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नवरात्र (Navratri) त्योहार में दुर्गा मां के विभिन्न रूपों की उपासना होती है. शरदीय नवरात्र का आज चौथा दिन मां कूष्मांडा के नाम है. क्योंकि ये शक्ति का त्योहार है, इसलिए नवरात्रि के नौ दिनों में हम आपको नव दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों के साथ-साथ देश की नारी शक्ति की भी कहानियां बताएंगे.
नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित हैं. मां कूष्मांडा नौ रूपों में चौथा रूप हैं, इसलिए नवरात्रि पर्व के चौथे दिन भक्त मां कूष्मांडा की पूजा-आराधना और उपासना करते हैं. मां कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं. इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त किया जा सकता है, जिससे सभी रोग, शोक, दुख दूर होते हैं तथा आयु और यश में वृद्धि होती है. मां को सूर्य के समान तेजस्वी माना गया है. इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं. ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है.
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, प्रलय से लेकर सृष्टि के आरंभ तक, हर तरफ अंधकार था और सृष्टि शून्य थी. तब माता आदिशक्ति के कूष्मांडा अवतार ने अंडाकार रूप में ब्रह्मांड की रचना की. मां कूष्मांडा का निवास स्थान सूर्यलोक के मध्य में माना जाता है. कहा जाता है कि सिर्फ कूष्मांडा माता का तेज ही ऐसा है कि वह सूर्यलोक में निवास कर सकती हैं. पुराणों में यह तक कहा गया है कि सूर्य के तेज का कारण मां आदिशक्ति ही हैं.
पुराणों में उल्लेखित कथा के मुताबिक, कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी. देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी. अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है.
मां कूष्मांडा का स्वरूप:
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्।।
सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।
संस्कृति में कुम्हड़े को कूष्मांडा कहा जाता है. ऐसे देवा का नाम कूष्मांडा पड़ा. मां को कुम्हड़े की बलि सबसे ज्यादा प्रिय है, इसलिए देवी मां को कुम्हड़े की बलि दी जाती है. इनकी 8 भुजाएं हैं, इसलिए इनको अष्टभुजा भी कहा जाता है. ये अपनी भुजाओं में कमल, कमंडल, अमृत कलश, धनुष, बाण, चक्र और गदा धारण करती हैं. वहीं एक भुजा में माला धारण करती हैं और सिंह की सवारी करती हैं. इनकी भक्ति करने से आयु, यश और आरोग्य की वृद्धि होती है.
इंडियन आर्मी की मेजर सुमन गवानी ने ऐसी उपलब्धि हासिल की है जो आज तक किसी भारतीय महिला ने नहीं की थी. उत्तराखंड की सुमन ने संयुक्त राष्ट्र का प्रतिष्ठित “जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड” अपने नाम किया है. यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली सुमन देश की पहली महिला हैं. टिहरी और उत्तरकाशी से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाली सुमन ने देहरादून के सरकारी पीजी कॉलेज से बैचलर ऑफ एजुकेशन यानी कि बीएड की डिग्री हासिल की है. बीएड करने के बाद सुमन के पास शिक्षक बनने का रास्ता भी खुला था, लेकिन उन्होंने देशसेवा की राह चुनी और सेना में आईं. सुमन ने 2011 में चेन्नई की ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकेडमी से ग्रेजुएट होने के बाद इंडियन आर्मी ज्वॉइन की थी. वह आर्मी की सिग्नल कॉर्प से जुड़ीं थीं.
मेजर सुमन मिलिट्री ऑब्जर्वर (Military Observer) हैं, जिन्हें यूएन मिशन के तहत दक्षिणी सूडान में तैनात किया गया था. यहां उन्होंने यौन हिंसा से जुड़े संघर्षों पर यूएन मिलिट्री ऑब्जर्वर को ट्रेनिंग दी थी. सुमन ने यौन हिंसा से जुड़े मामलों की रोकथाम के लिए सूडान की सेनाओं को भी ट्रेनिंग दी थी, जहां उनके काम की काफी सराहना की गई. सुमन वर्ष 2018 में सालभर के लिए संयुक्त राष्ट्र मिशन के लिए दक्षिण सूडान में तैनात थीं. 2019 में सुमन मिशन पूरा कर भारत लौट आई थीं. मेजर सुमन को लैंगिक समानता पर उत्कृष्ट कार्य के लिए ब्राजील की नौसेना अधिकारी कमान्डर कार्ला मोन्तिएरो डी कास्त्रो अराउजो के साथ वर्ष 2019 के लिए संयुक्त रूप से ‘यूएन मिलिट्री जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर' के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
'नौ दिन, नौ नारी शक्ति की कहानी' की पहली तीन कहानियां आप नीचे क्लिक कर पढ़ सकते हैं:
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