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मेजर शैतान सिंह,जिन्‍होंने पैर में बंदूक बांध किया दुश्मन का सामना

जिन्होंने 1962 में चीनी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी

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जिन्होंने 1962 में चीनी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी
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जिन्होंने 1962 में चीनी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी
(फोटो: Quint Hindi)

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18 नवंबर 1962. लद्दाख की चुशूल घाटी. एक लहूलुहान मेजर के पैर में मशीनगन का ट्रिगर बंधा हुआ था और वो दुश्मनों पर अंधाधुंध गोलिंया चला रहा था. उसके शरीर से रिसती खून की हर बूंद उसके बटालियन के जवानों का हौसला बढ़ा रही थी. वो अपनी हर आखिरी सांस के साथ मातृभूमि पर न्‍योछावर हो रहा था. नाम था मेजर शैतान सिंह.

13 कुमाऊं रेजिमेंट की सी- बटालियन के जवान, जिन्होंने चीनी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. मात्र 124 जवानों ने 3000 चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए. इंडियन आर्मी मुस्तैदी से लद्दाख की इस पिघला देने वाली सर्द हवाओं में देश की रक्षा के लिए तैयार थे.

18 नवंबर की सुबह के धुंधलके में जब घड़ी सुबह के साढ़े तीन बजा रही थी, तब भारतीय सीमा की ओर रोशनी की हलचल नजर आई, चौकस भारतीय जवानों ने मोर्चा संभाल लिया. इन 124 जवानों की बटालियन को 38 साल के मेजर शैतान सिंह लीड कर रहे थे.

मेजर शैतान सिंह के आदेश पर बंदूकों के मुंह खोल दिए गए. लेकिन यह महज याक का एक झुंड था, जिनके गले में लालटेन बंधी थी. मेजर को ये समझते देर न लगी कि चीनी सेना ने याक का झुंड इंडियन आर्मी को धोखा देने के लिए भेजा था. चीनी सेना को भारतीय चौकी पर जवानों की संख्या और उनके असलहे के बारे में सटीक जानकारी थी. उनकी गोलियां बर्बाद करने की यह एक चाल चली गई थी.

मेजर शैतान सिंह ने मौके की नजाकत को भांपते हुए अपने जवानों से शांत रहने के लिए कहा. सुबह की रोशनी के साथ चीन के सैनिकों ने मोर्टार और ऑटोमेटिक राइफल से भारतीय सैनिकों पर धावा बोल दिया. फिर क्या था, भारतीय जवानों ने अपनी 3 नॉट 3 राइफल में इंसानी हौसले का बारूद भरकर दुश्मन को ढेर करना शुरू कर दिया.

भारत की तरफ से मुंहतोड़ जवाब को देखते हुए चीनी सेना ने भारतीय चौकी को घेरने की योजना बनाई. भारी तादाद में मौजूद चीनी सैनिकों ने अलग-अलग तरफ से भारतीय चौकी पर हमला शुरू कर दिया.

इन हालात में रेनफोर्समेंट न पहुंच पाने की सूरत में मेजर शैतान सिंह को चौकी छोड़कर वायरलेस पर पीछे हटने का आदेश दिया गया. मेजर शैतान सिंह ने अपने साथियों को बुलाया और कहा:

दुश्मन हजारों की संख्या में है और हमें अपनी पोस्ट छोड़ कर पीछे हटने का आदेश हुआ है. जिसे वापस जाना है, वह जा सकता है. मैं खून के आखिरी कतरे तक अपनी मातृभूमि के लिए दुश्मन से लड़ूंगा.
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उनका साहस और जज्बा देख 124 भारतीय सैनिकों ने देश के लिए दुश्मनों का सामना करने का फैसला किया. हमलावर चीनी सैनिकों पर भारतीय रणबांकुरे काल बनकर टूट पड़े और रेजांगला की पहाड़ी बारूद के धुंधलके से सराबोर हो उठी. न मृत्यु का भय, न काल की चिंता. भारतीय सैनिक मरते रहे और मारते रहे.

खून से लथपथ मेजर ने दुश्मनों पर की अंधाधुंध फायरिंग

मेजर शैतान सिंह सभी पोजि‍शन पर बिना कवर के पहुंचते हुए दुश्मन से लोहा लेने लगे, तभी उनके पेट और पैरों में गोलियां लगने से वह घायल हो गए. उन्हें एक चट्टान के पीछे ले जाया गया, मगर वो अपनी मौत से भिड़ने का निश्चय कर चुके थे. उन्होंने सैनिकों को मशीनगन के ट्रिगर को खुद के पैरों से बांधने के लिए कहा और चीनी सैनिकों पर अंधाधुंध फायर करते रहे.

उन्होंने अपने सैनिकों को आदेश दिया और कहा कि जाकर सीनियर्स से संपर्क करें. खून से लथपथ मेजर पैर में ट्रिगर बांधकर दुश्मनों के सीने पर गोलिया चलाते रहे. दो दिन बाद जब मेजर की खोज की गई, तो वो बर्फ के नीचे दबे मिले. सांसें थम चुकी थीं, लेकिन जज्‍बा ऐसा कि मानों अभी दोबारा जिंदगी मिले, तो देश के लिए फिर कुर्बान हो जाएं.

अपने प्राणों का बलिदान करते हुए रेजांगला चौकी पर जवानों ने भारतीय तिरंगे को नीचा नहीं होने दिया और 1300 सौ से ज्यादा दुश्मनों की लाशें बिछा दीं. इस युद्ध में असलहा खत्म हो जाने पर भारतीय सैनिक हाथों से लड़ते रहे.

चीन को सबसे ज्यादा नुकसान रेजांगला की चौकी पर ही उठाना पड़ा. इन सैनिकों के जीते जी एक भी चीनी जवान भारतीय सीमा में नहीं घुस पाया. 20 नंवबर को भारत और चीन के बीच हो रहा ये युद्ध खत्म हो गया. मातृभूमि की रक्षा करते हुए 114 सैनिक शहीद हो गए, जबकि छह सैनिकों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया.

मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया और उनके साथियों को वीरचक्र और सेना पदक से सम्मानित किया गया.

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