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Election 2024: मोदी के खिलाफ लड़ाई में ममता की सबसे बड़ी ताकत महुआ मोइत्रा

Loksabha Eelction 2024: महुआ को चुनना इत्तेफाक नहीं, महुआ ने कैसे हासिल किया ममता का विश्वास?

सुब्रता नाग चौधरी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>ममता और&nbsp;महुआ मोइत्रा </p></div>
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ममता और महुआ मोइत्रा

फोटो: क्विंट हिंदी

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31 मार्च को जब ममता बनर्जी (Mamata Banrjee) ने अपनी पहली चुनावी रैली की तो भीड़ में खड़े लोगों के दिमाग में जो छवि छप गई, वह ये थी कि 'दीदी' महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) के हाथों को कसकर थामे हुईं थीं और उसे स्टेज पर लहरा रही थी, यह छवि ऐसी थी मानो ममता मैदान में इकट्ठा लोगों को अपने उम्मीदवार को देखने के लिए प्रेरित कर रही हों.

मोइत्रा पर विश्वास दिखा कर ममता बनर्जी ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया और भीड़ के सामने यह अपील की कि वह अपने वोट की ताकत से उस संसद में मोइत्रा को एक बार फिर बैठाए, जहां से नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें गलत पैंतरे अपनाकर, अपमानित कर निकाला था.

कृष्णानगर रैली के तुरंत बाद द क्विंट से बात करते हुए , उत्साहित और खुश महुआ ने कहा, "दीदी ने मुझपर जो विश्वास दिखाया है, मैं उससे बेहद खुश हूं. ममता दीदी ने मुझे कहा है कि मैं अपने पुराने मार्जिन में सुधार करके संसद में पूरी ताकत के साथ वापस एंट्री करूं. मैंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए काम किया है और मुझे उम्मीद है कि वहां के लोग फिर से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को गले लगाएंगे"

रैली में आई भीड़ ने चुनाव के लिए ममता का दिया नारा दोहराने लगी- तृणमूल एर गर्जन, बिरोधि डेर बिशोरजन (जब तृणमूल कांग्रेस दहाड़ती है, तो प्रतिद्वंद्वीयों का विसर्जन हो जाता है). यह नारा ममता ने अपनी पार्टी का थीम गाना भी बना लिया है.

चुनाव में महुआ को चुनना महज इत्तेफाक नहीं

पीएम के रैली के एक हफ्ते बाद ममता का कृष्णानगर और महुआ को अपना चुनाव अभियान के लॉन्च पैड के रूप में चुनना महज इत्तेफाक नहीं हो सकता.

2 मार्च को, चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होने से पहले और संदेशखाली में गहमागहमी के दिनों के बाद पीएम मोदी चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर के लिए कोलकाता पहुंचे थे. पश्चिम बंगाल अबतक भगवा ब्रिगेड से दूर रहा है लेकिन बीजेपी की यह लगातार कोशिश है कि इस क्षेत्र को कैसे भी अपने पाले में लाया जा सके.

एक सार्वजनिक रैली में, प्रधानमंत्री ने कैश-फॉर-क्वेरी मुद्दे को टाल दिया, जिसमें महुआ के खिलाफ आरोप लगाए गए थे. लेकिन महिला कल्याण, सुरक्षा और सशक्तिकरण से जुड़ी केंद्रीय योजनाओं को लागू करने में विफलता के लिए टीएमसी सरकार की तीखी आलोचना की.

उन्होंने टीएमसी के मां, माटी, मानुष नारे का भी जिक्र किया और पार्टी पर घोर कुशासन का आरोप लगाया. पीएम ने कहा इससे बंगाल की माताओं, भूमि और यहां के लोगों को भारी पीड़ा पहुंची है. पीएम मोदी ने संदेशखाली का जिक्र करते हुए आरोप लगाया, ''प्रदर्शनकारी बहनें न्याय की मांग कर रही हैं लेकिन टीएमसी सरकार ने उनकी बात नहीं सुन रही.''

यह घटना काफी हद तक ममता बनर्जी द्वारा कृष्णानगर से लोकसभा अभियान कि शुरूआत करने और उनकी पसंद की वजह को दर्शाता है, जहां उन्होंने महुआ पर ज्यादा ध्यान दिया. उन्होंने उसे एक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित महिला सांसद के रूप में दिखाने कि कोशिश कि जिसे अन्यायपूर्ण ढंग से सताया गया और भारी बहुमत से संसद से निष्कासित कर दिया गया और अब ईडी और सीबीआई द्वारा उससे पूछताछ की जा रही है.

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ममता ने मोइत्रा के मामले में बीजेपी द्वारा CBI और ED के इस्तेमाल की आलोचना की

23 मार्च को दक्षिण कोलकाता के अलीपुर स्थित महुआ के पैतृक घर पर सीबीआई और ईडी ने कई घंटों तक छापेमारी की थी.

छापेमारी के वक्त मोइत्रा अपने गृहनगर में थीं लेकिन कैश-फॉर-क्वेरी मुद्दे मामले में पूछताछ करने के लिए सीबीआई और ईडी कृष्णानगर टीएमसी पार्टी कार्यालय भी पहुंची. कोलकाता के जिस घर पर सीबीआई ने छापा मारा, वह महुआ के माता-पिता का था.

एक बार फिर, सीबीआई और ईडी ने कथित विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) उल्लंघन पर दर्ज एक एफआईआर के संबंध में उपस्थिति के लिए मोइत्रा को समन जारी किया है.

महुआ ने जांच एजेंसियों द्वारा भेजे पिछले तीन समन को नजरअंदाज कर दिया है और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इससे उन पर दंडात्मक कार्रवाई का खतरा मंडरा रहा है.

अपने भाषण में ममता ने ईडी पर निशाना साधते हुए ना सिर्फ बीजेपी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया बल्कि मोइत्रा के बुजुर्ग मां-बाप जिनका केस से कोई लेना देना नहीं है, उन्हें परेशान करने का भी आरोप लगाया.

बंगाल के मुख्यमंत्री ने भीड़ से कहा, “उन्होंने (बीजेपी) उस उम्मीदवार को बाहर कर दिया है जिसे आपने संसद के लिए चुना था. आपको पिछली बार से भी बड़े जनादेश के साथ इसका जवाब देना होगा, ”

अब जिन आलोचकों ने कैश-फॉर-क्वेरी मुद्दे पर ममता के चुप्पी को मोइत्रा से दूरी के तौर पर समझा था, उन्हें अब समझ आ गया होगा कि मोइत्रा ने खुद के व्यक्तित्व को स्थापित करने के लिए शांत और धैर्य के साथ एक राजनीतिक रुख अपनाया.

महीनों और हफ्तों की अशांति के बाद, आखिरकार वह क्षण आया, जब पार्टी प्रमुख द्वारा महुआ की उम्मीदवारी के सार्वजनिक समर्थन ने सभी संदेहों और अटकलों को दूर कर दिया.

महुआ ने कैसे हासिल किया ममता का विश्वास?

क्विंट के यह सवाल पूछने पर कि "संसद में अपनी वापसी पर उन्हें क्यों विश्वास है" मोइत्रा ने कहा,

"मैं जमीनी स्तर पर काम करती हूं. मैंने अपनी सांसद निधि का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया है. मेरे बैंक खाते में 64 रुपए छोड़कर मिले MPLADS (संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना) के तहत सभी पैसे मैंने जन कल्याण में लगा दिए. मेरी लोकसभा सीट के तहत आने वाली हर क्षेत्र में हमने सड़क और चिकित्सा के बुनियादी ढांचे जैसी तमाम सुविधाएं मुहैया कराई है. मैं अपने निर्वाचन क्षेत्र के सबसे ग्रामीण हिस्से में रहती हूं. इसलिए मैं गांवों में जाने के लिए मुझे चुनाव का इंतजार नहीं करती. मैं पूरे साल कार्यकर्ताओं और कैडर से मुलाकात करती हूं. महिलाएं ममता दी की योजना की बड़ी लाभार्थी हैं और वे हमेशा हमारी पार्टी को आशीर्वाद देती हैं"
- महुआ मोइत्रा

कोलकाता के भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) के एक राजनीतिक विश्लेषक सुभोमोय मोइत्रा ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि सभी ने यह सोचा कि कैश-फॉर-क्वेरी विवाद के बाद ममता और महुआ के बीच कुछ "दूरियां" आ गईं. लेकिन कृष्णानगर रैली ने उस अंतर को पाट दिया, जिससे महुआ को पार्टी के भरोसेमंद लेफ्टिनेंट के रूप में वापस लाया गया.

महुआ के अच्छा वक्ता और बेहतर विचार-विमर्श के कौशल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. कम्यूनिटी पार्टी ऑफ इंडिया या यहां तक ​​कि पिछले सालों में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) जैसे कम्युनिस्ट संगठनों में ऐसे वक्ता बहुतायत में पाए जाएंगे, जो प्रतिष्ठित सांसद के रूप में ट्रेंडसेटर बन गए.

ISI के प्रोफेसर ने कहा, "महुआ मोइत्रा कुछ हद तक कमोबेश डेरेक ओ'ब्रायन, डॉ.अमित मित्रा और प्रोफेसर सौगत रॉय जैसे बेहतरीन वक्ताओं के अनुरूप प्रतीत होती हैं. कोई वजह नहीं है कि ममता बनर्जी को महुआ जैसे सांसद का समर्थन नहीं करना चाहिए."

अपनी उम्मीदवारी को जनता का समर्थन मिलने और दीदी से भरपूर आशीर्वाद मिलने के बाद , महुआ कृष्णानगर लोकसभा सीट पर चुनौती लेने के लिए उत्साहित और प्रेरित दिखीं. उन्होंने 2019 में 63,000 वोटों के अंतर से यह सीट जीती थी.

कृष्णानगर सीट के अंतर्गत कई विधानसभा क्षेत्रों में एससी/एसटी मतदाता (विशेष रूप से मटुआ समुदाय के सदस्य) भी चुनाव पर असर डालते हैं. वहीं, नागरिकता संशोधन अधिनियम के (CAA) चुनाव की पूर्व संध्या पर लागू होने से - मतुआ, जो सीएए अधिनियमन से लाभ की उम्मीद कर रहे थे, उनके बीच कई भ्रम पैदा हुए.

लेकिन प्रक्रियात्मक जटिलताएं और डंवाडोल स्थिति ने इस समुदाय पर गहरी छाप छोड़ी है तो यह तय करना मुश्किल होगा कि इनका वोट किसके खाते में जाएगा.

(लेखक कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक विचारात्मक लेख है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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