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श्री कृष्णा धारावाहिक के पिछले एपिसोड में आपने देखा, धरती पर कृष्ण जन्म ले चुके हैं. कृष्ण के जन्म लेते ही योगमाया उन्हें नींद से जगाती हैं और कहती हैं कि कंस के यहां आने से पहले इस बालक को गोकुल में नंद के घर छोड़ आइए. वासुदेव की सारी बेड़ियां टूट जाती हैं और वासुदेव श्री कृष्ण को लेकर नदी के रास्ते गोकुल के लिए निकल पड़ते हैं.
वसुदेवजी ने बालकृष्ण को सुपड़े में रखकर नदी पार करने लगे तो वर्षा और तूफान से तो शेषनागजी ने बचा लिया लेकिन तभी यमुना में पानी बढ़ने लगा और वसुदेवजी के मुंह तक पानी चढ़ गया.
यमुना माता श्रीकृष्ण के पैर छुना चाहती थीं, लेकिन श्रीकृष्ण अपने पैर बार-बार सुपड़े में समेट लेते थे. फिर यमुनाजी श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए कहती हैं कि चरण पखारे बगैर तो जाने नहीं दूंगी स्वामी. फिर श्रीकृष्ण अपने पैर बाहर निकालते हैं तो यमुनाजी शांत होकर घटने लगती है.
वसुदेवजी रात्रि के अंधकार में बालकृष्ण को लेकर यशोदा मैया के कक्ष में पहुंच जाते हैं द्वार अपने आप ही खुल जाते हैं. गहरी नींद में सोई यशोदा मैया के पास वह बालकृष्ण को सुलाकर वहां सोई हुई बालिका को ले जाते हैं. पुन कारागार में जाकर वे बालिका को गहरी नींद में सोई देवकी के पास सुला देते हैं. तब योगमाया प्रकट होकर उनकी बेढ़ियां फिर जस की तस कर देती हैं और कहती हैं कि हमारी माया से तुम्हें ये सब याद नहीं रहेगा फिर वसुदेवजी भी सो जाते हैं.
सभी द्वार बंद हो जाते हैं और पहरेदारों की नींद खुल जाती है परिचारिका भी जाग जाती है. वह सभी चारों ओर देखते हैं तभी बालिका के रोने की आवाज आती है. उसकी आवाज सुनकर देवकी और वसुदेवजी की नींद खुल जाती है.
वह बालिका को आश्चर्य से देखते हैं तभी पहरेदार अंदर आ धमकते हैं. साथ में प्रधान कारागार के साथ महिला परिचारिका भी आ जाती है. प्रधान कारागार परिचारिका से कहते हैं कि ले लो इसे. वह वसुदेवजी की गोद से बालिका को लेकर उसे देखकर आश्चर्य करते हुए कहती हैं जाओ महाराज को जाकर समाचार दो की लड़की हुई है.
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