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विराट कोहली अब क्रिकेट के ‘भगवान’ को पीछे छोड़ चुके हैं, कोई शक?

विराट उस समय भारतीय क्रिकेट का कप्तान है जब सत्य नडेला माइक्रोसॉफ्ट और सुंदर पिचई गूगल के सीईओ हैं.

आशुतोष
नजरिया
Updated:
विराट कोहली के प्रदर्शन ने टीम इंडिया को बनाया अजेय
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विराट कोहली के प्रदर्शन ने टीम इंडिया को बनाया अजेय
(फोटो: द क्विंट)

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मैं नहीं मानता कि विराट कोहली हाड़ मांस का कोई इंसान है. वो या तो आसमान से आया है या फिर स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म का ईटी है. हो सकता है वो स्पाईडरमैन हो या फिर सुपरमैन. कुछ भी हो, साधारण तो वो नहीं है. वो अद्भुत है, अविश्वसनीय है, और सबसे बड़ी बात वो क्रिकेट के भगवान सचिन से बड़ा है. पहले ये कहने में मुझे थोड़ा संकोच होता था अब चौड़े से कहता हूं.

कोई सोचे या न सोचे पर मैंने तो नहीं सोचा था कि दक्षिण अफ्रीका में दक्षिण अफ्रीका की टीम को 5-1 से भारतीय टीम हरा सकती है. पर ये चमत्कार विराट की टीम ने कर दिखाया. विदेशी जमीन पर ये भारतीय क्रिकेट की अब तक की सबसे बड़ी और सबसे गौरवशाली जीत है. मैं उनमें से नहीं हूं जो कहे- नहीं जी वेस्टइंडीज में 1971 में अजीत वाडेकर की टीम ने जो जीत पाई थी वो सबसे बड़ी थी या फिर जब इंग्लैंड में इंग्लैंड को हराया था.

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ये जीत कुछ अलग और बेहद खास थी

ये कह सकते हैं कि 1983 की वर्ल्ड कप जीत सबसे बड़ी थी. ये वो जीतें थी जब भारतीय टीम लड़ते हुए जीतती थी. इस बार विराट की टीम ने दक्षिण अफ्रीका की टीम में हर मैच में भूसा भर दिया, दक्षिण अफ्रीका कभी जीतती हुई तो छोड़िये संघर्ष करती हुई भी नहीं दिखी.

ये जीत कुछ अलग और बेहद खास थी(फोटो: BCCI)

हारकर उठना मुश्किल है, लेकिन टीम इंडिया ने कर दिखाया

हारकर उठना मुश्किल है, लेकिन टीम इंडिया ने कर दिखाया(फोटोः PTI)

हमें ये नहीं भूलना चाहिये कि वनडे के पहले भारत दक्षिण अफ्रीका से 2-1 से टेस्ट सीरीज हार चुका था. भारतीय टीम की आलोचना हो रही थी. लोग दक्षिण अफ्रीका की गेंदबाजी के गुण गा रहे थे. कह रहे थे कि क्या पेस अटैक है. दुनिया का सबसे बेहतरीन पेस अटैक.

एक तरफ रबाडा है जो दुनिया का सबसे तेज गेंदबाज तो हैं ही, आईसीसी रैंकिंग में भी नंबर वन है. फिर वरनान फीलैंडर और मॉर्नी मार्कल. फीलैंडर की स्विंग और गेंद पर गजब का नियंत्रण. मार्कल की ऊंचाई और उछाल लेती गेंद अच्छे-अच्छे की छुट्टी कर देती है. इसमें जुड़ गया नयी सनसनी लुंगी एनगीदी.

मैं अभी डेल स्टेन और क्रिस मोरिस नाम नहीं ले रहा हूं. और अब जब वनडे की सीरीज खत्म हो गई तो तमाम एक्सपर्ट कहने लगे कि दक्षिण अफ्रीका की गेंदबाजी कमजोर थी. नई प्रतिभायें नहीं आ रही हैं. हारकर उठना मुश्किल होता है. विदेशी जमीन पर हारने के बाद पलट कर आना नामुमकिन माना जाता है. भारत न केवल खड़ा हुआ बल्कि रौंद दिया. ये हुआ सिर्फ एक शख्स की वजह से.

