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YOGA, कैसे कॉर्पोरेट संस्कृति का जरूरी हिस्सा बनता जा रहा है?

World Yoga Day 2023 | धार्मिक स्थलों पर योग के नाम पर जिस तरह विदेशियों को ठगा जाता है, इसकी गलत छवि बनने का खतरा है

चैतन्य नागर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>International Yoga Day 2023: कैसे पूंजीवादियों का उपयोगी टूल बनता जा रहा योग?</p></div>
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International Yoga Day 2023: कैसे पूंजीवादियों का उपयोगी टूल बनता जा रहा योग?

(फोटोः क्विंट हिंदी)

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योग (Yoga) का अर्थ है जोड़ना. योग की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुई है जिसका अर्थ जोड़ना है. योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं. पहला है- 'जोड़ना' और दूसरा 'समाधि'. जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुंचना असंभव होगा. भारतीय दर्शन की छह पद्धतियों में से एक है योग. ये छह दर्शन हैं- न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, सांख्य, वेदांत और योग. हठ योग, कर्म योग, भक्ति योग, राजयोग- ये योग की अलग-अलग शाखाएं हैं.

संभवतः योग के कुछ पहलुओं के बारे में वनों में एकांतवास करने वाले तपस्वियों और ऋषियों ने सीखा-सिखाया होगा. वे प्रकृति के सानिध्य में ही जीवन बिताते थे और साथ ही अपने इर्द-गिर्द रहने वाले पशु पक्षियों, वनस्पतियों, पेड़-पौधों को गौर से देखते रहे होंगें.

आपने गौर किया होगा कि योग में कई आसनों को पशुओं के नाम पर जाना जाता है, उदहारण के लिए, भुजंगासन, मयूरासन, मत्स्यासन, वृक्षासन वगैरह.

हिन्दू धर्म के अलावा योग जैन और बौद्ध धर्म का भी एक खास पहलू रहा है. बौद्ध धर्म के एक शाखा जेन बौद्ध तो पूरी तरह योगाभ्यासों और ध्यान पर ही आधारित है.

वेद, पुराण आदि ग्रन्थों में योग के अनेक प्रकार बताए गए हैं. गीता योग के तीन प्रकार बताए गए हैं- ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग. योग प्रदीप में योग के दस प्रकार बताए गए हैं. ये हैं- राज योग, अष्टांग योग, हठ योग, लय योग, ध्यान योग, भक्ति योग, क्रिया योग, मंत्र योग, कर्म योग और ज्ञान योग. इसके अलावा और भी होते हैं जैसे धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग आदि.

अष्टांग योग का सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है. अष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग. इन आठ अंगों से बाहर धर्म, योग, दर्शन, मनोविज्ञान आदि तत्वों की कल्पना नहीं की जा सकती. यह आठ अंग हैं-यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि.

चित्त की वृत्तियों को समझना आवश्यक

अंग्रेजी के शब्द योक और योग की उत्पत्ति एक ही है. योक का अर्थ है दो बैलों को साथ रखने वाला जुआ. योग का अर्थ ही है जोड़ना. देह और मन को एक साथ रखना. मन और तथाकथित ‘आत्मा’ को एक साथ रखना.

पतंजलि ने चित्त की वृत्तियों के निरोध को ही योग बताया था. सिर्फ देह के लचीलेपन और सौष्ठव पर ध्यान देने वाला योग हठ योग कहलाता है, पर चित्त की वृत्तियों पर ध्यान दिए बगैर यह अधूरा है.

योग के जरिये सिद्धियां प्राप्त करने की कामना करने वालों का स्वामी विवेकानंद ने भी खूब मखौल उड़ाया था. एक बार एक योगी पैदल चल कर नदी पार करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन विवेकानंद के सामने करता है और वह कहते हैं कि यह तो वह चवन्नी खर्च करके भी कर सकता था! इसके लिए उसने कई वर्ष क्यों व्यर्थ किये.

सही समझ के अभाव में शारीरिक बल और योग से मिली उर्जा का भयंकर दुरुपयोग भी किया जा सकता है. योग मानव के सर्वांगीण विकास के लिए एक समन्वित पद्धति है. यह एक मनोदैहिक क्रिया है, सिर्फ देह को सुन्दर और निरोग बनाने के लिए नहीं, बल्कि मुख्य रूप से मन और उसकी गति पर काम करने की बात करता है.

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हम तो पैदाइशी योगी हैं

योग को सामान्यतः एक हिन्दू धार्मिक अभ्यास के रूप में देखा जाता है. अन्य धर्म के लोगों ने शुरू में इसका विरोध ‘सूर्य नमस्कार’ शब्द को लेकर किया था. पतंजलि योग सूत्र कहता है कि योग का अर्थ है चित्त की वृत्तियों का दमन, निरोध. किसके चित्त और किसकी वृत्तियां? यहां तो 48 डिग्री सेल्सियस में लोग चाय की दुकान पर खुले में बैठ कर गप्पें मारते दिख जाएंगें. सर्दियों में सुबह तीन बजे आप लोगों को गंगा स्नान करते देखेंगे.

फ्रांस में कुछ वर्ष पहले 38 डिग्री सेल्सियस के तापमान में कई लोग परलोक सिधार गये थे. भारतीय तो पैदा ही योग में होते हैं! उनका जीवन इतने संघर्ष से भरा है कि आधे से अधिक लोग तो इस महान देश में जन्म लेने मात्र से ही मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से बाहर हो चुके हैं.

