20 अक्टूबर 1962 को शुरू हुआ भारत-चीन युद्ध एक महीने तक चला जिसमें 10 से 20 हजार भारतीय सैनिक और 80 हजार चीनी सैनिक शामिल हुए.
युद्ध आज से 56 साल पहले 21 नवंबर को खत्म हुआ, जब चीन ने युद्ध-विराम घोषित किया. इस युद्ध के बारे में हम आपको कुछ बातें बता रहे हैं जो शायद आप नहीं जानते हों.
1. युद्ध किसने शुरू किया
भारत का मानना है कि युद्ध चीनी आक्रमण के बाद शुरू हुआ, जबकि चीन का कहना है कि युद्ध भारत की ‘फॉरवर्ड पॉलिसी’ का नतीजा था जिसके तहत चीन के दावे वाले क्षेत्रों में सैन्य चौकियां बनाई जा रही थीं.
इराक में भारत के पूर्व राजदूत, आर. एस. काल्हा ने एक लेख में लिखा है कि इस बात को साबित करने के लिए कई दस्तावेज हैं कि युद्ध इसलिए शुरू हुआ क्योंकि चीन भारत को “सबक” सिखाना चाहता था. इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के लिए अपने लेख में, वो लिखते हैं:
“तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति लियु शाउची ने श्रीलंकाई नेता फेलिक्स भंडारनायके को बताया था कि 1962 का युद्ध ‘भारत के अहंकार और महानता के भ्रम को तोड़ने के लिए था. चीन ने भारत को सबक सिखाया था और जताया था कि वह ऐसा बार-बार करेगा.’माओत्से तुंग ने इसी सोच की पुष्टि की जब उन्होंने 1964 में एक नेपाली प्रतिनिधिमंडल को बताया कि ‘भारत और चीन के बीच बड़ी समस्या मैकमोहन रेखा नहीं थी, बल्कि तिब्बत का सवाल था’. 1973 में झाओ एन लाई ने किसिंजर को बताया था कि युद्ध इसलिए हुआ क्योंकि नेहरू ‘मगरूर’ हो रहे थे.”
2. क्या युद्ध की योजना बीजिंग के समय के मुताबिक बनाई गई थी?
काल्हा आगे कहते हैं कि आक्रमण कितना सुनियोजित था, ये समझने के लिए आपको सिर्फ एक तथ्य देखने की जरूरत है: “चीनी हमला सीमा के सभी सेक्टरों में एक साथ शुरू हुआ, पश्चिम में और पूरब में, एक समय पर- 20 अक्टूबर 1962 को 5 बजे भारतीय समयानुसार—ये बीजिंग के समय से पूरी तरह मेल खाता था.”
3. नेहरू और कृष्ण मेनन कहां थे?
काल्हा बताते हैं कि तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन 17 सितंबर 1962 को संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हिस्सा लेने न्यूयॉर्क गए थे और 30 सितंबर 1962 को भारत लौटे थे. यहां तक कि नेहरू भी 8 सितंबर को राष्ट्रमंडल प्रधानमंत्री सम्मेलन में हिस्सा लेने 8 सितंबर को दिल्ली से गए थे और 2 अक्टूबर को लौटे थे, लेकिन फिर 12 अक्टूबर को कोलंबो चले गए थे.
वो दिल्ली लौटे थे 16 अक्टूबर 1962 को. यहां तक कि चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जनरल कौल 2 अक्टूबर तक छुट्टियों पर कश्मीर में थे, जबकि डायरेक्टर ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत की यात्रा पर थे.
4. वायु सेना का इस्तेमाल नहीं करने का फैसला
भारत-चीन युद्ध के बारे में इस बात का जिक्र खूब होता है कि वायु सेना इस्तेमाल नहीं करना ही भारत की हार का कारण था. एक महीने तक चला लंबा युद्ध केवल भारतीय थल सेना ने लड़ा था.
रिटायर्ड एयर कमोडोर रमेश फड़के एक लेख में कहते हैं “सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व में दूरी” और “सैन्य नेतृत्व से बात करने की अनिच्छा” के चलते नेहरू सोचते थे कि चीन भारत पर आक्रमण नहीं करेगा.
वो आगे कहते हैं कि भारतीय सेना ने भारत सरकार को व्यावहारिक सैन्य विकल्प सुझाए थे. वो लिखते हैं कि लेफ्टिनेंट जनरल एस.एस.पी. थोराट ने कृष्णा मेनन को सीमा पर सेना की जरूरतों के बारे में कई योजनाएं दिखाई थीं, लेकिन मेनन ने उन्हें ‘डर पैदा करने वाला’ कहकर खारिज कर दिया और कभी नेहरू को बताया ही नहीं. युद्ध के बाद नेहरू ने उन योजनाओं पर नजर डाली थी और थोराट को मुलाकात के लिए बुलाया था, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.
5. अमेरिका से सहायता की मांग
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिकी मदद मांगी थी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी को लिखा था कि वो चीनी हमले को रोकने के लिए भारत को जेट लड़ाकू विमान दें. ये जानकारी सीआईए के पूर्व अधिकारी ब्रूस रीडेल ने अपनी किताब जेएफकेज फॉरगॉटेन क्राइसिस में दी है.
घबराहट में नेहरू की लिखी ये चिट्ठी तत्कालीन भारतीय राजदूत ने अपने हाथों से अमेरिकी राष्ट्रपति को दी थी. नेहरू ने लड़ाकू जेट के 12 स्कवॉड्रन और एक आधुनिक रडार सिस्टम की मांग की थी.
6. क्या युद्ध के दौरान पाकिस्तान भारत पर हमले की योजना बना रहा था?
2015 में इंडियन एक्सप्रेस के अपने लेख में खालिद अहमद ने लिखा था कि ब्रूस रीडेल की किताब के मुताबिक चीन ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान को भारत पर आक्रमण में साथ देने का प्रस्ताव दिया था, शायद कश्मीर की“ट्रॉफी” के लिए. बताया जाता है कि अयूब खान ने भारत पर हमला नहीं करने के बदले में अमेरिका से कश्मीर की मांग की.
किताब में ये भी कहा गया कि राष्ट्रपति केनेडी ने भारत को सैन्य मदद के रूप में 500 मिलियन डॉलर का प्रस्ताव दिया था लेकिन उनकी हत्या के कारण ये योजना रद्द हो गई.
7. लता मंगेशकर का मशहूर गीत
1962 के युद्ध की पृष्ठभूमि में ही लता मंगेशकर ने 27 जून 1963 को देशभक्ति गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया था. कई रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने ये गीत नेहरू की मौजूदगी में गाया था. सी. रामचंद्र के संगीत से सजे और प्रदीप के लिखे इस गीत ने प्रधानमंत्री की आंखों में आंसू ला दिए थे.
(इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस, इंडियन एक्सप्रेस और इंडिया टुडे से ली गई जानकारी के साथ)
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