भारतीय राजनीति बहुत ही दिलचस्प होती जा रही है. मतदाताओं में असंतोष की भावना अब गुस्सें का रूप ले रही है. अगर हाल के चुनावी नतीजों पर जाया जाए तो शासन परिवर्तन की बयार देखी जा सकती है.
उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनाव के परिणामों ने काफी सुर्खियां बटोरी है. मेरे अनुसार, वहां 3 विजेता हैं-मायावती, आरजेडी और जाति और 3 हारने वाले- नीतीश, कांग्रेस और बीजेपी. इन परिणामों से बीजेपी को 3 सबक और एक चेतावनी मिलती है- जो हम अगले कॉलम और वीडियो में कवर करेंगे.
3 विजेता
1. मायावती:
फूलपुर और गोरखपुर के दोनों सीटों पर चुनाव लड़े बिना ही, मायावती सबसे बड़ी विजेता साबित हुई हैं. सपा को अपने मतों का स्थानांतरण सुनिश्चित कर, उन्होंने यह दिखाया है कि उनके पास ट्रम्प कार्ड है यह निर्धारित करने के लिए कि उत्तर प्रदेश का विजेता कौन होगा फलतः भारत में किसकी सरकार बनेगी. जिससे अब वह मुंहमांगी कीमत की मांग कर सकती हैं.
2. आरजेडी:
लोगों को उम्मीद थी कि लालू प्रसाद यादव के बिना उनकी पार्टी अलग-थलग हो जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. वह अररिया लोकसभा सीट पर चुनाव जीतने में कामयाब रही. राजद ने यह साबित किया है कि उसने आज भी अपना वर्चस्व बनाए रखा है और वो बिहार में बीजेपी की महत्वाकांक्षाओं को चोट पहुंचाने की क्षमता रखती है.
3. जातीय राजनीति:
रोजगार के अच्छे अवसर और आर्थिक विकास न होने पर, हिंदी गढ़ में जातीय समीकरण मायने रखता है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि जनता उस बीजेपी से धोखा खाया हुआ महसूस कर रही है जिसको उसने 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में भारी जनादेश से विजयी बनाया था.
3 हारने वाले
नीतीश कुमार:
चूंकि नीतीश कुमार की जेडी(यू) अपने मत बीजेपी को स्थानांतरित करने में असफल रही, बीजेपी में एक बार फिर से गठबंधन को लेकर पुनर्विचार जरूर हो सकता है. इस हार से नीतीश कुमार ने अपनी अहमियत खो दी है और नेतृत्वहीन राजद के लिए दरवाजा खोल दिया है.
कांग्रेस:
कांग्रेस का उपचुनाव लड़ने का कोई मतलब नहीं था, जिससे उन्हें नुकसान हुआ है. कांग्रेस को यूपी और बिहार से बाहर निकलकर लोकसभा की उन 150 सीटों पर लड़ने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहां वह बीजेपी की प्रमुख प्रतिद्वंदी है.
बीजेपी:
चूंकि बीजेपी के लिए हेडलाइन प्रबंधन और वर्णनात्मक नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है, इन दो महत्वपूर्ण सीटों को हारने का उनके पास कोई वाजिब कारण नहीं है. चुनाव धारणाओं के बारे में है और अजेयता की छवि धीरे-धीरे सभी सीटों पर कम होती जा रही है.
यहां बीजेपी के लिए भी 3 मुख्य सबक है- उसे 50 प्रतिशत वोटशेयर की आवश्यकता है, जो विभाजन से हासिल नहीं होगा, इसलिए उन्हें समृद्धि को लक्ष्य बनाना होगा. 2014 के चुनाव अभियान में नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए वादों को याद दिलाने के लिए भी यह एक चेतावनी है जो वह भूल गए हैं, लेकिन मतदाता नहीं. अगले कॉलम और वीडियो के लिए बने रहें.
(राजेश जैन 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं. टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर राजेश अब 'नई दिशा' के जरिए नई मुहिम चला रहे हैं. ये आलेख मूल रूप से NAYI DISHA पर प्रकाशित हुआ है. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है)
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