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मध्यप्रदेश में इस समय वन विभाग के कर्मचारियों का गुस्सा वन विभाग के लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज होने के बाद फूट कर बाहर आ गया है. प्रदेश के वन कर्मियों, फॉरेस्ट रेंजर्स और गार्ड्स ने अपने हथियार जमा करा दिए हैं, और हड़ताल की भी चेतावनी दी है.
मध्य प्रदेश के किस्सों में इस बार बात करेंगे मध्यप्रदेश के आदिवासी वोट बैंक, बीजेपी और कांग्रेस की लड़ाई और वन विभाग के आंदोलन की. आखिर क्या हुआ कि समूचे वन अमले ने अपने हथियार जमा करा दिए, क्या आदिवासियों के साधने के लिए सरकार ने वन अमले को ताक पर रख दिया या राजनीतिक रोटी सेंकने में कौन ज्यादा आगे कांग्रेस या बीजेपी ?
दरअसल मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में 9 अगस्त को कथित तौर पर वन विभाग की गोलियों से एक आदिवासी चैन सिंह की मृत्यु हो जाती है. घटना के सामने आते ही प्रदेश भर में हल्ला मच जाता है, सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जानिब गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने घटना के बाद कहा था कि,
आनन फानन में गृह मंत्री के आदेशानुसार विदिशा पुलिस IPC के सेक्शन 302 के तहत वन विभाग के कर्मचारियों पर केस दर्ज कर देती है. वन कर्मियों को सस्पेंड करने के भी आदेश दिए जाते हैं. साथ ही जिला फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर राजवीर सिंह को ट्रांसफर करने का भी निर्देश दे दिया जाता है.
गृहमंत्री आगे बताते हैं कि,
घटना के बाद एक तरफ आदिवासी समुदाय के लोगों का आरोप लगाते हैं कि वन अमले ने बिना कुछ देखे सुने फायरिंग की. वहीं दूसरी तरफ वन अमले का कहना था कि उन्होंने कुछ लोगों को लकड़ी चोरी करते पकड़ा था. जिसके बाद उनके ऊपर ग्रामीणों ने पथराव कर दिया और आत्मरक्षा में वन अमले को फायरिंग करनी पड़ी.
इसी के बाद लकड़ी चोरी की कई वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर भी तैरने लगती हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार पुलिस की टीम को भी मौके से चोरी के लिए काटी गई लकड़ियां बरामद होती हैं.
मध्य प्रदेश वन एवं वन्यप्राणी संरक्षण कर्मचारी संघ ने लिखित में शिकायत करते हुए कहा कि वन विभाग के कर्मचारियों पर लगा केस गलत है और बिना मजेस्टेरियल जांच के गिरफ्तारी न की जाए. संघ ने यह भी मांग की कि पूरे मामले की मजेस्टेरियल जांच की जाए उसके बाद जो भी तथ्य निकल कर आएं उनके हिसाब से कार्रवाई की जाए. पत्र में आगे लिखा गया कि,
Quint से बात करते हुए, रामयश मौर्य जो कि कर्मचारी संघ के भोपाल जिलाध्यक्ष हैं उन्होंने कहा कि- वन विभाग कर्मचारियों के खिलाफ उठाए गए कदम राजनीति का हिस्सा हैं.
मौर्य आगे कहते हैं कि लटेरी वन परिक्षेत्र जिसमें दो रेंज हैं उत्तर और दक्षिण दोनों ही संवेदनशील हैं और वहां पर लकड़ी बहुतायत में चोरी की जाती है.
मौर्य की बातों को पुख्ता करते हुए एक स्थानीय पत्रकार ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि कुछ इलाके काफी चिंताजनक माहौल से भरे रहते हैं, जिनमें वन अमलों पर हमले भी होने की कई बार खबरें आई हैं.
हालांकि विदिशा के ही सुनील कुमार आदिवासी, जो कि पेशे से वकील हैं और आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता भी, उनका आरोप है कि पुलिस प्रशासन और सरकारें सब मिलकर आरोपी वन कर्मियों को बचा रहे हैं. सुनील कहते हैं कि,
सुनील आगे कहते हैं की आदिवासी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए वन से लकड़ी इकट्ठा करते हैं और कुछ लकड़ियां गांव के ही हात बाजारों और दुकानों में बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं.
वैसे तो आदिवासी वोट बैंक को साधने में राज्य की दोनों ही प्रमुख पार्टियां जुटी रहती हैं लेकिन सत्तारूढ़ दल शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी इस बार लगता है थोड़ा ज्यादा आगे बढ़ गई है.
वन विभाग के कर्मचारियों पर बिना जांच किए हत्या का मुकदमा दर्ज होना, साथ ही मृतक आदिवासी व घायल आदिवासियों के परिजनों को आर्थिक सहायता देने से वन विभाग में काफी रोष है.
हत्या को लेकर राजनीतिक तूफान उस समय तेज हो गया जब कांग्रेस की एक टीम पार्टी के आदिवासी प्रकोष्ठ के राज्य प्रमुख, विधायक ओंकार सिंह मरकाम के नेतृत्व में विदिशा गई और अस्पताल में घायलों से मिली. उनके साथ विदिशा के विधायक शशांक भार्गव भी थे.
मरकाम ने मीडिया से कहा कि वह चैन सिंह को शहीद मानते हैं और एक करोड़ रुपये मुआवजे की मांग करते हैं. इसके बाद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह भी इस मामले से जुड़ गए. दिग्विजय आज 17 अगस्त को मृतक चैन सिंह के परिवार से मिलने पहुंचे हैं.
बता दें कि मध्यप्रदेश में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी 2018 में मात्र 16 ही जीत पाई थी. इसके पहले यानी कि 2013 में बीजेपी का 31 सीटों पर कब्जा था. 2020 मार्च में कांग्रेस की सरकार गिराने के बाद बीजेपी ने अपने आदिवासी वोट बैंक साधने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं. प्रदेश में अक्टूबर 2021 और अप्रैल 2022 के बीच बीजेपी के बड़े नेता और देश के गृहमंत्री अमित शाह के दो दौरे और एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा हुआ है.
शिवराज सरकार भी आदिवासियों को लुभाने का कोई कसर नहीं छोड़ती है, ऐसे में लटेरी में हुए हादसे के बाद सरकार का रवैया आश्चर्यजनक तो नहीं लेकिन चिंताजनक जरूर है.
वन विभाग के कर्मचारियों को मनाने का क्या हथकंडा अपनाया जाएगा ये देखने वाली बात है लेकिन अभी के हिसाब से बीजेपी के आदिवासी वोट बैंक के मोह ने प्रदेश भर में वन विभाग के लोगों में गुस्सा जरूर भर दिया है
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