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थलाइवी: एक्टर से नेता और फिर ‘अम्मा’ बनीं जयललिता की पूरी कहानी

जयललिता की जिंदगी पर आधारित फिल्म ‘थलाइवी’ में कंगना रनौत लीड रोल निभा रही हैं.

आकांक्षा सिंह
जिंदगी का सफर
Updated:
 जयललिता की जिंदगी पर आधारित फिल्म ‘थलाइवी’ में लीड रोल में हैं कंगना रनौत
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जयललिता की जिंदगी पर आधारित फिल्म ‘थलाइवी’ में लीड रोल में हैं कंगना रनौत
(फोटो: कामरान अख्तर/क्विंट हिंदी)

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तमिलनाडु की सबसे पावरफुल मुख्यमंत्रियों में से एक रहीं जे जयललिता के किरदार को कंगना रनौत फिल्मी पर्दे पर उतारने जा रही हैं. कंगना के जन्मदिन पर फिल्म ‘थलाइवी’ का ट्रेलर रिलीज किया गया, जो जयललिता की जिंदगी के कई अहम किस्सों को बताता है. फिल्म में 1989 की उस घटना का भी जिक्र है, जो जयललिता के राजनीतिक करियर में अहम माना गया. जयललिता को लाइमलाइट नहीं पसंद थी, लेकिन जिंदगी ने ऐसा रुख लिया कि वो साउथ फिल्मों की बड़ी हिरोइन बनीं और फिर तमिल राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में से एक.

जयललिता के मुख्यमंत्री बनने तक के सफर में कई उतार-चढ़ाव आए. तमिलनाडु की द्रविड़ प्रधान राजनीति में कर्नाटक की अयंगर ब्राह्मण जयललिता ने मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया.

फिल्मों में इस तरह हुई जयललिता की एंट्री

24 फरवरी 1948 को मैसूर में जन्मीं जयललिता बचपन से पढ़ाई-लिखाई में अव्वल रहीं थीं. घर की जरूरतों और मां के कहने पर उन्होंने एक्टिंग में कदम रखा. उनकी मां ने घर चलाने के लिए फिल्मों में कदम रखा था, और इसी तरह जयललिता की एंट्री फिल्मों में हुई. महज 15 साल की उम्र में उन्होंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत की.

(फोटो: Twitter/Cinemafia)

उन्होंने तमिल, तेलुगु और कन्नड़ में 140 से अधिक फिल्मों में एक्टिंग की. मशहूर एमजी रामाचंद्रन के साथ उन्होंने कई फिल्मों में काम किया. जयललिता ने एक बॉलीवुड फिल्म में भी काम किया था, वो थी 1989 में आई ‘इज्जत’, इसमें उनके ऑपोजिट धर्मेंद्र थे.

हिंदी फिल्म इज्जत में धर्मेंद्र के साथ जयललिता(फोटो: यूट्यूब स्क्रीनशॉट)

MGR के लिए राजनीति में आईं

जयललिता MGR को अपना गुरु मानती थीं. सिमी ग्रेवाल के शो ‘रॉन्देवू विद सिमी ग्रेवाल’ में उन्होंने कहा था, “मां के बाद MGR ने मेरी जिंदगी में डॉमिनेट किया. मैं उनका काफी सम्मान करती थी. पब्लिक के लिए वो भगवान थे, मेरे लिए वो मेरे गुरू थे.”

जयललिता ने MGR के कहने पर ही राजनीति में कदम रखा था. वो MGR की पार्टी अन्नाद्रमुक (AIADMK) से जुड़ीं. MGR ने एम करुणानिधि की पार्टी द्रमुक से टूटने के बाद अन्नाद्रमुक का गठन किया था. साल 1983 में MGR ने जयललिता को पार्टी का सचिव नियुक्त किया और राज्यसभा के लिए मनोनीत किया.

(कार्ड: आकांक्षा सिंह/क्विंट हिंदी)

1987 में MGR के निधन के बाद जयललिता राजनीति से हटना चाहती थीं, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया. इसके बाद जयललिता ने पार्टी में अपनी जगह बनानी शुरू की और जल्द ही वो पार्टी का अहम चेहरा बन गईं. जयललिता 1989 में तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता बनने वाली पहली महिला बनीं.