ये जीत ‘विराट विजय’ है!

अकसर हारने के बाद कंधे सिकुड़ जाते हैं. मनोबल गिर जाता है. आक्रामक खेल छोड़ टीमें रक्षण उतर जाती है. कप्तान बलि का बकरा खोजने लगता हैं.

पर विराट ने टीम को एकजुट किया. बड़े खिलाड़ियों को ललकारा. और सबसे बड़ी बात खुद आगे बढ़कर विपक्षी टीम पर हमला बोला. इस जीत में सबसे बड़ी भूमिका थी विराट की. तीन शतक. छह मैचों में पांच सौ से ज्यादा रन. विश्व कीर्तिमान.
(फोटो: BCCI)
उसकी सेंचुरियन की सेंचुरी देख माइकल वॉन कह बैठा कि विराट वनडे इतिहास का सबसे बड़ा बल्लेबाज है. यानी सचिन से भी बड़ा. विवियन रिचर्डस और डीन जोन्स से भी बड़ा. रिचर्डस खुद कहते हैं कि विराट में उसे उसका अक्स दिखता है. और सबसे बड़ी टिप्पणी की भारतीय क्रिकेट के सबसे बेहतरीन ओपनिंग बल्लेबाज और किंवदंती बन चुके गावस्कर ने. वो बोले ये मेरा सौभाग्य है कि मैंने आज विराट को बल्लेबाजी करते हुये देखा.

वो जीनियस है. गावस्कर बहुत नापतौल कर बोलते हैं. गावस्कर के बोलने के बाद अब मीन मेख निकालने की गुंजाइश नहीं बचती. गावस्कर उस युग से आते हैं जहां सोच संभलकर बोलने की शिक्षा मिलती थी. वैसे भी वो बल्लेबाज के तौर बिना खतरा उठाये खेलते थे. तेज गेंदबाजों के खिलाफ उनकी बल्लेबाजी एक जीता जागता करिश्मा थी. पर आक्रामकता उनका हुनर नही था. गेंद सही तो चौका नहीं तो कोई रन नहीं.

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गावस्कर अगर समाजवादी भारत के थे तो सचिन पूंजीवादी

सचिन तेंदुलकर ने भारतीय बल्लेबाजों को आक्रामकता का तेवर दिया. गावस्कर अगर समाजवादी भारत की उपज थे तो सचिन ने पूंजीवाद में सांस ली थी. सचिन का पूरा कैरियर भारतीय अर्थव्यवस्था के खुलने और पूंजीवाद के पनपने का काल रहा है. दुनिया के नक्शे पर भारत की पहचान स्थापित होने की प्रक्रिया का समय. पूंजीवाद की खासियत होती है वो प्रतिस्पर्धी होना सिखाता है. जो लड़ना नहीं जानता वो कामयाब नहीं हो सकता.

गावस्कर का समय “पर्सनल ब्रिलिंयस” का समय था. बाकी के खिलाड़ी दूसरी टीमों के सामने सहमे रहते थे. पर सचिन के आते आते माहौल काफी बदल गया. जो लड़ेगा नहीं वो खत्म हो जायेगा, इस सोच ने टीम में लड़ने का माद्दा पैदा किया. सौरव गांगुली ने पहली बार टीम को बताया कि पंरपरायें तोड़ने के लिये होती है और जीत किसी की परवाह नहीं करती.

ये सौरव का जज्बा था कि वो लॉर्डस की गैलरी में टी शर्ट उतार कर लहराता है. टी शर्ट का उतरना विश्व क्रिकेट के शक्ति संतुलन के बदलने और उस वक्त के पॉवर कोरिडोर में भारतीय क्रिकेट के आगमन की आहट थी. सचिन में फिर भी संकोच था. सौरव के नये साथी हरभजन सिंह, विरेंद्र सहवाग, जहीर खान और युवराज सिंह पूरी तरह से बिंदास थे. जी भर के जिंदगी जीते थे, किसी से नहीं दबते थे.

जगमोहन डालमिया और आईपीएल ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के सत्ता संतुलन को पूरी तरह से भारत के पक्ष में मोड़ दिया. इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था सरपट दौड़ रही थी. दुनिया की नजर भारत पर लगी थी.

विराट ने किस समय क्रिकेट में ली थी एंट्री

विराट सौरव और हरभजन के बाद की पीढ़ी का है. वो सही मायनों में नये संस्कारों की पैदाइश हैं. 1988 में पैदा वो जरूर हुआ लेकिन जब वो जवान हो रहा था तब भारत सहमा सिकुड़ा सांप संपेरों का देश नहीं था. जब उसने क्रिकेट खेलना शुरू किया तो भारत चीन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे तेज भागने वाली अर्थव्यवस्था बन चुकी थी. टीवी घर घर आ चुका था. एसी और कार हर परिवार के लिये विलासिता की जगह आवश्यकता बन चुके थे.

मोहल्ले के हर कोने पर जिम खुल रहे थे. चाऊमीन, पिज्जा और मोमोज ने लोगों का स्वाद बदल दिया था. संडे मार्केट की जगह बड़े बड़े माल्स जाना स्टेटस सिंबल बन चुका था. मैकडोनाल्ड में चिकन बर्गर खाना फैशन हो चुका था. स्टारबक्स में काफी पीना कोई बड़ी बात नहीं रह गई थी. मल्टीप्लेक्सों की बहार आ गई थी. देश आत्मविश्वास के घोड़े पर सवार था. भारतीय उद्योगपति, डॉक्टर, इंजीनियर, मैनेजर का लोहा दुनिया मानने लगी थी.

(फोटो: BCCI)
विराट उस समय भारतीय क्रिकेट का कप्तान है जब सत्य नडेला माइक्रोसॉफ्ट और सुंदर पिचाई गूगल के सीईओ हैं. इंदिरा नूई पेप्सी चला रही हैं. आज के युग में भारत और भारतीयों को नकार के कोई देश आगे नहीं बढ़ सकता. ये आज की सच्चाई है.

ये सच्चाई नये तरह के मूल्यों का आविष्कार करती है. नये संस्कार पैदा करती है. नये आत्मविश्वास को जन्म देती है. विराट की बल्लेबाजी में इस नये आत्मविश्वास की गहराई है और चरित्र की परिपक्वता भी. वो आक्रामक है पर जानता है कि कब ख़तरा उठाना है.

सौरव ने पहली बार भारतीय टीम को जीत के लिये खेलने का मंत्र दिया. धोनी ने जीत की आदत डाली. सौरव में “फ्लैमव्यायेंस” था. पर वो कभी कभी खोखली लगती थी. धोनी में स्थिरता थी. वो भारत का पहला “कूल” कप्तान था. सही मायनों में नये भारत का “नया” कप्तान. जो डरता किसी से नहीं था. परवाह किसी की नहीं करता था. धोनी ने वनडे वर्ल्ड कप जीता तो, T-20 का भी विश्व विजेता बना. चैपिंयन्स ट्रॉफी भी जीती. पर उसकी आक्रामकता उसकी बल्लेबाजी में थी. विराट, सचिन और धोनी से आगे इस आक्रामकता को ले जाता है.

डंके की चोट पर होता है विराट कोहली का काम

वो विपक्षी को “इंटिमिडेट” करता है. बल्लेबाजी से भी और मैदान में अपने व्यवहार से भी. वो इसकी परवाह नहीं करता कि कप्तान के नाते उसे कैसा बर्ताव करना चाहिये या लोग क्या कहेंगे. वो बिंदास है. ऊर्जा का ज्वालामुखी है. अनथक ऊर्जापिंड. वो “डॉमिनेट” करना चाहता है. विपक्षी को रौंदना चाहता है. ऐसा लगता है जैसे वो अतीत में भारतीय क्रिकेट की सारी हारों का बदला ले लेना चाहता हैं. और ये सब वो शांति से नहीं डंके की चोट पर करना चाहता है. सही मायनों में वो भारतीय क्रिकेट का सबसे बड़ा शोमैन है. इसलिये उसकी बाड़ी लैंग्वेज की तुलना न तो सचिन से की जा सकती है और न ही सुनील गावस्कर से और न ही धोनी से.

