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दिवाली के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितिया को देशभर में भाई दूज (Bhai Dooj) का त्योहार मनाया जाता है. वहीं कायस्थ परिवार के देवता चित्रगुप्त महाराज (ChitraGupta Maharaj) की पूजा का भी विधान है. चित्रगुप्त महाराज को देवगण का लेखपाल यानी मानव जाति के पाप-पूण्य का लेखा-जोखा रखने वाला माना जाता है. इस दिन नई लेखनी या कलम की भी पूजा की जाती है. बिजनेसमैन इसे नववर्ष की शुरुआत के तौर पर भी देखते हैं.
ऐसी मान्यता है कि इस दिन कायस्थ समाज का बड़ा सदस्य कागज पर अपनी सलाना आय लिखकर, एक मंत्र के साथ कागज चित्रगुप्त महाराज के पास रख देता है. इसके बाद उसकी पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है. कहा जाता है कि आरती और प्रसाद के साथ ही चित्रगुप्त महाराज की पूजा पूरी होती है.
मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम् ! महीतले लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते ..चित्रगुप्त ! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं .कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त ! नामोअस्तुते
भाई दूज के दिन स्नान के बाद पूर्व दिशा में बैठकर एक चौक बनाएं. वहां पर चित्रगुप्त महाराज की तस्वीर स्थापित कर दें. इसके बाद विधिपूर्वक फूल, अक्षत्, धूप, मिठाई, फल अर्पित करें. एक नई लेखनी या कलम उनको अवश्य चढ़ाएं. कलम की भी पूजा करें. फिर एक कोरे सफेद कागज पर श्री गणेशाय नम: और 11 बार ओम चित्रगुप्ताय नमः लिखें. इसके बाद चित्रगुप्त महाराज से अपने और परिवार के लिए बुद्धि, विद्या और लेखन का अशीर्वाद प्राप्त करें.
चित्रगुप्त महाराज की पूजा अभिजीत मुहूर्त में करना फलदायी होता है. आज अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.15 बजे से 12.17 बजे तक और दोपहर 3.15 बजे से शाम 4.56 बजे तक है.
श्री विरंचि कुलभूषण, यमपुर के धामी. पुण्य पाप के लेखक, चित्रगुप्त स्वामी॥ सीस मुकुट, कानों में कुण्डल अति सोहे।श्यामवर्ण शशि सा मुख, सबके मन मोहे॥> भाल तिलक से भूषित, लोचन सुविशाला. शंख सरीखी गरदन, गले में मणिमाला॥> अर्ध शरीर जनेऊ, लंबी भुजा छाजै।कमल दवात हाथ में, पादुक परा भ्राजे॥ नृप सौदास अनर्थी, था अति बलवाला. आपकी कृपा द्वारा, सुरपुर पग धारा॥भक्ति भाव से यह आरती जो कोई गावे. मनवांछित फल पाकर सद्गति पावे॥
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त महाराज की उत्पत्ति की थी. ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण उन्हें कायस्थ भी कहते हैं. चित्रगुप्त का विवाह सूर्य पुत्री यमी से हुआ था. इसलिए वह यमराज के बहनोई हैं. यमी और यमराज सूर्य की जुड़वा संतान हैं. यमी बाद में यमुना हो गईं और धरती पर चली गईं.
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