(कार्ड: आकांक्षा सिंह/क्विंट हिंदी)

1991 विधानसभा चुनावों में उनके नेतृत्व में पार्टी ने तमिलनाडु में जबरदस्त जीत हासिल की. 1991 से 1996 तक वो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहीं. हालांकि, साल 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा, लेकिन तब तक जयललिता एक मजबूत राजनीतिक हस्ती बन चुकी थीं.

विधानसभा में जयललिता(फोटो: ट्विटर)
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राजनीतिक करियर का वो अहम मोड़

जिंदगी ने जयललिता की राह में कई मुश्किलें पैदा कीं, लेकिन कहा जाता है कि हर बार उन्होंने उतनी मजबूती से वापसी की है. 1989 में तमिलनाडु विधानसभा में जयललिता के साथ जो अपमान हुआ था, उसका बदला उन्होंने विधानसभा चुनाव जीतकर लिया. ये घटना ‘थलाइवी’ के ट्रेलर में भी प्रमुखता से दिखाई गई है.

1989 में तमिलनाडु विधानसभा में, जब जयललिता विपक्ष की नेता थीं, तब सदन के विधायकों ने एक शर्मनाक घटना को अंजाम दिया था. उन्हें भरे सदन में असॉल्ट किया गया था. इसका आरोप जयललिता ने तब सीएम रहे करुणानिधि के मंत्रियों और विधायकों पर लगाया था.

सदन में हुए हमले के बाद जयललिता(फोटो: यूट्यूब स्क्रीनशॉट)

तमिलनाडु विधानसभा में हुई इस शर्मनाक घटना को याद करते हुए जयललिता ने सिमी ग्रेवाल को बताया था,

“उनके (करुणानिधि के) विधायकों और मंत्रियों ने मुझे फिजिकली असॉल्ट किया. उन्हें जो हाथ में मिला, कुर्सी, माइक, स्पीकर टेबल पर बड़ी ब्रास बेल. अगर वो मेरे सिर पर हमला करने में सफल होते, तो मैं आज जिंदा नहीं होती. उस दिन मेरे विधायकों ने मुझे बचाया. एक ने मेरी साड़ी खींचने की भी कोशिश की. उन्होंने मेरे बाल खींचे. मेरे बाल तोड़ भी लिए. उन्होंने मुझपर चप्पलें फेंकी, कागजों के बंडल फेंके, किताबें फेंकी. उस दिन मैं रोते हुए विधानसभा से निकली, मैं काफी गुस्से में भी थी.”

उस दिन जयललिता ने खुद से एक वादा किया था, जो उन्होंने पूरा भी किया. उन्होंने प्रण लिया था कि वो तब तक सदन में पांव नहीं रखेंगी जब तक करुणानिधि सीएम बने रहेंगे, और जब वो लौटेंगी तो बतौर मुख्यमंत्री वापस आएंगी. 1991 में विधानसभा चुनाव जीतकर उन्होंने अपना ये वादा पूरा किया.

(कार्ड: आकांक्षा सिंह/क्विंट हिंदी)

लगते रहे भ्रष्टाचार के आरोप

राजनीतिक जीवन के दौरान जयललिता पर सरकारी पूंजी के गबन, गैर कानूनी ढंग से भूमि अधिग्रहण और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगे. उन्हें ‘आय से अधिक संपत्ति’ के एक मामले में 27 सितंबर 2014 को सजा भी हुई और मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने 11 मई 2015 को बरी कर दिया जिसके बाद वह फिर से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं.

वह साल 1991-96 में पहली बार, 2001 में दूसरी बार, 2002 में तीसरी बार, 2011 में चौथी बार और 2015 में पांचवीं और 2016 में छठी बार मुख्यमंत्री बनीं.

(कार्ड: आकांक्षा सिंह/क्विंट हिंदी)

बीमारी, रहस्य और निधन

जयललिता को सितंबर 2016 में बुखार और डीहाइड्रेशन की शिकायत पर चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था. किस बीमारी के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, ये आज भी एक रहस्य है. उनकी मौत की वजह को लेकर कई तरह की खबरें सामने आईं, लेकिन पुष्टि किसी की नहीं हो सकी. लंबे समय तक कोमा में रहने के बाद 5 दिसंबर 2016 को उनका निधन हो गया.

पार्टी के अंदर और सरकार में रहते हुए मुश्किल और कठोर फैसलों के लिए मशहूर जयललिता को तमिलनाडु में आयरन लेडी और तमिलनाडु की मार्गरेट थैचर भी कहा जाता है.

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Published: 25 Mar 2021,08:02 PM IST

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