मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019आखिर देवियों के मंदिर में क्यों नहीं होतीं महिला पुजारिन?

आखिर देवियों के मंदिर में क्यों नहीं होतीं महिला पुजारिन?

क्या महिलाओं को तमाम तरह की सत्ताओं से दूर रखने की कोशिश की जाती रही है 

गीता यादव
नजरिया
Published:
मंदिरों में जाने वालों में महिलाएं बड़ी संख्या में होती हैं.
i
मंदिरों में जाने वालों में महिलाएं बड़ी संख्या में होती हैं.
(फोटो: क्विंट)

advertisement

मैं आस्तिक महिला हूं. ईश्वर में मेरी आस्था है और उसका मैं सार्वजनिक प्रदर्शन भी करती हूं. उत्तर भारत के लगभग हर बड़े मंदिर में गई हूं. देवी के नौ धाम के दर्शन 4 साल पहले ही पूरे कर लिए थे. मथुरा-वृंदावन तो कई बार वीकेंड में देख लिए हैं. दो महीने हरिद्वार में बिताये, उस समय ऋषिकेश और नीलकंठ भी कई बार देखा. उज्जैन तो स्पेशल तौर पर दादी ने भेजा. जयपुर पुष्कर भी रहकर आई. हर महीने किसी न किसी बड़े धार्मिक स्थल जाती रहती थी.

इनमें से किसी भी मंदिर में कोई महिला पुजारिन (टेम्पल हेड) मुझे नहीं मिली. सब पुजारी पुरुष ही होते हैं. विडंबना तो देखो, वैष्णो देवी जैसे देवी मंदिरों में भी महिला पुजारिन नहीं मिली. इन मंदिरों के संचालक और कर्ताधर्ता भी सिर्फ पुरुष होते हैं. अब समझ नहीं आता एक देवी को खाना खिलाते, नहलाते, कपड़े बदलते पुरुष लोग अच्छे नहीं लगते हैं. ये काम तो महिला ही करें तो ज्यादा अच्छा लगेगा न. क्योंकि ये काम मंदिरों में होते हैं, इसलिए कम से कम देवियों के मंदिर में तो महिला पुजारिन ही होनी चाहिए.

मेरा एक और ऑबजर्वेशन यह है कि इन मंदिरों में जाने वालों में महिलाएं बड़ी संख्या में होती हैं. मंदिर देवी का और मंदिर जाने वालों में भी महिलाएं ही बड़ी संख्या में, लेकिन मंदिर चलाने वालों में सिर्फ पुरुष. 
मंदिर देवी का और मंदिर जाने वालों में भी महिलाएं ही बड़ी संख्या में लेकिन मंदिर चलाने वालों में सिर्फ पुरुष. फोटो:iStock 

मैं समझने की कोशिश करती हूं कि ऐसा क्यों है. दरअसल मंदिर या कोई भी धर्मस्थल सिर्फ आस्था के नहीं बल्कि सत्ता और संपत्ति के भी केंद्र हैं. धर्मसत्ता एक प्रमुख सत्ता है. पुजारी चूंकि देवी-देवता और आम भक्त के बीच का मध्यस्थ होता है, इसलिए उसकी कही बातों का समाज में महत्व होता है. इसलिए आप पाएंगे कि हर चुनाव से पहले नेता और राजनीतिक दल प्रमुख मंदिरों और मठों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं. धर्मस्थलों के संचालकों की समाज में खासी प्रतिष्ठा होती है.

इसके अलावा, मंदिर आमदनी के केंद्र भी हैं. खासकर उत्तर भारत में मंदिर निजी नियंत्रण में हैं. जबकि दक्षिण भारत में बड़ी संख्या में मंदिर ऐसे हैं, जिनके संचालन में सरकार की भी भूमिका होती है. लेकिन ऐसे मंदिरों में भी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा पुजारियों और मंदिरों में उनके द्वारा संचालित और नियंत्रित कारोबारियों का होता है. 

दरअसल महिलाओं को तमाम तरह की सत्ताओं से दूर रखने की कोशिश की जाती रही है.

1. राजसत्ता में महिलाएं अपवाद को छोड़ दें, तो हमेशा किनारे रहीं. सामंतशाही के युग में बेटे को ही राजगद्दी मिलती थी और बेटियों के लिए श्रेष्ठ विकल्प उनका किसी अच्छे परिवार में विवाह हो जाना होता था. वर्तमान राजनीति में भी महिलाएं हाशिए पर ही हैं. कुछ महिलाएं बेशक राजनीति के शिखर पर नजर आती हैं लेकिन कुल मिलाकर संसद और विधानसभाओं में उनकी हिस्सेदारी बहुत कम है.