पूंजीवादियों के लिए उपयोगी टूल

बताते हैं कि योग तनाव दूर करता है, पर तनाव आता कहां से है? हमारी भागम-भाग वाली, जड़वादी संस्कृति के कारण. आंकड़े बताते हैं समृद्ध और विकसित देश जापान में खुदकुशी की दर बहुत ज्यादा है. लोग बड़े मेहनती हैं. गौरतलब है कि वहां आत्महत्या करने वालों में से अधिकांश अधेड़ उम्र के लोग होते हैं, जो अचानक खुद को कॉर्पोरेट जगत में असफल पाते हैं, और बढती उम्र की वजह से खुद को पुनर्स्थापित नहीं कर पाते.

तनाव तो हर जगह है, तो ऐसे में वास्तविक योग एक ऐसी जीवन शैली ढूंढ निकालने में है, जिसमे तनाव कम से कम हो, अस्वस्थ करने वाली वस्तुएं कम ही रहें. नहीं तो हम एक ओर मर्ज पैदा करने और दूसरी ओर उसका इलाज ढूंढने के दुष्चक्र में फंसे रहेंगे.

अरबों डॉलर का उद्योग

करीब पचास अरब डॉलर का योग उद्योग है. योग से मिली उर्जा का उपयोग पूंजीवादी अच्छी तरह करते हैं. योग से कर्मचारी ज्यादा उर्जावान महसूस करेंगे और ज्यादा काम करने में सक्षम होंगें. काम से होने वाले तनाव को भी योग कम करेगा. कम तनाव यानी ज्यादा लगन से काम करने की क्षमता.

अमेरिका में ध्यान और योगाभ्यास कॉर्पोरेट संस्कृति का जरुरी हिस्सा बनते जा रहे हैं. यह संस्कृति कहती है कि बड़ी कंपनियों में काम करने वालों का ‘ख्याल’ रखना जरुरी है. उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना बहुत ही जरुरी है.

सतही तौर पर देखने पर यह बात ठीक लगती है, पर इसका वास्तविक उद्द्येश्य तो यही है कि कर्मचारी अच्छी मशीन में तब्दील हो सकें और बगैर किसी गिले-शिकवे के फिट रह कर काम कर सकें. उनके मन शांत रहें , तनाव से दूर रहें, और ‘मोह माया’ से दूर बस अपने काम पर एकाग्रचित्त रहें.

भोग के लिए भी योग का इस्तेमाल हो रहा है. योग के जरिये सेक्स का ज्यादा आनंद उठायें, अपने पार्टनर को ज्यादा खुश रखें, इस तरह के फायदे योग को ज्यादा लुभावना बनाते हैं. योग को सेक्स के साथ जोड़कर उसे एक बढ़िया बिकाऊ बेस्टसेलर सामान में तब्दील कर दिया गया है और यह खास किस्म की दुकान खूब चल निकली है. ओशो इस कला में माहिर थे और ‘सम्भोग से समाधि तक’ नाम की पुस्तक लिख कर उन्होंने योग और भोग की मिली जुली रेसिपी पेश करके दुनिया में एक विस्फोट-सा किया था.

गलत छवि फैलने का खतरा

योग को लेकर भारत की एक बड़ी ही गलत छवि फैलने का खतरा है. भारत तो एक आध्यात्मिक देश के रूप में लोग पहचानते हैं, जबकि सच्चाई यह है अक्सर जब एक आम विदेशी पर्यटक भारत आता है तो उसे कुछ और ही देखने को मिलता है.

हर तीर्थ स्थान पर ‘योगा’ के नाम पर विदेशियों को मूड़ने वाले जोगी आपको दिखेंगे जो तथाकथित ध्यान के तरीके सिखाकर उन्हें बेवकूफ बनाते हैं. तीर्थ स्थानों पर ऐसे कई ठग और ठगे गए पर्यटक मिलेंगे.

उम्दा तौर तरीके बाजारू बने

योग कोई सरकारी संस्कार नहीं. असंख्य साधकों-मनीषियों ने सदियों के शोध और अभ्यास से इसे स्थापित किया है. सबसे बड़ी बात यह कि योग का कोई अंतिम या रूढ़ रूप नहीं है. वह अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग रूपों में विकसित हुआ है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसके प्रसारकों का आग्रह तत्व पर था, रूप पर नहीं, लेकिन अभी जो कुछ किया जा रहा है, उसके बाद योग की अविरल धारा अपने स्वाभाविक स्वरूप में बहती रहेगी, इसमें संदेह है.

जिन्होंने वास्तव में इस क्षेत्र में गंभीर काम किया वे आम तौर पर गुमनामी में ही रहे. इनमें से एक थे दक्षिण भारत के योग गुरु अयंगर जिनको शायद ही किसी ने कभी टीवी पर देखा हो. अब वह नहीं रहे पर उनकी योग पर लिखी पुस्तकें ‘लाइट ऑन योग’ और ‘लाइट ऑन प्राणायम’ योग की दुनिया में बहुत ही ऊंचा स्थान रखती हैं.

योग के बारे में यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि जब योगाभ्यास और मानव देह पर उसके अच्छे प्रभावों की बात शुरू हुई, उस समय वातावरण कुछ और ही था. प्रदूषण नहीं था, हवा-पानी स्वच्छ थे और देह इतनी असंवेदनशील नहीं हुई थी. अब तो हर सांस के साथ, खास कर शहरों में, कितना जहर अन्दर जा रहा है, इसका कोई हिसाब ही नहीं. इस जहरीली हवा में कोई योग-प्राणायाम करे तो फेफड़ों का क्या हाल होगा यह फेफड़े ही जानेंगे.

योग पर इतनी तरह के लोग, इतने तरीकों से टूट पड़े हैं कि कुल मिलाकर जीवन की समग्र समझ को बचाने के लिए विकसित की गई एक कला धीरे-धीरे एक बेस्टसेलिंग आइटम में तब्दील होती जा रही है. एक अच्छी खासी विधि को हम लोगों ने बाजारू बना डाला है.

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