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चार धाम कैंसिल की तरह 'तीरथ यात्रा' चार महीने पूरा होने के पहले खत्म. तीरथ सिंह रावत (Tirath singh Rawat) ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया है. अब पूछने को यही रह गया है कि आचार, विचार और विश्व विजय को निकली पार्टी से देवभूमि संभल क्यों नहीं रही? तीरथ सिंह रावत जा रहे हैं तो उनके जाने का उत्तराखंड (Uttarakhand) और बीजेपी (BJP) के लिए मतलब क्या है?
तीरथ से पहले त्रिवेंद्र थे. कुंभ के महाआयोजन में कोरोना के कुछ नियम लागू कराना चाहते थे. छोटे राज्य में छोटा विरोध तो हो ही रहा था, वृहद वोटबैंक के खफा होने का डर था. सो त्रिवेंद्र की बलि ले ली गई. तीरथ आए और 'छा' गए. बोले कुंभ में कोई भी आए, कैसे भी आए, कोई नियम कानून नहीं.
मुख्यमंत्री बनते ही, कुंभ के भव्य आयोजन का ऐलान कर दिया.
दो महीने पहले से बनाई गई तमाम गाइडलाइंस को दरकिनार कर दिया.
देश और दुनियाभर के लोगों को बिना किसी पाबंदी के कुंभ में स्नान करने का न्योता दिया.
कुंभ में कोरोना नेगेटिव आरटीपीसीआर रिपोर्ट के नियम को भी खत्म करने की कोशिश की.
वो तो गनीमत है, न्यायपालिका ने जनता की जान बचाई, हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई और इस फैसले पर ब्रेक भी.
कोढ़ में खाज अंदाज में रावत का वो बयान भी आया कि कटी फटी जींस पहनने वाली महिलाएं बच्चों को क्या संस्कार देंगी? कभी कहने लगे कि ज्यादा राशन चाहिए तो 20 बच्चे पैदा करो, कभी खोज निकाला कि भारत को अमेरिका ने 200 साल तक गुलाम बनाया था. बहुत थू-थू हुई. प्रगतिशील पीएम का ऐसा पिछड़ा सीएम. बहुत गलत बात है.
ये गलत बातें उत्तराखंड की जनता भी समझती है. चंद महीनों बाद वहां चुनाव है. 'तीरथ' ने तीरथ में जो रायता फैलाया है, उसकी सजा के रूप में वोटर बीजेपी का शामियाना समेट सकती है, इसलिए ये भूलसुधार किया जा रहा है?
रावत कोई चुनाव जीतकर अपने बल बूते तो गद्दीनशीन हुए नहीं थे. रावत ने जिन मोदी को भगवान का दर्जा दे दिया था, क्या ये सब उनकी सहमति के बिना हो रहा था? आखिर आलाकमान की मर्जी के बिना उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन तो नहीं हुआ होगा? सवाल ये भी इस भूल सुधार की ऐसी क्या जरूरत-जल्दी आन पड़ी. पूरा देश मुट्ठी में करने निकले 'देवों' से देवभूमि का छोटा सा कुनबा कंट्रोल नहीं हो रहा? संघ के आदमी माने जाने वाले तीरथ को भी जाना पड़ रहा है. उत्तराखंड में इतना झगड़ा, इतना भय?
अविश्वसनीय!
उत्तराखंड का मालिक कौन है? पहाड़ या दिल्ली दरबार? छह महीने के अंदर तीसरा सीएम. राज्य के साथ खिलवाड़ नहीं तो क्या है?
अलोकतांत्रिक?
सवाल ये भी है कि भूल सुधार के रूप में जिन अनिल बलूनी, सतपाल महाराज, रमेश पोखरियाल निशंक की चर्चा चल रही है, क्या जनता उनके दर्शन से 'डर्टी पिक्चर' भुला देगी?
अनिश्चित.
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Published: 02 Jul 2021,11:29 PM IST