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Janmashtami Dahi Handi Muhurt 2023: दही हांडी फोड़ने का शुभ मुहूर्त, कैसे मनाते यह पर्व

Dahi Handi Muhurt: श्रीकृष्ण (Shri Krishna) का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इस दिन जन्माष्टमी का विशेष उत्सव मनाया जाता है, इसके साथ ही दही हांडी को फोड़ने का आयोजन किया जाता है.

अंशुल जैन
धर्म और अध्यात्म
Published:
<div class="paragraphs"><p>Janmashtami Dahi Handi Muhurt</p></div>
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Janmashtami Dahi Handi Muhurt

(फोटो: PTI)

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Janmashtami Dahi Handi Muhurt 2023: भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी मनाई जाती है. माना जाता है कि श्रीकृष्ण (Shri Krishna) का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इस दिन जन्माष्टमी का विशेष उत्सव मनाया जाता है, इसके साथ ही दही हांडी को फोड़ने का आयोजन किया जाता है, ऐसे में हम आपकों दही हांडी (Dahi Handi) फोड़ने की तिथि व शुभ मुहूर्त बता रहे हैं.

Dahi Handi Utsav Shubh Muhurt: दही हांडी शुभ मुहूर्त

इस वर्ष जन्माष्टमी 6 सितंबर के दिन मनाई जा रही है लेकिन दही हांडी जन्माष्टमी के अगले दिन यानी 7 सितंबर के दिन फोड़ी जाएगी. दही हांडी उत्सव का शुभ मुहूर्त सुबह से शाम तक के बीच माना जाता है, इस बीच हांडी फोड़ना बेहद शुभ माना जाता हैं.

दही हांडी उत्सव (Dahi Handi Utsav) मनाने के लिए चौराहे, गली-मोहल्ले में या फिर किसी मैदान में ऊंचाई पर दही की मटकी यानी दही हांडी को बांधा जाता है. यह हांडी मिट्टी की बनी होती है. गोविंदाओं की टोली यानी कृष्णभक्त इस हांडी को फोड़ने दूर-दूर से आते हैं.

गोविंदाओं की टोली दही हांडी को फोड़ने के लिए पिरामिड बनाते हुए ऊपर की तरफ बढ़ती है और आखिर में जो दही हांडी फोड़ता है वही विजेता कहलाता है और उसे उपहार स्वरूप राशि प्रदान की जाती हैं. इस उत्सव की धूम खासतौर से महाराष्ट्र और गुजरात में देखने को मिलती है.

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Dahi Handi Utsav क्यों मनाया जाता

पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में भगवान कृष्ण बचपन में अपने दोस्तों के साथ माखन मिश्री की चोरी करते थे और अपने मित्रों में बांट देते थे. इसलिए कान्हा को माखन चोर भी कहा जाता है. माखन चोरी से परेशान होकर गोपियां माखन को ऊंचे स्थान पर लटकाना शुरू कर दिया था लेकिन गोपियों का यह प्रयास भी असफल हो गया.

नटखट कान्हा अपने दोस्तों की टोली के साथ वहां से भी माखन चुरा लेते थे और बड़े चाव के साथ सबके साथ खाते हैं. भगवान कृष्ण की इन्हीं बाल लीलाओं को दहीं हांडी के उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

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