advertisement
‘मणिकर्णिका’ – ये शब्द सुनते ही अधिकांश के जेहन में वाराणसी में गंगा तट का प्रसिद्ध शमशान घाट कौंधता है, जिसके बारे में मशहूर है कि वहां आग कभी नहीं बुझती. लेकिन इसी विशेष नाम से बनी फिल्म हमें याद दिलाती है उस शख्सियत के बचपन के नाम की. जिसे दुनिया झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जानती है.
विदेशियों के खिलाफ महारानी ने हथियार उठाए, और अपने भरोसेमंद सिपाहियों की उस टुकड़ी के साथ अंग्रेजों से लोहा लिया, जिन्हें विदेशियों के शब्दकोश में विद्रोहियों के नाम से जाना जाता था. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के दिल में भी उस महारानी के लिए इतना सम्मान था कि उन्होंने अपने आजाद हिन्द फौज के एक रेजिमेंट का नाम उनके नाम पर रखा.
देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता की पंक्तियां भी आपको याद होंगी, “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी! चमक उठी सन् सत्तावन में वो तलवार पुरानी थी”. यकीनन इन पंक्तियों ने मृत्यु के 150 सालों से अधिक समय के बाद भी उस महारानी को हमारे दिलो-दिमाग में जीवंत बना रखा है.
इसी दिशा में एक प्रयास कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित शोध पत्र ‘Gender, History and Fable’ है, जो देशभक्त शदीह की पुण्यभूमि में किवदंतियों को यथार्थ से अलग करने की कोशिश है.
और अब फिल्म मणिकर्णिका, जिसकी निर्माता, निर्देशक और मुख्य किरदार की भूमिका में हैं, प्रतिभावान, तेज-तर्रार और अपने बयानों से अक्सर विवादों में रहने वाली कंगना रनौत. ये पूछना असंगत या अप्रासंगिक बिलकुल नहीं लगता, ‘फिल्म रिलीज के लिए यही समय क्यों चुना गया है?’
इससे पहले एक और फिल्म ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ ने कांग्रेस समर्थकों की त्योरियां चढ़ाई हैं. आरोप है कि ये फिल्म यथार्थ से परे है और 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के चुनाव प्रचार का हिस्सा है. लगता है कि फिल्म निर्माता-निर्देशकों ने भांप लिया है कि ये मौसम ‘बायोपिक्स’ का ही है.
केतन मेहता की पटेल और मंगल पांडे, और एटनबरो की गांधी उसी कड़ी का हिस्सा हैं, जिस कड़ी में जोधा-अकबर शामिल है.
यहां दीपिका पादुकोण को लेकर बनी पद्मावत फिल्म पर बिना मतलब का विवाद भी उल्लेखनीय है, जिसमें पद्मावत के रूप में एक अर्ध-पौराणिक किरदार को दिखाया गया है. लेकिन ये भी सच है कि अब हमारी लेखनी में अपने जीवन को लेकर डर भी स्पष्ट झलकता है. दुर्भाग्य की बात है कि ‘मशहूर’ वैज्ञानिकों को भी कहना पड़ा है कि रामायण और महाभारत पौराणिक कथाएं नहीं, बल्कि इतिहास का हिस्सा हैं.
लेकिन झांसी की रानी निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व है, जिन्हें लाखों-करोड़ों लोगों का प्यार और सम्मान हासिल है. लेकिन इस व्यक्तित्व के चरित्र चित्रण के नुकसान भी स्पष्ट हैं. पहला सवाल तो ये कि उसपर फिल्म बनाने के लिए यही वक्त क्यों चुना गया? ये भी पूछा जा सकता है, कि जिस महिला की कभी ‘जॉन ऑफ आर्क’ से तुलना की जाती थी, उसका चरित्र चित्रण में कितना न्याय किया जाएगा? और सबसे बड़ा सवाल, क्या ये फिल्म हिन्दी बहुल क्षेत्र और महाराष्ट्र में वोटरों के रुझान पर असर डाल रही है?
अब फिल्म की बात करते हैं. फिल्म कंगना की है. मुझे फिल्म को देखकर पहली परेशानी हुई, कि दृश्यों को प्रभावी बनाने के लिए इसमें ग्लैमर और अतिरंजना का कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल किया गया है. कुल मिलाकर ये फिल्म मुगल-ए-आजम और बाहुबलि का मिश्रण लगती है.
झांसी का किला एक छोटी पहाड़ी पर बना है. इसमें फतेहपुर सिकरी, आगरा या दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों जैसी भव्यता नहीं है. स्पेशल इफेक्ट्स बेहतरीन हैं, लेकिन बाहुबलि और नेटफ्लिक्स सीरीज मिरजापुर के बाद दर्शकों को महसूस होता है. कि कुछ नया देखने को नहीं मिल रहा. गीतों के बोल खूबसूरत हैं और संगीत कर्णप्रिय. लेकिन सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता के सामने फीकी हैं.
झांसी बुंदेलखंड का हिस्सा है, जहां की जमीन ऊबड़-खाबड़ और सूखी हुई है. ये उस हरियाली भरी घाटी से बिलकुल अलग है, जहां (कथित विद्रोह के) नारे लगते हैं.
ये एक ऐसा समय है, जिसे चीनियों के मुताबिक ‘दिलचस्प समय’ कह सकते हैं. आजादी के बाद अभिव्यक्ति की आजादी पर इतना खतरा कभी नहीं मंडराया. सहिष्णुता की भावना इतनी कम कभी नहीं रही. ऐसे में कोई नहीं जानता कि किसी फिल्म, पुस्तक या कार्टून को कब, किस नजरिये से देखा जाएगा. उस लिहाज से मणिकर्णिका सुरक्षित दिखती है.
मूर्तियां खड़ी करनी हो या फिल्म बनानी हो, इन दिनों सबकुछ एक शैतानी रणनीति का हिस्सा है. ये फिल्म के लिए नाइंसाफी है. एक पुरानी कहावत है, “म्यान को देखकर तलवार की धार का पता नहीं चलता.”
यह भी पढ़ें: Manikarnika’ Review: पूरी फिल्म में तलवारबाजी से छाईं कंगना रनौत
(पद्मश्री से सम्मानित प्रोफेसर पुष्पेश पंत एक प्रसिद्ध भारतीय अकादमिक, व्यंजन आलोचक और इतिहासकार हैं. ट्विटर पर @PushpeshPant पर उनसे सम्पर्क किया जा सकता है. आलेख में दिये गए विचार उनके निजी विचार हैं. क्विंट इससे सहमति नहीं जताता और न इसके लिए जिम्मेदार है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined