मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019उत्तरकाशी टनल हादसा: हिमालय में बिना सोचे-समझे निर्माण का कहर

उत्तरकाशी टनल हादसा: हिमालय में बिना सोचे-समझे निर्माण का कहर

सुरंगों का निर्माण बढ़ते ट्रैफिक से राहत के लिए किया जा रहा है, लेकिन इससे पर्यावर्णीय संकट भी पैदा हो रहा है.

अंजल प्रकाश
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>उत्तरकाशी टनल हादसा: हिमालय में बिना सोचे-समझे निर्माण का कहर</p></div>
i

उत्तरकाशी टनल हादसा: हिमालय में बिना सोचे-समझे निर्माण का कहर

(फोटो: PTI)

advertisement

उत्तराखंड (Uttarakhand) के हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में सुरंग निर्माण के दौरान हुए हादसे में 41 मजदूरों को फंसे हुए 2 हफ्तों से ज्यादा का समय हो गया है. इस हादसे के बाद अधिकारी तो उन्हें बचाने में लगे हैं, लेकिन इस संकटग्रस्त क्षेत्र में विकास परियोजनाओं के प्रति भारत के दृष्टिकोण का फिर से मूल्यांकन जरूरी हो गया है.

हिमालय में प्रोजेक्ट्स से बड़े पैमाने पर पैदा हो रहे जोखिम को इस सड़क सुरंग हादसे ने सामने ला दिया है. इस आपदा का स्त्रोत या तो भूस्खलन हो सकता है या सुरंग की संरचना से जुड़ा कोई कारण, लेकिन ये बताता है कि हमें कितना ध्यान रखने की जरूरत है.

वर्तमान ट्रेंड ये संकेत दे रहे हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनीतिक लोकलुभावनवाद और ऊर्जा स्रोतों को डीकार्बोनाइज करने की जरूरत ने भारत के दृष्टिकोण को कम सतर्क और ज्यादा तेज बना दिया है.

विवेकपूर्ण विकास की तत्काल आवश्यकता

एक समस्या जो स्थायी जीवन के बुनियादी सिद्धांतों और हिमालय के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डालती है, वो दुनिया के सबसे शक्तिशाली पहाड़ों के केंद्र में स्थित है. ये प्राचीन क्षेत्र लगातार हो रहे अंधाधुंध विकास से तबाह हो रहा है. इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बढ़ गए हैं और हिमालय को अपूरणीय क्षति का खतरा पैदा हो गया है.

हिमालय, जिसे अक्सर "दुनिया की छत" कहा जाता है, ने लंबे समय से अपने शानदार दृश्यों और असाधारण जैव विविधता से लोगों का ध्यान खींचा है. हालांकि, हाल ही में ढांचागत परियोजनाओं की आमद, विशेष रूप से संवेदनहीन सुरंग निर्माण ने इस शानदार इलाके को चोट पहुंचाई हैं.

हिमालय में, सुरंगों- जिन्हें कभी इंजीनियरिंग का चमत्कार माना जाता था, ने कनेक्टिविटी में सुधार किया और यात्रा के समय को कम किया, लेकिन इसमें कमियां हैं. विकास की अथक मुहिम के कारण पहाड़ों को काटने वाली सुरंगों के विशाल नेटवर्क ने पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से बाधित कर दिया है.

मूल रूप से यातायात के दबाव को कम करने के लिए डिजाइन की गई ये सुरंगें पर्यावरणीय गिरावट के लिए वाहक के रूप में काम कर रही हैं.

प्रतिष्ठित पर्वतीय मंदिरों को 900 किलोमीटर के हाईवे नेटवर्क से जोड़ने की महत्वाकांक्षा के कारण क्षेत्रीय विकास में तेजी आई है. हालांकि लक्ष्य इन मंदिरों को पूरे साल खोलने का है, लेकिन अप्रत्याशित परिणामों ने अमूल्य हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ वहां रहने और काम करने वालों पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर भी चिंता खड़ी कर दी है.

रणनीतिक कारणों से ये समस्या और भी जटिल हो गई है, जैसे उत्तर में हमारे पड़ोसी देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर की नकल करना और सेना की गतिविधियों को आसान बनाना. तिब्बती पठार पर चीनी सैनिकों की शानदार सड़कों तक पहुंच है, जबकि सीमा के इस तरफ भारत में ऊबड़-खाबड़ और चट्टानी संरचनाएं हैं.

हिमालय में अविवेकपूर्ण निर्माण से होने वाली क्षति

बहुत सावधानी से किए गए निर्माण का भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो जलवायु परिवर्तन के कारण और बढ़ जाता है. हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का नाजुक संतुलन वर्तमान में गंभीर खतरे में है. बढ़ते तापमान, अप्रत्याशित मौसम और हिमनदों के सिकुड़ने की परेशान करने वाली वास्तविकताएं अंधाधुंध निर्माण से होने वाली क्षति के कारण और भी गंभीर हो गई हैं.

