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जटिल प्रशासनिक व्यवस्था वाले ईरान में प्रशासन कई स्तरों पर संचालित होता है. चुने राष्ट्रपति और सरकार को संसद ही नहीं बल्कि धार्मिक व्यवस्था के सर्वोच्च नेता के सुझावों के अनुसार भी चलना पड़ता है. खुमैंनी क्रांति से जन्में और उसके मूल्यों के प्रति समर्पित रिपब्लिकन गार्ड्स राष्ट्रपति की जगह सर्वोच्च नेता के प्रति उत्तरदायी हैं.
ईरान से बातचीत में इन सभी बातों को ध्यान में रखकर ही पूरी रणनीति तैयार करनी चाहिए, क्योंकि यह केवल अभी नहीं, बल्कि, भविष्य में भी काम आएगी. इसलिए रूहानी की इस यात्रा में ऊर्जा और अन्य जुड़े आपसी मसलों के साथ खाड़ी क्षेत्र की अन्य स्थिति पर भी चर्चा होनी चाहिए.
यह एक गंभीर सच्चाई है कि परमाणु समझौते के पहले अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान के साथ उर्जा और अन्य क्षेत्रों की परियोजनाओं में साझेदारी व तेल खरीदी पर बुरा असर पड़ा था.
ईरानी बैंकों और उनसे जुड़ी कंपनियों के साथ काम करने वाली कंपनियों पर अमेरिकी पाबंदी के कारण भारत को ईरान के साथ जुड़ी कई परियोजनाओं से पीछे हटना पड़ा था. पर अब समय आ गया है कि फिर से बड़े पैमाने पर ईरान से तेल और गैस की खरीदारी शुरू की जाए.
चाबहार पोर्ट और उसका इंडस्ट्रियल फ्री जोन भारत के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री मोदी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस मुद्दे पर बात आगे बढ़े.
इसी तरह मोदी अफगानिस्तान के मुद्दे पर रूहानी की राय जान सकते हैं, जहां क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव आया है और पाकिस्तान के साथ-साथ अब ईरान, रूस भी तालिबान का समर्थन कर रहे हैं. इस कारण तालिबान ने अफगान राष्ट्रपति घनी अब्दुल्ला के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है. इसके अलावा पाकिस्तान अभी भी भारत और अफगान विरोधी आतंकी संगठनों का समर्थन कर रहा है.
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रूहानी की इस यात्रा से मोदी की पश्चिम एशिया रणनीति की सफलता भी नजर आती है.
इस मामले में इजरायली अखबार “द जेरूसलम पोस्ट” के 13 फरवरी के अंक में छपी टिप्पणी उल्लेखनीय है. “मोदी ने इस क्षेत्र में अपनी विदेश नीति को भारत के हित में बेहतर ढंग से साधा है. उन्होंने आपस में लगातार लड़ने वाले देशों के नेताओं को अलग-अलग तरह से साधते हुए पहले नेतान्याहू का स्वागत किया फिर फिलिस्तीन सहित ओमान और सऊदी अरब का दौरा किया. अब वो ईरानी राष्ट्रपति का स्वागत करने वाले हैं."
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(लेखक भारत के विदेश विभाग के (पश्चिम विंग) के सचिव रहे हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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