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सावन के महीने के साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी हो चुकी है. इस दौरान लाखों की संख्या में शिव भक्त पैदल चलकर गंगाजल लाते हैं और शिविलिंग पर जल चढ़ाते हैं. कुछ भक्त ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए भी जाते हैं. सोमवार और शिवरात्रि पर इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.
सावन का महीना भगवान शिव का होता है, इसलिए इस महीने में भक्त व्रत रखते हैं और शिव की पूजा-अर्चना करते हैं. साथ ही कई भक्त सोमवार को अपनी यात्रा समाप्त करने की कोशिश करते हैं.
ये मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से निकले विष को भगवान शिव ने पी लिया था. इसके बाद से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाने लगा. शिव के विष का सेवन करने से दुनिया तो बच गई लेकिन उनका शरीर जलने लगा. इस वजह से देवी-देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया. इसी के बाद कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई.
सावन में कांवड़िए अलग-अलग शहरों से हरिद्वार जाते हैं और अपने कांवड़ में गंगा जल भरकर पैदल यात्रा शुरू करते हैं. कांवड़ में एकत्रित जल से सावन की चतुर्दशी पर भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि सावन के महीने में शिव अपने ससुराल दक्ष की नगरी हरिद्वार कनखल में निवास करते हैं. इसी कारण शिव भक्त गंगाजल लेने हरिद्वार जाते हैं.
कांवड़ यात्रा के लिए खास तैयारियां की गई हैं. सड़कें और बिजली की व्यवस्था की गई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पुलिस कंट्रोल रूम को उत्तर प्रदेश के कंट्रोल रूम से जोड़ा जाएगा.
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