ज्ञान की सत्ता

भारत में ज्ञान पर पुरुषों का नियंत्रण रहा है. गुरुकुलों के दौर में एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता जब किसी गुरुकुल की संचालक कोई महिला हो. गुरुकुलों में लड़कियों के शिक्षा प्राप्त करने की भी कोई मिसाल नहीं है. महिलाओं का रचा हुआ भारत में एक भी प्राचीन ग्रंथ नहीं है.

कुछ महिलाएं बेशक राजनीति के शिखर पर नजर आती हैं, लेकिन कुल मिलाकर संसद और विधानसभाओं में उनकी हिस्सेदारी बहुत कम है.फोटो:iStock 
गुरुकुल युग के बाद भारत में शिक्षा केंद्रों में महिलाओं का प्रवेश होता है और 1848 में जाकर सावित्रीबाई फुले लड़कियों का पहला स्कूल खोलती हैं. लेकिन उनका भारी विरोध होता है. वे जब पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थीं, तो उन पर गोबर और गंदगी फेंक दी जाती थी. इस वजह से वे साड़ी का दूसरा सेट झोले में लेकर पढ़ाने जाती थीं.

आजादी के बाद लड़कियों की शिक्षा में हिस्सेदारी तो बढ़ी है, लेकिन उच्च शिक्षा केंद्रों में प्रोफेसर और कुलपति जैसे पदों पर महिलाएं लगभग अनुपस्थित हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

धर्म की सत्ता

धर्म की सत्ता महिलाओं के लिए अपने दरवाजे खोलने के लिए तैयार नहीं है. अब भी ऐसे मंदिर हैं, जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है और इस हक के लिए महिलाओं को आंदोलन करना पड़ता है. मंदिरों में रजस्वला महिलाओं का प्रवेश मना है.

वहीं एक मंदिर में तो उस उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, जिस उम्र में वे बच्चे पैदा कर सकती हैं. कोई भी मंदिर गर्भगृह में महिलाओं को घुसने की इजाजत नहीं देता. मंदिरों के संचालकों में महिलाएं नहीं हैं. अक्सर मंदिरों में महिलाएं या तो भक्त के रूप में जाती हैं, या माला बनाने वाली के रूप में बाहर बैठती हैं या झाड़ू-सफाई करने के लिए अंदर घुसती हैं.

धर्म की सत्ता महिलाओं के लिए अपने दरवाजे खोलने के लिए तैयार नहीं हैफोटो:iStock 
पुराने समय में वे देवदासी के रूप में मंदिरों से जुड़ी होती थीं. महिलाओं के शोषण की इस परंपरा पर अब कानूनी रोक है, लेकिन यह कई रूपों में अब भी जारी है.

यह मंदिरों और धर्म संस्थाओं के ही हित में होगा कि वे महिलाओं को पुजारी के तौर पर लाएं और मंदिरों के संचालन में भी उनको हिस्सेदार बनाएं. धर्म आस्था का विषय है. धर्म इसलिए अस्तित्व में है क्योंकि लोग उसे मानते हैं. अगर आधी आबादी को यह लगे कि जिस धर्म में उसकी इतनी गाढ़ी आस्था है, वे पुरुषों की संस्थाएं हैं, तो यह धर्म के लिए शुभ बात नहीं होगी.

यह मंदिरों और धर्म संस्थाओं के ही हित में होगा कि वे महिलाओं को पुजारी के तौर पर लाएं और मंदिरों के संचालन में भी उनको हिस्सेदार बनाएं.फोटो:iStock 

अगर मंदिरों को लंबे समय तक रहना है, तो उन्हें महिला पुरोहितों की जरूरत है. मैं यह बात उस दौर में कह रही हूं जब दुनिया में नास्तिकता बढ़ रही है. दुनिया में नास्तिक लोगों की संख्या पर सर्वे होने लगे हैं. लेकिन जहां तक भारत की बात है, निकट भविष्य में ऐसा नहीं लगता कि यहां की बड़ी आबादी नास्तिक होने वाली हैं. इसलिए जब तक धर्म, भगवान, मंदिर की प्रांसगिंकता है जरुरी है इन मदिरों का संचालन महिलाओं के हाथ भी बराबर के तौर पर हो.

ये भी पढ़ें-

साड़ी पहनने वाली सभी औरतें बहन हैं,लेकिन सभी बहनें समान नहीं हैं

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT