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जनरल साहब, आप हिंदुस्तानी महिला योद्धाओं को लेकर क्यों गलत हैं?

कमी हमारे ‘नायकों’ में है जो महिलाओं के कंधों को खुद ही हटा रहे हैं!  

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इंडियन आर्मी युद्ध में महिलाओं के रोल के लिए अभी तैयार नहीं है. ये बयान आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत का है. लेकिन ये बताने के लिए वो गलत हफ्ता चुन बैठे. ऐसा इसलिए क्योंकि देश की मशहूर महिला वाॅरियर की जिस बायोपिक का लंबे समय से इंतजार था, उसका ट्रेलर भी उसी हफ्ते में आया जब जनरल बिपिन रावत ने ये बयान दिया. ’मणिकर्णिका’ में रानी लक्ष्मीबाई के रोल में कंगना रनौत को हम तलवार भांजते देख सकते हैं.

बहस करने के लिए भले ही कोई कह दे कि रानी की शादी से पहले का ये नाम- मणिकर्णिका तो एक मिथ है. लेकिन आज ये तो जरूर एक मिथ ही है कि महिलाएं युद्ध के मैदान में उतरने के काबिल नहीं हैं.

महिला योद्धाओं की मजबूत परंपरा

हमारी ‘शुद्ध देसी भारतीय संस्कृति’ महिला योद्धाओं से भरी पड़ी है. रानी लक्ष्मीबाई उनमें से एक हैं. सिर्फ उदाहरण के लिए बता दे रही हूं- योद्धाओं में एक अहिल्याबाई होल्कर भी हैं और बेगम हजरत महल भी.

चलिए थोड़ा गुजरे जमाने की ओर कदम बढ़ाते हैं और हमारी ‘संस्कृति’ की महिला योद्धाओं को खोज निकालते हैं.

पतंजलि में ‘सक्तिकी’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब होता है भाले से लैस महिला. महिला योद्धाओं को लेकर ये सबसे पुराना सबूत है. मेगास्थनीज की मानें तो चंद्रगुप्त के दरबार में राजा की सुरक्षा के लिए महिला रक्षकों पर भरोसा किया जाता था. तो वहीं हैदराबाद के निजाम के पास भी शाही महिला रक्षक हुआ करतीं थीं.

इंडियन आर्म्ड फोर्स में आज की महिला अधिकारियों से पहले भी महिलाएं हिस्सा रही हैं. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी में रानी झांसी रेजिमेंट थी, जिसकी सदस्य महिलाएं थीं.

इनमें मुनियम्माह, अंजलि, अम्मालू और कई नाम शामिल हैं. इन महिलाओं ने देश की आजादी के लिए संघर्ष में उम्र, लिंग और राष्ट्रीयता के बंधन को तोड़ डाला.

महिला योद्धाओं के लिए रोड़े अटकाती झूठी खबरें और अफवाह

अफवाहों और मिथ की वजह से ये सोच हावी है कि महिलाएं तो कुदरती तौर से ही कमजोर होती हैं और इस वजह से वे मिलिट्री सर्विस के लायक नहीं हैं. टेक्नीक, साइबर, बायोकेमिकल को लेकर समझ और सबसे ज्यादा महिलाओं की सायकाॅलोजी, उनका मां बनना, उनकी शारीरिक बनावट को लेकर बेमतलब की दलीलें आज भी औरतों के लिए बैरियर माना जाता है और महिला सोल्जर्स के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है.

युद्ध में महिलाएं शामिल हों, इस चर्चा की शुरुआत ही सबसे बुरी मिसालें देकर की जाती हैं. संवेदनाओं से भरी हमारी परंपरा को कायम रखने के लिए. हिंसा की खास-खास घटनाओं और युद्धबंदियों पर जुल्म के उदाहरण हुक्म के इक्के की तरह दिए जाते हैं. ‘हमारी महान परंपरा’ महिलाओं को ये कैसे सहने दे सकती है?

पुरुष युद्धबंदियों के बारे में चुप्पी क्यों?

अजीब बात ये है कि ऐसे तर्क पुरुष सैनिकों पर लागू नहीं किए जाते. ये मान लिया जाता है कि पुरुषों के साथ क्रूरता, उनकी हत्या और उन्हें अपाहिज करना तो चल सकता है लेकिन महिलाओं के साथ ये स्वीकार नहीं किया जा सकता. लेकिन क्या आपने लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के बारे में नहीं सुना है?

मिथ को तोड़ते ये फैक्ट्स

सच्ची मिसालों और तथ्यों के जरिए ही ऐसे मिथ का मुकाबला किया जा सकता है. एयरफोर्स में महिला पायलटों के लिए मैटरनिटी लीव को लेकर लंबे समय से पूर्वाग्रह था. एक और तर्क दिया जाता था कि वे ‘G’ फोर्स के साथ नहीं लड़ सकेंगी. हालांकि, इस मिथ को काफी पहले 2002 में दूर कर दिया गया.

1995 और 1997 के बीच 17 ट्रेनी महिला पायलटों का इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन, बैंगलोर में एक टेस्ट हुआ. 2002 में ‘एविएट स्पेस इनवायरन मेड’ में पीडी नवाथे, जी गोमेज और ए कृष्णमूर्ति की पेपर  “रिलैक्स्ड एक्सिलेरेशन टॉलरेंस इन फीमेल पायलट ट्रेनी” में ये साफ कहा गया कि “इसी लेबोरेटरी में पहले पढ़ चुके मेल पायलट्स के मुकाबले महिला ट्रेनी पायलट्स में एक्सिलरेंस टाॅलरेंस ज्यादा है.”

जून 2016 में भावना कांत, मोहना सिंह और अवनी चतुर्वेदी इंडियन एयर फोर्स फाइटर स्क्वैड्रन में शामिल हुईं. इससे पहले तक ये स्टडी उन मिथ को नहीं तोड़ सकी जो महिलाओं को फाइटर पायलट बनाने से रोकती आ रही थीं.

नेवी वाॅरशिप में औरतों को शामिल ना किए जाने की वजह सुनकर आपको हंसी आ सकती है. वजह थी कि समुद्र में तैरते जहाज में महिलाओं की मौजूदगी से ‘अनुशासन टूट’ जाएगा और महिला-पुरुष का मेलजोल भी एक डर था!

जनरल बिपिन रावत ने भी ऐसे ही अनुशासनिक मुद्दों को लेकर अपने उन पुरुष साथियों को नीचा दिखाया है, जिनका वे नेतृत्व करते हैं.

‘हमारी’ महिला वाला मिथ अब बेकार

‘हमारी’ महिलाएं इसके लायक नहीं है-ये तर्क तो अपने पड़ोस में ही एक नजर डाल लेने पर टूट जाते हैं. नेपाल की सेना में 339 महिला अफसर 3321 सीओ, एनसीओ और दूसरे रैंकों पर महिलाएं हैं. वहां महिलाओं के पास सेना में सर्विस न सिर्फ अफसर के तौर पर है बल्कि जेसीओ, एनसीओ और दूसरे निचले रैंकों में भी वे सर्विस दे सकती हैं. ताजा डेटा के मुताबिक उनकी संख्या 3321 है. इन्स्ट्रक्टर और मेडिकल में  परंपरागत रोल से अलग नेपाल की महिलाएं पैराश्यूटिस्ट, इंजीनियर, ड्राइवरएयरक्राफ्ट टेक्निशियन के रूप में काम कर रही हैं. महिलाओं को आर्मी बैंड के साथ-साथ मिलिट्री पुलिस से भी जुड़ने की परमिशन है.

सब काॅन्टिनेंट्स में माना जा सकता है कि नेपाल आर्मी में महिलाओं को अलग-अलग रोल के लिए सबसे ज्यादा मौके देता है.

पाकिस्तान ने युद्ध के लिए महिलाओं को ट्रेनिंग दी

थामिए अपनी सांसें...ये 2002 की बात है!

अब हम अपने घोषित दुश्मन पर एक नजर डालते हैं. 1981 में काॅमर्शियल जेट हाइजैक के बाद पाकिस्तान ने ‘आर्म्ड स्काई मार्शल’ का पहला बैच इंटरनेशनल रूटों पर तैनात किया जल्द ही कई देशों के विरोध के बाद उन्हें वापस बुला लिया गया. 9/11 हमलों के बाद पाकिस्तान ने अपनी आसमानी सुरक्षा पर नए सिरे से ध्यान दिया. उसने ‘स्काई मार्शल’ को दोबारा जिंदा किया और इस बार ‘स्काई मार्शल’ अनआर्म्ड थे और उनके साथ महिलाएं भी तैनात की गईं.

पाकिस्तान के इतिहास में ये पहला मौका था जब महिलाओं को युद्ध के लिए ट्रेनिंग दी गई. जुलाई 2002 में करीब 50 स्काई मार्शल के पहले बैच में इस कोर्स से 2 टॉपर महिलाएं थीं, जिन्हें ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ से नवाजा गया.

अब भी नहीं मानेंगे?

यूएनपीकेएफ की पहली महिला कमांडर मेजर जनरल क्रिस्टीन लुंड ने एक बात कही थी जो दुनिया में मशहूर है कि “एक महिला की पहुंच 100 फीसदी आबादी तक होती है.” इसलिए वक्त आ गया है जब हम पुरुषों के मुकाबले वर्दी में महिलाओं को महज ‘सोबरिंग/सिविलाइजिंग फोर्स’ न मान कर उनके रोल के बारे में नए सिरे से सोचें. और हां, पिछले एक दशक से लीबिया में 2006 से तैनात भारतीय महिलाओं ने शांति रक्षक के रूप में बेहतरीन काम कर दिखाया है और यूएन समेत पूरी दुनिया से वाहवाही लूटी है. इस पुलिस यूनिट के कमांडरों को अमेरिका ने शांति रक्षकों को ट्रेनिंग देने के लिए इन्वाइट किया था.

अगर इन सबके बाद भी हमारे जनरल नहीं मानते हैं तो कमी हमारे नायकों में है जो महिलाओं के कंधों को खुद ही हटा रहे हैं!

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