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जी नहीं, ये वाक्य साल 2019 में नहीं, बल्कि 1968 में लिखा गया था. पचास साल पहले. हिंदी के बेहतरीन उपन्यास 'राग दरबारी' में, जिसे लिखा था श्रीलाल शुक्ल ने.
हिंदी के लेखक की अगर 1000 किताब बिक जाएं, तो उस किताब को 'बेस्टसेलर' कहने लगते हैं. लेकिन 1968 में प्रकाशित राग दरबारी के कई दर्जन संस्करण अब तक प्रिंटिंग प्रेस से निकल चुके हैं.
हड्डी का डॉक्टर जिस तरह छूकर देखता है कि हड्डी कहां से टूटी है, श्रीलाल शुक्ल भारतीय समाज को उसी तरह छू रहे हैं. जब दर्द अत्यधिक बढ़ जाता है, तो एक स्थिति ऐसी आती है कि हंसी आ जाती है. पाठक इस तरह दर्द से तिलमिलाकर हंस देते हैं. राग दरबारी पढ़ते हुए हंसना पाठक की मजबूरी है. पाठक के पास हंसने के सिवा कोई चारा नहीं बचता.
राग दरबारी अपने समय को डिकोड करते हुए समय की अगर कोई चादर होती है, तो उसे पार कर जाता है. आप पाएंगे कि शिवपालगंज नाम का गांव, जिसके आसपास कहानी बुनी गई है, वो स्पेस को तय करने के साथ-साथ एक किरदार की भूमिका निभाता लगता है. ये आपको आपका अपना गांव या शहर लगेगा.
31 दिसंबर, 1925 को लखनऊ के अतरौली गांव में जन्मे श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी के बारे में मेरी बातें अगर आपको गल्प या अतिशयोक्ति लगती हैं, जरा ये मिसाल देख लीजिए.
शायद उन्हें पता था कि बरसों बाद इस देश में ‘स्वच्छता अभियान’ के नाम पर हो-हल्ला होगा. पेज नम्बर 18 पर शुक्ल लिखते हैं :
कर्ण के जन्म को जेनेटिक साइंस और गणेश भगवान को प्लास्टिक सर्जरी का कमाल बताने के इस दौर के लिए उसी पेज नंबर 18 पर वो लिखते हैं:
पेज नंबर 24 पर वो जाति प्रथा खत्म करने का नायब तरीका बताते हैं:
और पेज नम्बर 40 पर ये लाजवाब कथन:
इसके अलावा पेज 59 पर:
आजकल मची किसान कर्जमाफी की होड़ के बीच लगता है शुक्ल जी को 1968 में इसका अंदाजा हो गया था:
जातिवाद पर प्यार से मारा गया ये जूता देखिए, पेज 82 पर:
सोचिए, एक स्कूल में चपरासी एक स्कूल प्रिंसिपल को ये कह रहा है.
पेज 87 पर वो लिखते हैं:
ऐसे अनेक उद्धरण हैं, जो दिए जा सकते हैं. जिनसे आप महसूस करेंगे कि राग दरबारी 2018 में लिखा गया है. 1968 में तो मात्र प्रकाशित हुआ था, ताकि 1970 में उसे साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया जा सके.
क्या 28 अक्टूबर, 2011 को श्रीलाल शुक्ल के इस फानी दुनिया को अलविदा कहने की खबर आई थी, सही थी?
(भोपाल के मानस भारद्वाज कवि और थियेटर आर्टिस्ट हैं. फिलहाल मुंबई में रहकर कला-संस्कृति के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है)
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