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(कॉमेडियन वीर दास (Comedian Vir Das) के 'टू इंडियाज' पर मोनोलॉग ने देश में तूफान खड़ा कर दिया है, जिसे समाज के विभिन्न धड़े से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है. जहां एक तरफ कई लोगों ने उनकी सराहना की है, वहीं दूसरों ने उन पर वैश्विक मंच पर देश को बदनाम करने का आरोप लगाया है. लेकिन वीर दास जिसका जिक्र करने में नाकाम रहे हैं वह है तीसरा इंडिया- जाति से ग्रस्त भारतीय समाज, जिससे कॉमेडियन और एंटरटेनमेंट जगत अक्सर आंखें चुरा लेता है. इसी परिदृश्य में संजय राजौरा द्वारा भारतीय कॉमिक्स को लिखा खुला पत्र यहां दिया गया है.)
प्रिय कॉमिक्स,
वीर दास ने अमेरिका में जो कुछ कहा, उससे मुझे कोई परेशानी नहीं है. मुझे समस्या मेरे चुने हुए प्रतिनिधि भारत में जो कह रहे हैं, उससे है. वीर के खिलाफ आक्रोश आज के भारत की कहानी है. वीर भले ही सबसे बुद्धिमान न हो, लेकिन वह इस आक्रोश से ज्यादा समझदार जरूर है. उन्होंने अपने दिल से बात रखी है, कुछ ऐसा जो अधिकांश भावुक भारतीय महसूस करते हैं. लेकिन भारत के बारे में कोई भी कहानी जाति के अभिशाप के जिक्र के बिना नहीं कही जा सकती. वीर दास ने इस बारे में बात नहीं करने का फैसला किया, लेकिन क्या यह एक विकल्प है? मुझे ऐसा नहीं लगता. इसके बारे में न सोचना और न बोलना विशेषाधिकार की बात है.
हाल ही में समाप्त हुए टी20 विश्व कप में भारतीय क्रिकेटर्स घुटने पर आए. एक टीम जिसमें शास्त्री, कोहली, शर्मा और गांगुली की चलती है. और इसमें सोने पर सुहागे हैं जय शाह, जिनके पिता नेपोटिज्म के खिलाफ हैं. फिर कॉमिक्स के लिए जाति के बारे में बात करना इतना मुश्किल क्यों है? जाति आपके चेहरे के सामने है, जीवन के हर क्षेत्र में है. कॉमेडियन जो तर्क देते हैं वह यह है कि वे अपने स्वयं के अनुभवों से ही जोक्स बनाते हैं. यदि मैं विशेषाधिकार वालों से अपने ऊपर जोक्स तैयार करने की अपेक्षा करता हूं तो क्या मैं बहुत अधिक अपेक्षा कर रहा हूं?
मुझे वीर दास से कोई परेशानी नहीं है, मुझे विशेषाधिकार से समस्या है. विशेषाधिकार खुद को आईने में देखने से इंकार कर देता है. वीर पर भारत को बदनाम करने का आरोप लगाने वाले लोग शायद कभी अपने विशेषाधिकार पर विचार नहीं करेंगे. यहां यही तो खेल है. वीर दास वास्तव में एक खोए हुए भारत की ओर जुनून से देख रहे हैं.
लेकिन खोया हुआ भारत किसके लिए? शहरी उच्च जाति के हिंदू और मुसलमान के लिए. वीर दास हमारी सबसे महत्वपूर्ण आवाजों में से एक हैं. लेकिन यह विशेषाधिकार की आवाज है. ऐसा कहने के बावजूद, वीर ने जो कुछ भी कहा वह झूठ नहीं है.
वो दो भारत के बारे में ऐसे बात करते हैं जैसे बहुत सारे पुराने दिनों को याद करने वाले हिंदू और मुसलमान 'गंगा-जमुनी तहजीब' के बारे में बात करते हैं, यह उच्च जाति की उनके विशेषाधिकार की समझ है. दुर्भाग्य से इस नैरेटिव पर कभी सवाल नहीं उठाया गया.
आज हमारे सामने "कॉमिक्स" की एक नस्ल है जो कहते हैं कि "हम पर हमला मत करो, हम सिर्फ एक जोक कर रहे हैं".
हमारे पास कितने भारत हैं? मेरी समझ है कि कई. लेकिन जिस भारत के बारे में मुझे अनुमान लगाने की जरूरत नहीं है, वो क्रूर, जातिवादी भारत है. यहां अहम सवाल ये है कि वीर दास के 'टू इंडियाज' से कौन नाराज है? उनका जाति सोपान में स्थान वास्तव में क्या है?
प्रिय कॉमिक्स अपनी खुद की कहानियों के बारे में आप बात करो, क्योंकि विशेषाधिकार की स्थिति से वो किस्से वास्तव में मजेदार हैं. लेकिन कभी- कभी अपने मायावती 'जोक्स' पर दोबारा विचार करें. कृपया करें, हाथ जोड़ के विनती है आप से. एक दलित महिला का मजाक बनाना, जो उत्तर प्रदेश से आई और राजनीति की कद्दावर नेता बन गई, ठीक इसी के लिए तो आपको खड़ा होना चाहिए था. प्रिय कॉमिक्स इसे समझें: आप ही हैं जिसे राजा को बताना चाहिए कि वह नंगा है. जब आप ऐसा करना बंद कर देते हैं तो आप सूरज बड़जात्या की एक फिल्म के माफिक हो जाते हैं, जिसे देखने और आनंद लेने के लिए परिवार एक साथ जा सकता है.
शुभकामनाएं,
संजय राजौरा
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