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डॉ. भीमराव अंबेडकर के बाद, कांशीराम को दलित आंदोलन का दूसरा सबसे बड़ा नाम माना जाता है. बहुजन नायक या साहेब के नाम से मशहूर, कांशीराम ने 1984 में एक नए आंदोलन की शुरुआत की और उसे नाम दिया ‘बहुजन समाज पार्टी’. ये वो पार्टी बनी जिसने आगे चलकर चार बार भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई. साथ ही कई बार केंद्र की सरकारों में अहम भूमिका निभाई.
15 मार्च, 1934 को जन्मे कांशीराम, पंजाब के रोपड़ जिले के खवासपुर गांव के रामदसिया समुदाय के दलित थे. उन्होंने अपनी बीएससी पूरी करने के बाद 1957 में महाराष्ट्र के पुणे में DRDO में बतौर असिस्टेंट साइंटिस्ट ज्वाइन किया.
कांशीराम का गांव छुआछूत के कलंक से मुक्त था. जातिगत भेदभाव से उनका सामना पहली बार पुणे के एक्सप्लोसिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैबोरेटरी (ERDL) में काम करते समय हुआ, जहां मैनेजमेंट ने बाबासाहेब अंबेडकर जयंती और बुद्ध जयंती की छुट्टियों को रद्द कर दिया था. ये इन दो छुट्टियों को बहाल करने का संघर्ष ही था, जिसने कांशीराम को दलित समुदाय के हितों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया.
अंबेडकर के लेखन, खासकर ‘The Annihilation of Caste’ ने कांशीराम के अंदर अपनी पहचान को लेकर गर्व और दलितों को एक साथ लाने की इच्छा पैदा की. उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के लिए 8 सालों तक काम किया, लेकिन फिर पार्टी के काम करने के तरीके से उनका मोहभंग हो गया.
दलितों की दुर्दशा को समझने के लिए कांशीराम साइकिल से देशभर में घूमे और उन्होंने 1978 में ऑल इंडिया एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी एम्प्लॉयी एसोसिएशन (BAMCEF) का गठन किया. ये एक गैर-राजनीतिक, गैर-धार्मिक संगठन था. इसके बाद 1981 में कांशी राम ने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (DS4) की शुरुआत की.
1962 में उन्होंने ‘The Chamcha Age (an Era of the Stooges)’ नाम की किताब लिखी, जिसमें उन दलित नेताओं की निंदा की गई थी जिन्होंने अपने फायदे के लिए कांग्रेस जैसी पार्टियों के लिए काम किया.
1988 के इलाहाबाद लोकसभा उपचुनाव में कांशीराम ने वीपी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा और उन्हें 70,000 वोटों से हार मिली. उनकी हार का सिलसिला चलता रहा और 1989 में पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र के चुनाव में वो चौथे नंबर पर रहे.
किस्मत तब बदली जब उन्होंने 1991 में इटावा लोकसभा सीट पर चुनाव जीता. 1996 में कांशीराम ने होशियारपुर लोकसभा सीट पर जीत हासिल की. 1993 में उन्होंने समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाकर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई.
90 के दशक की शुरुआत में कांशीराम ने ‘मनुवादियों’ और सवर्णों के खिलाफ आक्रामक मुहिम छेड़ी. लेकिन जल्दी ही उन्हें सभी जातियों की अहमियत समझ आ गई और उन्हें ब्राह्मण, बनिया और मुसलमानों का भी समर्थन मिला, जिससे उस दशक में कांग्रेस का लगभग पूरा वोट बैंक उनके पाले में आ गया.
कांशीराम साल 1977 में मायावती के परिवार से मिले थे, उन्होंने मायावती से कहा था, 'मैं एक दिन तुम्हें इतना बड़ा नेता बनाउंगा कि IAS अफसरों की पूरी लाइन तुम्हारे ऑर्डर के लिए खड़ी हो जाएगी.' इसके बाद बीएसपी ने उत्तर प्रदेश में 1997, 2002 और फिर चौथी बार 2007 में सरकार बनाई.
कांशी राम को डायबिटीज समेत कई बीमारियों ने घेरा हुआ था. साल 1994 में उनको दिल का दौरा पड़ा, 1995 में दिमाग की एक नस में खून का थक्का जम गया, और 2003 में एक और दौरा पड़ा. इस दौरे के बाद कांशीराम अपने निधन तक बिस्तर पर ही रहे.
साल 2002 में कांशीराम ने 14 अक्टूबर 2006 को बौद्ध धर्म अपनाने की इच्छा जताई थी. इसी तारीख को अंबेडकर के बौद्ध धर्म अपनाने के 50 साल पूरे होने वाले थे लेकिन इस तारीख से 9 दिन पहले ही दिल का दौरा पड़ने से उनका देहांत हो गया.
उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के मुताबिक किया गया और मायावती ने ही उनको मुखाग्नि दी. ।कांशीराम के अवशेष आज भी नोएडा के दलित प्रेरणा स्थल में रखे हैं.
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