advertisement
महाशिवरात्रि के दिन हिंदू धर्म को मानने वाले शंकर नाम के एक ऐसे देवता की आराधना करते हैं, जो अपनी छवि में पारंपरिक देवताओं से बिल्कुल अलग हैं. पौराणिक ग्रंथों में देवताओं को बेहद वैभवशाली दिखाया गया है. हरेक देवता आभूषण और मुकुट धारण किए हैं. उनके शक्तिशाली वाहन हैं. जैसे विष्णु का गरुड़ और सूर्य का सात घोड़े वाला रथ. इंद्र का वाहन ऐरावत नाम का हाथी है.
दूसरी ओर, शिव जटा-जूटधारी हैं. वह स्वर्ण आभूषण और मणि-माणिक्य की जगह रुद्राक्ष पहनते हैं. रेशम के वस्त्र की जह व्याघ्रचर्म धारण करते हैं. उन्हें भांग और धतूरा पसंद हैं. वह शरीर पर राख और भभूत मलते हैं. उनके गले में सांप है. वह बेलपत्र और जल चढ़ाने भर से खुश हो जाते हैं. वह बैल की सवारी करते हैं. हिंदू मानस में शिव एक ऐसे देवता के तौर पर स्थापित हैं, जो लोक से यानी आम लोगों और उससे भी ज्यादा हाशिये के लोगों से जुड़े हैं.
शिव की एक विशिष्ट छवि है. वह देवताओं के बीच रहकर भी उनसे अलहदा हैं. वह श्मशान में विचरण करते हैं. कैलाश पर्वत उनका वास है, जहां अखंड शांति का साम्राज्य छाया रहता है. वह शरीर पर भभूत रमाए रहते हैं और अनंत साधना में लीन रहते हैं. लोक की सबसे ज्यादा सुनने वाले वही हैं. यानी तुरंत प्रसन्न होने वाले. बहुत जल्द संतुष्ट होने वाले, इसलिए उन्हें तुरंत तोष या संतोष वाला यानी आशुतोष कहा गया. वह उदार हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ और भोले भंडारी कहा गया.
हिंदुओं के बीच अगर शिव की प्रचलित छवि की व्याख्या करें, तो वे प्रगतिशील विचारों के सबसे बड़े प्रतिनिधि देवता के तौर पर उभरते दिखते हैं. कैलाश में वास करने के बावजूद शिव, लोक यानी सार्वजनिक जीवन में रहते हैं. ऐसे लोगों के बीच, जिन्हें मुख्यधारा में मान्यता प्राप्त नहीं है. वह सर्वहारा के देवता हैं. वह भूतों, पिशाचों और अघोरियों और औघड़ों के बीच रहते हैं. यानी समाज के निचले से भी नीचे के वर्ग के लोगों के बीच.
आज के संदर्भ में देखें, तो वे हाशिये के लोगों के साथ थे. जो दबे-कुचले थे. जिन्हें पारंपरिक समाज स्वीकार नहीं करता था. भद्र समाज जिनका वजूद मानने को तैयार नहीं था, शिव उन्हीं के साथ थे.
इसके साथ ही उन्होंने उस जेंडर को भी विमर्श में ला दिया, जिसे समाज ट्रांसजेंडर समझकर हिकारत की निगाह से देखता है. एक ईश्वर का ट्रांसजेंडर स्वरूप लेना उस तीसरे लिंग को मान्यता देना और स्थापित करना है, जो समाज से उपेक्षित और विस्थापित है.
महान समाजवादी नेता और विचारक राम मनोहर लोहिया ने ‘राम, कृष्ण और शिव’ नाम से लिखे अपने बहुचर्चित लेख में शिव की अद्भुत व्याख्या की है. वह लिखते हैं:
हिंदू देवताओं में अधिकतर देवताओं के साथ उनकी पत्नियों की भी तस्वीर दिखाई देती है. लेकिन समानता का जो भाव शिव और पार्वती में दिखता है वह और किसी देवता के संदर्भ में नहीं दिखता. मसलन राम ने सीता पर संदेह किया. विष्णु की पत्नी उनके पांव के सामने बैठी दिखती हैं. इंद्र की पत्नी शचि अपने पति की छाया से नहीं उबर पाती. सिर्फ शिव और पार्वती के दांपत्य में अद्भुत समानता नजर आती है. शिव ने पार्वती के साथ नृत्य किया. और इस नृत्य में एक-एक ताल पर पार्वती ने शिव को पराजित भी किया.
शिव को समाज में संतुलन, सामंजस्य और समावेश यानी सोशल इनक्लूजन के देवता के तौर पर देखा जा सकता है. देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन से निकले विष का पान उन्होंने किया. जब देवताओं में इनसे निकले बहुमूल्य संसाधनों और संपत्ति पर कब्जा जमाने की होड़ मची थी, तो शिव ने उस जहर को धारण किया, जो सृष्टि को खत्म कर सकता था. अपने कंठ में विष धारण करने की वजह से ही वह नीलकंठ कहलाए. वह प्रलय लाते हैं, तो प्रलय से सृष्टि को बचाते भी हैं.
आज के संदर्भ में देखें, तो शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को आत्मसात कर पर्यावरण के रक्षक की भूमिका निभाई थी. इस तरह वह धरती को विनाश से बचाने वाले देवता के तौर पर उभरते हैं. शिव अगर प्रलय के देवता हैं, तो सृष्टि और उसके संरक्षण के भी.
शिव में समाज में संतुलन बनाने की अद्भुत क्षमता है. वह देवताओं के भी देवता हैं और दानवों के भी. वह देवों के देव यानी महादेव हैं. देवता और दानव, दोनों उनकी पूजा करते हैं और दोनों अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास पहुंचते हैं. यहां तक कि हिंदुओं के सबसे बड़े दो देवता ब्रह्मा और विष्णु भी आपसी झगड़े को सुलझाने के लिए उनके पास पहुंचते हैं और उनके फैसले को मानते भी हैं. इस तरह शिव सर्वमान्य देवता हैं. इसलिए महादेव हैं.
इसीलिए लोहिया ने लिखा है, राम और कृष्ण ने मानवीय जीवन बिताया. लेकिन शिव बिना जन्म और बिना अंत के हैं. ईश्वर की तरह अनंत हैं, लेकिन ईश्वर के विपरीत उनके जीवन की घटनाएं समय-चक्र में चलती हैं और विशेषताओं के साथ, इसलिए वे ईश्वर से भी अधिक असीमित हैं.
ये भी पढ़ें-
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)