मुझे याद पड़ता है धोनी ने जब शादी की तो किसी को भी पता नहीं चला. दो चार मित्रों को छोड़कर उसने किसी को इन्वाइट भी नहीं किया था. सब कुछ चुपचाप. बिना शोरशराबे के. विराट ने धूमधड़ाके से ब्याह किया. पूरी दुनिया को दिखा के, पूरी दुनिया को जला के. पैसा धोनी के पास भी कम नहीं था पर उसने उत्तराखंड की वादियों की खामोशी में विवाह किया. विराट जा पंहुचा बोर्गो फिनोसियेतो. दुनिया का सबसे मंहगा “हॉलीडे डेस्टीनेशन”. जहां अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा परिवार समेत छुट्टी मनाने आते थे. और जहां एक हफ्ते का खर्चा है एक करोड़ रूपये. और शादी भी की तो किसी सामान्य लड़की से नहीं. एक खूबसूरत और बेहद सफल एक्ट्रेस से की.

विराट कोहली ने इटली में अनुष्का शर्मा से शादी की.(फोटोः Twitter)
मंसूर अली खान पटौदी ने साठ के दशक में जब शर्मिला टैगोर से शादी की थी तो तहलका मच गया था. पटौदी बहुत खूबसूरत थे. शर्मीला टैगोर टॉप की एक्ट्रेस थी. पटौदी भी कप्तान थे. पर एक फर्क है. पटौदी खानदानी नवाब थे और उनके पिता इफ्तिखार अली खान पटौदी भी टेस्ट मैच खेल चुके थे.

विराट एक मध्यवर्गीय परिवार का है. बचपन थोड़ा अभावों में कटा. भारत पटौदी के समय से काफी अलग निकल चुका है. 5-1 की जीत के बाद विराट अपनी पत्नी अनुष्का को क्रेडिट देना नहीं भूलता .

जोहान्सबर्ग टेस्ट में जीत के बाद जो छलांग विराट ने मारी वो तो इतिहास में दर्ज है. और ये भी दर्ज हो गया कि वो भारत के इतिहास का सबसे सफल कप्तान है. लगभग 80% मैच उसकी कप्तानी में भारत ने जीते हैं.

पिता की मौत के बाद भी खेला था विराट

महज 208 वनडे वें 35 शतक बनाने वाले विराट के सामने अभी पूरा आकाश खुला है. लेकिन मुझे वो विराट पसंद है जो 2006 में अपने पिता की मौत के बाद भी मैच खेलने जाता है, 90 रन बनाता है और फिर मैदान से ही सीधे श्मशान भूमि जाता है. विराट कहता है कि उस दिन के बाद से सब कुछ बदल गया. मेरे पिता मेरे लिये सबसे बड़ा सहारा थे. छोटी उम्र में पिता को खोने का दुख मुझे पता है.

(फोटो: BCCI)

जोहानसबर्ग की छलांग लगा मानो वो अपने पिता से कह रहा हो आप नहीं है तो क्या हुआ आपका हर सपना आपका बेटा पूरा करेगा. उसे इस बात पर गर्व है कि वो पिता का सपना पूरा कर रहा है. आज वो भारतीय टीम का कप्तान है. भारत को किसी भी ऊंचाई पर ले जाने की महत्वाकांक्षा उसमे नये ऊर्जा का संचार करती है, उसे और बेहतर खेलने के लिये प्रेरित करती है. वो भारत का सपूत है. कोई एलियन नहीं. कोई ईटी नहीं. वो हाड़ मांस का ही है. तभी तो उसमे भावनायें हैं, भावनाओं को प्रकट करने का उत्साह है. उसका रोम रोम बोलता है. वो नये भारत की पहचान है. वो सहमा सिकुड़ा हिंदुस्तान नहीं है.

(लेखक आम आदमी पार्टी के प्रवक्‍ता हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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Published: 17 Feb 2018,08:47 PM IST

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