एक समय मानवीय हस्तक्षेप के प्रति प्रतिरोधी रहे पहाड़ अब जलवायु परिवर्तन और लापरवाह विकास के संयुक्त प्रभावों का शिकार हो रहे हैं.

ग्लोबल वार्मिंग का ग्लेशियर के पिघलने की दर में हो रही वृद्धि से सीधा संबंध है, जो चिंता का एक प्रमुख कारण है. दक्षिण एशिया के लाखों लोगों के लिए, हिमालय के ग्लेशियर एक महत्वपूर्ण जल आपूर्ति स्त्रोत हैं, और उनके पिघलने से क्षेत्र की जल आपूर्ति सुरक्षित करने की क्षमता को गंभीर खतरा है.

पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में बिना सोचे निर्माण उन्मादी लोगों के चलते ये समस्याएं और तेज हो गई हैं. इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर जल आपदा हो सकती है.

इस सुरंग-दृष्टिकोण का एक और शिकार जैव विविधता है, जिसका भविष्य अंधकारमय है. अनेक दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियां, जिनमें से कई पहले से ही विलुप्त होने के कगार पर हैं, हिमालय में पाई जा सकती हैं. लापरवाह निर्माण के चलते पारिस्थितिक तंत्र खंडित हो रहा है और इन प्रजातियां के अस्तित्व पर संकट आ गया है.

हमें केवल छोटे समय में मिलने वाले लाभ के बजाय लंबे समय की स्थिरता के बारे में सोचना शुरू करना होगा. पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाए रखना न केवल नैतिक रूप से सही है, बल्कि आर्थिक रूप से भी जरूरी है. हिमालय में जटिल पारिस्थितिकी तंत्र नेटवर्क दुनिया की स्थिति का एक पैमाना है. मानवता अपने संकट संकेतों को नजरअंदाज नहीं कर सकती.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

वैश्विक खजाने के लिए सतत विकास में आगे

जब हम मुश्किल रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं तो पर्यावरण-अनुकूल और सतत विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. हिमालय में किसी भी बुनियादी ढांचा परियोजना में सामुदायिक भागीदारी, सख्त नियम और संपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन शामिल होना चाहिए. इसके अलावा, चूंकि इस प्रसिद्ध पर्वत श्रृंखला की समस्याएं सीमा पार भी हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग अनिवार्य है.

अब समय आ गया है कि हम हिमालय के बारे में अपनी सोच बदलें. हमें किसी भी कीमत पर विकास की संकीर्ण सोच को त्यागना होगा और इस विश्वव्यापी खजाने की प्राकृतिक अखंडता की रक्षा के लिए एक बड़ी रणनीति अपनानी होगी. हिमालय जीवन का संरक्षक है और हमें इसे भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना चाहिए. वे केवल उन्नति के साधन के रूप में देखे जाने से ज्यादा के हकदार हैं.

ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने और जलविद्युत का उपयोग करने से चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं, जो जलवायु परिवर्तन से और भी बदतर हो गई हैं. जलविद्युत का महत्व ज्यादा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण परियोजनाओं को लागू करना और चुनौतीपूर्ण हो गया है.

इस तरह की कोशिशों से बड़े पर्यावरणीय खतरे पैदा होते हैं, जैसा कि हाल की घटनाओं से पता चलता है- अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण एक बड़े जलविद्युत संयंत्र को बंद करना पड़ा और एक बांध बह गया.

वर्तमान रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करना और हमारी प्रोजेक्ट प्लानिंग में जलवायु परिवर्तन को शामिल करना जरूरी हो गया है. हिमालय में इमारतों को अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करना होगा, और डेटा को जांच के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखा जाना चाहिए. हिमालय में निर्माण गतिविधियों को पूरी तरह से नजरअंदाज करना असंभव है, लेकिन ज्यादा विचारशील, व्यवस्थित दृष्टिकोण भी जरूरी है.

हर घटना से न केवल बड़े पैमाने पर मौत की संभावना बढ़ जाती है, बल्कि परियोजनाओं की वित्तीय लागत के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्र को अपरिवर्तनीय क्षति की संभावना भी बढ़ जाती है. सवाल ये नहीं है कि हिमालय में विकास करना है या नहीं, बल्कि ये पर्यावरण और मानव जीवन दोनों की रक्षा के लिए, ज्यादा सचेत होकर जिम्मेदारी के साथ निर्माण की मांग करता है.

(अंजल प्रकाश भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफेसर (रिसर्च) हैं. यह एक ओपिनियन है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT