Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Zindagani Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Zindagi ka safar  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019अक्खड़पन के साथ संवेदनाएं जताने वाले महारथी थे नागार्जुन

अक्खड़पन के साथ संवेदनाएं जताने वाले महारथी थे नागार्जुन

1975 की इमरजेंसी की बात भी इन दिनों काफी हो रही है इस पर नागार्जुन ने लिखा

क्विंट हिंदी
जिंदगी का सफर
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स्पेशल पॉडकास्ट सर्विस में आज बात बाबा नागार्जुन की
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स्पेशल पॉडकास्ट सर्विस में आज बात बाबा नागार्जुन की
(फोटो: Twitter)

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क्विंट हिंदी की स्पेशल पॉडकास्ट सर्विस में आज बात बाबा नागार्जुन की. अक्खड़ मिजाज, जमीनी जुड़ाव और भदेस रूपकों के रास्ते अपनी बात कहने वाले बाबा नागार्जुन की यूं तो हर रचना कालजयी है लेकिन आधुनिक कविता के उस प्रगतिवादी समंदर से कुछ मोती हम आपके समक्ष पेश कर रहे हैं.

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अकाल और उसके बाद

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त

कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद

धुआं उठा आंगन से ऊपर कई दिनों के बाद

चमक उठी घर भर की आंखें कई दिनों के बाद

कौए ने खुजलाई पांखें कई दिनों के बाद

तीनों बन्दर बापू के

बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के!

सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के!

सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बन्दर बापू के!

ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बन्दर बापू के!

जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बन्दर बापू के!

लीला के गिरधारी निकले तीनों बन्दर बापू के!

सर्वोदय के नटवरलाल

फैला दुनिया भर में जाल

अभी जियेंगे ये सौ साल

ढाई घर घोड़े की चाल

मत पूछो तुम इनका हाल

सर्वोदय के नटवरलाल

सेठों का हित साध रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!

युग पर प्रवचन लाद रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!

सत्य अहिंसा फांक रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!

पूंछों से छबि आंक रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!

दल से ऊपर, दल के नीचे तीनों बन्दर बापू के!

मुस्काते हैं आंखें मीचे तीनों बन्दर बापू के!

छील रहे गीता की खाल

उपनिषदें हैं इनकी ढाल

उधर सजे मोती के थाल

इधर जमे सतजुगी दलाल

मत पूछो तुम इनका हाल

सर्वोदय के नटवरलाल

हमें अंगूठा दिखा रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!

कैसी हिकमत सिखा रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!

प्रेम-पगे हैं, शहद-सने हैं तीनों बन्दर बापू के!

गुरुओं के भी गुरु बने हैं तीनों बन्दर बापू के!

सौवीं बरसी मना रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!

बापू को ही बना रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!

1975 की इमरजेंसी के वक्त बाबा नागार्जुन ने लिखा –

खड़ी हो गई चांपकर कंकालों की हूक

नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक

जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक

बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक

धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक

जहां-तहां दगने लगी शासन की बंदूक

जली ठूंठ पर बैठकर गई कोकिला कूक

बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक

बादल को घिरते देखा है

अमल धवल गिरि के शिखरों पर,

बादल को घिरते देखा है

छोटे-छोटे मोती जैसे

उसके शीतल तुहिन कणों को,

मानसरोवर के उन स्वर्णिम

कमलों पर गिरते देखा है,

बादल को घिरते देखा है

तुंग हिमालय के कंधों पर

छोटी बड़ी कई झीलें हैं,

उनके श्यामल नील सलिल में

समतल देशों से आ-आकर

पावस की उमस से आकुल

तिक्त-मधुर विषतंतु खोजते

हंसों को तिरते देखा है

बादल को घिरते देखा है

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Published: 30 Jun 2018,08:59 AM IST

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