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आइये मैं आपसे एक सवाल करता हूं. हिंदुत्ववादी नेताओं का धर्म क्या है ? वो अपने जीवन में ‘राम धर्म’ को मानते है या ‘रावण धर्म’ को ? आप कहेंगे क्या बेवकूफी भरा सवाल है. जी हां, बिलकुल. आज जब पूरे देश में कठुआ मे एक आठ साल की बच्ची के साथ अमानवीय बलात्कार पर पूरा देश स्तब्ध है तब बीजेपी के नेता उन लोगों के साथ खडें है जिन पर बलात्कार के गंभीरतम आरोप हैं.
ये जानते हुये भी कि जिस हैवानियत के साथ कठुआ में आठ लोगों ने बलात्कार किया उसे सुनकर किसी शैतान का भी सिर शर्म से झुक जायेगा. लेकिन हिंदुत्व के स्वघोषित स्वयंसेवकों का सिर शर्म से नहीं झुका, वो उन हैवानों के साथ खड़े हो गये जिन्हें इंसान कहना हैवानियत का भी अपमान होगा.
ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले ये हिन्दुत्ववादी इतने खूंखार कैसे हो सकते हैं, वो बलात्कारियों के साथ कैसे खडे हो सकते हैं? इसका जवाब मेरे उस सवाल में है जो मैंने ऊपर पूछा था कि हिंदुत्ववादी नेता राम धर्म को मानते हैं या रावण धर्म को?
ये सवाल बहुत अटपटा है. लोग कहेंगे कि ये नेता तो जय श्रीराम का नारा लगाने वाले हैं, राम मंदिर के लिये जान-प्राण न्यौछावर करने को तत्पर हैं. वैसे में इस सवाल का क्या अर्थ है?
उन्हें वीर सावरकर कहते हैं. वीर क्यों कहते है ये मैं आज तक नहीं समझ पाया. मैं उन्हे विनायक दामोदर सावरकर के नाम से जानता हूं जिन्होंने भारतीय इतिहास की वो व्याख्या की है जिसने देश में आग लगा दी. सावरकर के समर्थक आज देश की सत्ता पर काबिज हैं.
राम-राम की वकालत करते हैं पर वो ये नहीं जानते कि सावरकर खुद ‘रावण धर्म’ को मानते थे. आइये उनकी किताब से एक उदाहरण देकर समझाता हूं. सावरकर अपनी किताब भारतीय इतिहास के छह वैभवशाली युग में चैप्टर आठ के पैरा 442-443 में लिखते हैं:
राक्षसनाम् परोधर्म: परदाराविघर्षणम्
परोधर्म: उतकृष्टतम कर्तव्य.
दूसरो की औरतों को अगवा करना और उनको बरबाद करना, अपने आप में राक्षस का परम धार्मिक कर्तव्य है.
ये किस्सा बता कर सावरकर कहते हैं:
सावरकर को ये तकलीफ थी कि उधर हिंदू, मुसलमान औरतों के साथ तमीज से पेश आते थे. उन्हें पूरा सम्मान देते थे. हिंदू उनकी तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखते थे. जिसकी वजह से मुसलमान हमलावरों को इस बात का कोई डर नहीं था कि अगर वो हार गये तो उनकी महिलाएं सुरक्षित नहीं रहेंगी. महिलाओं के प्रति हिंदू राजाओं और सैनिकों का ये रवैया सावरकर को नागवार गुजरा. वो क्रोधित हो गये. पैरा 449 में सावरकर लिखते हैं:
सावरकर औरतों के प्रति हिंदू पुरूषों के इस कृत्य को आत्महत्या के समान मानते थे. यानी उनका मानना था कि हिंदुओं को भी मुस्लिम औरतों के साथ बुरा बर्ताव करना चाहिये जैसा कि उनकी नजर में मुस्लिम आक्रमणकारी करते थे.
दिलचस्प बात है कि जिन शिवाजी को वो भारत के इतिहास में ऊंचा स्थान देते हैं कि उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के दांत खट्टे किये और हिंदू राज की स्थापना की, उनका वो उपहास उड़ाते हैं.
वो लिखते हैं:
सावरकर के जीवनी लेखक धनंजय कीर की कलम से सावरकर का मंतव्य और भी स्पष्ट हो जाता है. कीर लिखते हैं:
यानी अब कोई संदेह नहीं रह जाता कि सावरकर औरतों के साथ बलात्कार की वकालत कर रहे थे. इस संदर्भ में प्रसिद्ध चिंतक पुरूषोत्तम अग्रवाल कहते हैं:
यानी सावरकर रावण धर्म का समर्थन करते हैं. उन्हें राम का मर्यादित आचरण पसंद नहीं है. वो उनके लिये आदर्श नहीं हैं. सावरकर का तर्क है कि युद्ध में शत्रु के साथ किसी भी तरह की रियायत आत्महत्या है, घाटे का सौदा है और अगर शत्रु को परास्त करने के लिये उनकी औरतों के साथ बलात्कार भी करना पड़े तो हिचकना नहीं चाहिये.
दरअसल समस्या सावरकर की उस नजर में है जो राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ती है. वो भारतीय इतिहास को धर्मों के बीच एक सतत संघर्ष के रूप में देखते हैं. जहां हिंदू धर्म की हानि इसलिये होती है क्योंकि वो परोपकारी है, दयालु है, सदगुण संपन्न है, नैतिक मूल्यों से सजा संवरा है. ये सब उनकी नजर में हिंदू समाज की कमजोरियां हैं.
फिर वो मुसलमानों को शत्रु मान बैठते हैं. जिससे हिंदू सदियों से लड़ता आ रहा है और अकसर हारता भी रहा है. सावरकर को लगता है कि मुसलमान इसलिये जीतते हैं कि क्योंकि वो क्रूर हैं, उनमे दया ममता नहीं है, वो आक्रामक हैं, और शत्रु का मनोबल तोड़ने के लिये बलात्कार को युद्ध नीति के तौर पर इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकते.
सावरकर का ये नजरिया गलत है, विकृत है और इतिहास की समझ से परे है. ये जानबूझ कर गढ़ा हुआ लगता है कि क्योंकि यही सावरकर 1857 की बगावत पर लिखी अपनी किताब 1857 का स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की जमकर प्रशंसा करते हैं. उन्हें राष्ट्रवादी मानते हैं. पेज 114 पर सावरकर लिखते हैं:
सावरकर यहीं नहीं रुकते. वो पेज 169 पर फिर लिखते हैं:
ऐसे में क्या कारण है कि सावरकर रावण धर्म को मानने लगते हैं. ये विश्लेषण का विषय है. पर बलात्कार को उदात्त रूप देने का उनका प्रयास निंदनीय है. भारत आज उसकी कीमत चुका रहा है.
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(लेखक आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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