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शिव की समावेशी पर्सनालिटी, उनकी ‘सोशल इंजीनियरिंग’ पर गौर कीजिए

शिव देवताओं के भी देवता हैं और दानवों के भी. वह देवों के देव यानी महादेव हैं.

दीपक के मंडल
धर्म और अध्यात्म
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शिव जटा-जूटधारी हैं. वह स्वर्ण आभूषण और मणि-माणिक्य की जगह रुद्राक्ष पहनते हैं
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शिव जटा-जूटधारी हैं. वह स्वर्ण आभूषण और मणि-माणिक्य की जगह रुद्राक्ष पहनते हैं
(फोटो: iStock)

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महाशिवरात्रि के दिन हिंदू धर्म को मानने वाले शंकर नाम के एक ऐसे देवता की आराधना करते हैं, जो अपनी छवि में पारंपरिक देवताओं से बिल्कुल अलग हैं. पौराणिक ग्रंथों में देवताओं को बेहद वैभवशाली दिखाया गया है. हरेक देवता आभूषण और मुकुट धारण किए हैं. उनके शक्तिशाली वाहन हैं. जैसे विष्णु का गरुड़ और सूर्य का सात घोड़े वाला रथ. इंद्र का वाहन ऐरावत नाम का हाथी है.

दूसरी ओर, शिव जटा-जूटधारी हैं. वह स्वर्ण आभूषण और मणि-माणिक्य की जगह रुद्राक्ष पहनते हैं. रेशम के वस्त्र की जह व्याघ्रचर्म धारण करते हैं. उन्हें भांग और धतूरा पसंद हैं. वह शरीर पर राख और भभूत मलते हैं. उनके गले में सांप है. वह बेलपत्र और जल चढ़ाने भर से खुश हो जाते हैं. वह बैल की सवारी करते हैं. हिंदू मानस में शिव एक ऐसे देवता के तौर पर स्थापित हैं, जो लोक से यानी आम लोगों और उससे भी ज्यादा हाशिये के लोगों से जुड़े हैं.

शिव की एक विशिष्ट छवि है. वह देवताओं के बीच रहकर भी उनसे अलहदा हैं. वह श्मशान में विचरण करते हैं. कैलाश पर्वत उनका वास है, जहां अखंड शांति का साम्राज्य छाया रहता है. वह शरीर पर भभूत रमाए रहते हैं और अनंत साधना में लीन रहते हैं. लोक की सबसे ज्यादा सुनने वाले वही हैं. यानी तुरंत प्रसन्न होने वाले. बहुत जल्द संतुष्ट होने वाले, इसलिए उन्हें तुरंत तोष या संतोष वाला यानी आशुतोष कहा गया. वह उदार हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ और भोले भंडारी कहा गया.

हिंदुओं के बीच अगर शिव की प्रचलित छवि की व्याख्या करें, तो वे प्रगतिशील विचारों के सबसे बड़े प्रतिनिधि देवता के तौर पर उभरते दिखते हैं. कैलाश में वास करने के बावजूद शिव, लोक यानी सार्वजनिक जीवन में रहते हैं. ऐसे लोगों के बीच, जिन्हें मुख्यधारा में मान्यता प्राप्त नहीं है. वह सर्वहारा के देवता हैं. वह भूतों, पिशाचों और अघोरियों और औघड़ों के बीच रहते हैं. यानी समाज के निचले से भी नीचे के वर्ग के लोगों के बीच.

आज के संदर्भ में देखें, तो वे हाशिये के लोगों के साथ थे. जो दबे-कुचले थे. जिन्हें पारंपरिक समाज स्वीकार नहीं करता था. भद्र समाज जिनका वजूद मानने को तैयार नहीं था, शिव उन्हीं के साथ थे.

आधुनिक और प्रगतिशील विचारों के साथ शिव की ही सबसे ज्यादा संगति दिखती है. एक भक्त ने जब शिव के बगल में बैठी उनकी पत्नी पार्वती की पूजा करने से इनकार किया, तो उन्होंने अर्धनारीश्वर का रूप ले लिया. यानी आधे पुरुष और आधे स्त्री. इस तरह उन्होंने यह संदेश दिया कि स्त्री और पुरुष बराबर हैं. स्त्री के बगैर पुरुष और पुरुष के बगैर स्त्री अधूरी है. न कोई छोटा है और न कोई बड़ा.
आधुनिक और प्रगतिशील विचारों के साथ शिव की ही सबसे ज्यादा संगति दिखती है.(फोटो: IANS)

इसके साथ ही उन्होंने उस जेंडर को भी विमर्श में ला दिया, जिसे समाज ट्रांसजेंडर समझकर हिकारत की निगाह से देखता है. एक ईश्वर का ट्रांसजेंडर स्वरूप लेना उस तीसरे लिंग को मान्यता देना और स्थापित करना है, जो समाज से उपेक्षित और विस्थापित है.

