की उम्मीद की गई सीटों को बहुमत से जीतने के लिए प्रभावी साबित नहीं हो सकती.
बीजेपी को न सिर्फ अपने संदेशों में बल्कि अपने काम में भी समृद्धि को बढ़ावा देना होगा. समृद्धि एक सुखी और बढ़ते हुए राष्ट्र की कुंजी है. समृद्धि गैस सिलेंडर, बिजली कनेक्शन, बैंक खाता, बीमा योजना या ऋण माफी नहीं है. समृद्धि लोगों को एक बेहतर जीवन के लिए खुद चुनाव करने की स्वतंत्रता देने में है.
बहुत जल्द भारत में चुनाव आर्थिक मुद्दों पर लड़े जाएंगे, साथ ही मतदाता यह पूछेंगे कि ‘हमारे लिए इसमें क्या है?’ शिक्षा, स्वास्थ्य, श्रम, भूमि, कृषि, नौकरशाही, पुलिस, न्यायपालिका के साथ निजीकरण, डिरेग्यूलेशन और शहरों के अधिकारों के हस्तांतरण में वास्तविक और संरचनात्मक सुधार भारत को बदल सकते हैं और भारतीयों को समृद्ध बना सकते हैं. नरेंद्र मोदी की बीजेपी अभी भी लोकसभा में बहुमत हासिल कर सकती है अगर अपने बचे हुए कार्यकाल में वे इन बातों को बढ़ावा दें.
लोगों से बात करें और उनसे 2014 के चुनाव अभियान में नरेंद्र मोदी के किए गए किसी विशेष वादे के बारे में पूछा जाए तो सभी का एक जवाब जरूर होगा ‘हर गरीब परिवार को 15 लाख रुपये’. उनके लिए इसका मतलब था विकास कार्य, समृद्धि, अच्छे दिन और एक बेहतर कल. कोई भी मायाजाल या जुमला जमीनी स्तर पर परिणामों की कमी और विकास कार्यों की सच्चाई को छुपा नहीं सकता.
15 लाख रुपये का वादा आम जनता के लिए कभी भी कोई चाल नहीं थी, बल्कि उनके लिए नए जीवन के लिए स्वतंत्रता हासिल करने का एक रास्ता था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हाल के चुनाव में मतदाताओं ने बार-बार यही चेतावनी दी है.
नरेंद्र मोदी को अपने मौजूदा कार्यकाल में इस एक बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि वह भारतीयों से किए गए 15 लाख रुपयों के वादे की अपेक्षाओं को कैसे संतुष्ट कर सकते हैं. इस वादे पर ध्यान केंद्रित करते हुए उन्हें एक उद्यमी की तरह राजनीतिक स्टार्टअप की तरफ बढ़ना होगा, वे महत्वपूर्ण सुधारों को शुरू कर सकते हैं जिससे समृद्धि विरोधी मशीन का खात्मा हो सके. अगर नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं करते हैं, तो हमें एकजुट होकर ऐसा करना होगा.
ऐसा हो सकता है और जल्द ही मैं आपको, मोदी को और हर वो उम्मीदवार को जो भारत का पहला समृद्धि प्रधानमंत्री बनना चाहता है बताऊंगा कि किस तरह 15 लाख रुपये के वादे को पूरा किया जा सकता है और किस तरह हमारी जिंदगी को बदल सकते हैं.
(राजेश जैन 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं. टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर राजेश अब 'नई दिशा' के जरिये नई मुहिम चला रहे हैं. ये आलेख मूल रूप से NAYI DISHAपर प्रकाशित हुआ है. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है)
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