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शीतला सप्तमी का व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है. ये होली के 8 दिन बाद मनाई जाती है, लेकिन कुछ लोग इसे होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या शुक्रवार को भी मनाते हैं.
शीतला अष्टमी उत्तर भारत के राज्यों, जैसे राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में प्रमुख रूप से मनाई जाती है. कई स्थानों पर ये त्योहार बसौड़ा के नाम से जाना जाता है. इस दिन बासी खाना खाया जाता है. इस दिन महाशक्ति के मुख्य स्वरूप शीतला माता की पूजा होती है.
होली के बाद चैत्र मास की अष्टमी से लेकर वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ कृष्ण पक्ष की अष्टमी माता शीतला देवी की पूजा अर्चना को समर्पित होती है. इस साल शीतला सप्तमी का व्रत 27 मार्च को है.
शीतला माता कई बीमारियों से लोगों को दूर रखती हैं. ऐसा कहा जाता है कि शीतला माता की पूजा करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता जैसी बीमारियों से लोग बचे रहते हैं. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन जो महिला व्रत रखती है उसके घर कभी भी कोई दुख नहीं आता. इतना ही नहीं, ये भी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान को भी किसी तरह की कोई बीमारी नहीं होती.
अपने नाम की तरह ही माता का स्वरूप भी शीतल होता है. शीतला मां गधे की सवारी करती हैं. इनके हाथ में झाड़ू, कलश और सूप रहता है. कहा जाता है कि शीतला देवी की उपासना करने से सभी तरह के पाप नष्ट होते हैं.
इस अवसर पर ब्रह्म मुहूर्त में उठा जाता है और नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान किया जाता है. अगर आप व्रत रख रहे हैं, तो शीतला माता के मंत्र से व्रत का संकल्प लें. इसके बाद विधि-विधान और सुगंधित फूलों से माता की पूजा करें. एक दिन पहले बनाए हुए भोजन, मेवे, मिठाई, पूआ आदि का भोग लगाएं.
अगर चतुर्मासी व्रत कर रहे हैं, तो भोग में माह के अनुसार ही भोग लगाएं. अब शीतला स्तोत्र का पाठ करें या कथा सुनें. रात में जगराता और दीपमालाएं प्रज्ज्वलित करने का विधान है.
कठोर व्रत रखने वाली महिलाएं उस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलातीं, इसलिए उन घरों में उस दिन बासी भोजन ही ग्रहण किया जाता है.
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