महान समाजवादी नेता और विचारक राम मनोहर लोहिया ने ‘राम, कृष्ण और शिव’ नाम से लिखे अपने बहुचर्चित लेख में शिव की अद्भुत व्याख्या की है. वह लिखते हैं:

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शिव के सबसे बड़े कारनामों में एक उनका सती की मृत्यु पर शोक प्रकट करना है. मृत सती को अपने कंधे पर लाद कर वह देश भर में भटकते फिरे. सती का अंग-अंग गिरता रहा, फिर भी शिव ने अंतिम अंग गिरने तक नहीं छोड़ा. किसी प्रेमी, देवता या असुर या किसी का भी साहचर्य निभाने की ऐसी पूर्ण और अनूठी कहानी नहीं मिलती. इतना ही नहीं, शिव की यह कहानी हिंदुस्तान की अटूट और विलक्षण एकता भी कहानी है. जहां सती का एक अंग गिरा, वहां एक तीर्थस्थान बना. बनारस से लेकर कामरूप तक यह हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो गया.

हिंदू देवताओं में अधिकतर देवताओं के साथ उनकी पत्नियों की भी तस्वीर दिखाई देती है. लेकिन समानता का जो भाव शिव और पार्वती में दिखता है वह और किसी देवता के संदर्भ में नहीं दिखता. मसलन राम ने सीता पर संदेह किया. विष्णु की पत्नी उनके पांव के सामने बैठी दिखती हैं. इंद्र की पत्नी शचि अपने पति की छाया से नहीं उबर पाती. सिर्फ शिव और पार्वती के दांपत्य में अद्भुत समानता नजर आती है. शिव ने पार्वती के साथ नृत्य किया. और इस नृत्य में एक-एक ताल पर पार्वती ने शिव को पराजित भी किया.

सोशल इनक्लूजन के देवता

शिव को समाज में संतुलन, सामंजस्य और समावेश यानी सोशल इनक्लूजन के देवता के तौर पर देखा जा सकता है. देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन से निकले विष का पान उन्होंने किया. जब देवताओं में इनसे निकले बहुमूल्य संसाधनों और संपत्ति पर कब्जा जमाने की होड़ मची थी, तो शिव ने उस जहर को धारण किया, जो सृष्टि को खत्म कर सकता था. अपने कंठ में विष धारण करने की वजह से ही वह नीलकंठ कहलाए. वह प्रलय लाते हैं, तो प्रलय से सृष्टि को बचाते भी हैं.

गंगा जब पूरे वेग से धरती पर उतरी, तो उन्होंने इसका वजूद ही खत्म करने की ठान ली. लेकिन शिव ने  उन्हें जटा में धारण कर लिया. यह  शिव की वह छवि है, जिसमें वह संदेश देते हैं कि सृष्टि उनकी वजह से सुरक्षित है.

आज के संदर्भ में देखें, तो शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को आत्मसात कर पर्यावरण के रक्षक की भूमिका निभाई थी. इस तरह वह धरती को विनाश से बचाने वाले देवता के तौर पर उभरते हैं. शिव अगर प्रलय के देवता हैं, तो सृष्टि और उसके संरक्षण के भी.

शिव सबको साथ लेकर चलते हैं(फोटो: IANS)

देव-दानव, दोनों के देवता

शिव में समाज में संतुलन बनाने की अद्भुत क्षमता है. वह देवताओं के भी देवता हैं और दानवों के भी. वह देवों के देव यानी महादेव हैं. देवता और दानव, दोनों उनकी पूजा करते हैं और दोनों अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास पहुंचते हैं. यहां तक कि हिंदुओं के सबसे बड़े दो देवता ब्रह्मा और विष्णु भी आपसी झगड़े को सुलझाने के लिए उनके पास पहुंचते हैं और उनके फैसले को मानते भी हैं. इस तरह शिव सर्वमान्य देवता हैं. इसलिए महादेव हैं.

शिव सबको साथ लेकर चलते हैं. भूत, पिशाच, देव, दानव, मानव, गंधर्व, यक्ष से लेकर किन्नर तक. वीरान श्मशान से लेकर रमणीक कैलाश तक. वह ध्यान करते हैं, तो नृत्य भी करते हैं. वह प्रेमी हैं. लेकिन काम के संहारक भी. वह तांडव करते हैं, तो सर्जक और संरक्षक भी हैं. शिवत्व में आधुनिक और प्रगतिशील मूल्यों के सारे तत्व समाहित हैं.

इसीलिए लोहिया ने लिखा है, राम और कृष्ण ने मानवीय जीवन बिताया. लेकिन शिव बिना जन्म और बिना अंत के हैं. ईश्वर की तरह अनंत हैं, लेकिन ईश्वर के विपरीत उनके जीवन की घटनाएं समय-चक्र में चलती हैं और विशेषताओं के साथ, इसलिए वे ईश्वर से भी अधिक असीमित हैं.

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Published: 12 Feb 2018,07:10 PM IST

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