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गीता प्रेस के राधेश्याम खेमका नहीं रहे, घर-घर पहुंचाया वेद-पुराण

राधेश्याम जी ने 40 सालों से गीता प्रेस में अपनी भूमिका निभाते हुए कई धार्मिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया

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कला और संस्कृति
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राधेश्याम खेमका अब इस संसार में नहीं रहे
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राधेश्याम खेमका अब इस संसार में नहीं रहे
(फोटो-ट्विटर/ @airnewsalerts)

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आज गीता प्रेस को कौन नहीं जानता! यह एक ऐसा नाम है, जिसने सनातन साहित्य को घर-घर तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया और इस काम में इतनी बड़ी सफलता प्राप्त की कि शायद ही कोई अन्य ऐसी भारतीय धार्मिक प्रकाशन संस्था हो, जो सफलता के इस स्तर पर पहुंची हो. इसे सफलता के चरम पर पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राधेश्याम खेमका अब इस संसार में नहीं रहे. 87 वर्ष की आयु में 3 अप्रैल, 2021 को वे इहलोक से परलोक गमन कर गए और पीछे छोड़ गए सनातन साहित्य का विशाल संसार.

जैसे ही उनकी मृत्य की खबर फैली, लोगों में शोक-संवेदना की लहर दौड़ गई. देश के आम और खास लोगों ने उन्हें अपने-अपने तरीके से श्रद्धांजलि दी. इस दुख की घड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्विटर हैंडल से शोक संदेश लिखते हुए कहा—

“गीता प्रेस के अध्यक्ष और सनातन साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने वाले राधेश्याम खेमका जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. खेमका जी जीवनपर्यंत विभिन्न सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे. शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं. ओम शांति!”
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गीता प्रेस की स्थापना

गीता प्रेस विश्व की सबसे अधिक हिंदू धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली सबसे बड़ी संस्था के रूप में जानी जाती है. यह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के शेखपुर इलाके में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन एवं मुद्रण का काम कर रही है. इसे एक विशुद्ध धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्था के रूप में जाना जाता है. देश-दुनिया में हिंदी, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों एवं पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री कर रही गीता प्रेस को भारत में घर-घर तक रामचरितमानस, भगवद्गीता, वेद और पुराणों को पहुंचाने का श्रेय प्राप्त है. गीता प्रेस द्वारा कल्याण (हिंदी मासिक) और कल्याण-कल्पतरु (अंग्रेजी मासिक) का प्रकाशन भी किया जाता है.

गीता प्रेस की स्थापना 1923 में हुई थी. इसके संस्थापक गीता का गूढ़ ज्ञान रखने वाले जयदयाल गोयंदका थे. आज यह धार्मिक प्रकाशन संस्था न केवल समूचे भारत में, बल्कि विदेशों में भी अपने उच्च स्थान के साथ-साथ अपनी ऊंची पहचान बनाए हुए है. गीता प्रेस ने निःस्वार्थ सेवा-भाव, कर्तव्य-बोध, दायित्व-निर्वाह, ईश्वरनिष्ठा तथा प्राणिमात्र के कल्याण की भावना एवं आत्मोद्धार का जो संदेश प्रचारित-प्रसारित किया है, वह सभी के लिए अनुकरणीय आदर्श बना हुआ है.

मृदुल स्वभाव के लिए जाने जाते थे राधेश्याम खेमका

राधेश्याम खेमका ने 40 वर्षों से गीता प्रेस में अपनी भूमिका का निर्वाहन करते हुए कई धार्मिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया. मृदुल वाणी के लिए पहचाने जाने वाले राधेश्याम खेमका के पिता सीताराम खेमका मूलतः बिहार के मुंगेर जिले के निवासी थे, जो बाद में वाराणसी आ गए थे.

राधेश्याम के बारे में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गीता प्रेस का कार्यभार संभालने के बाद इन्होंने आधुनिक सोच को समझा धार्मिक साहित्य को घर-घर तक पहुंचाने की योजना बनाई, जिसके अंतर्गत धार्मिक पुस्तकों को छोटे और बड़े सभी आकार में प्रकाशित किया गया

यह इनकी आधुनिक सोच का ही प्रतिफल है कि वर्तमान में गीत प्रेस से प्रतिवर्ष 50 हजार से भी अधिक पुस्तकें बिकती हैं. इसके अलावा इनके मार्गदर्शन में देश के 40 से भी अधिक रेलवे स्टेशनों पर गीत प्रेस के स्टॉल भी स्थापित किए गए और 20 से अधिक शाखाएं.

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Published: 04 Apr 2021,11:06 PM IST

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