आपको पता है कि ये आपकी जान ले रहा है. हर ग्लास के साथ और हर कश के साथ, आप अपने जीवन के कई साल कम कर रहे हैं.
जिंदगी की तमाम लड़ाइयों में से किसी लत से जंग शायद सबसे ज्यादा चुनौती भरी होती है. इसमें अपराधबोध, लाचारी, दूसरों पर निर्भरता, निष्क्रिय हो जाना और कैद हो जाना सब एक साथ होता है.
लेकिन इस जाल से बाहर निकलना संभव है. इसके लिए दवा, थेरेपी और रिहैबिलिटेशन अच्छे विकल्प हैं, लेकिन एक और चीज है, जो लत से निपटने के लिए प्रभावी साबित हो रही है. वो है, एक्सरसाइज, जी हां रेगुलर एक्सरसाइज.
इससे पहले कि हम ये समझें कि एक्सरसाइज किसी लत से छुटकारा दिलाने में किस तरह मददगार हो सकती है, ये समझते हैं कि लत लगने में आखिर होता क्या है.
जब पड़ जाती है नशे की आदत
जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की कंसल्टेंट साइकाइट्रिस्ट डॉ शमसा सोनावाला बताती हैं कि एडिक्शन ब्रेन के रिवॉर्ड पाथवे को एक्टिव करता है, जो खुशी और संतुष्टि प्रदान करने वाले न्यूरोट्रांसमीटर को बढ़ाता है.
ब्रेन के कुछ एरिया में हैप्पी न्यूरोकेमिकल्स बढ़ता है. इसलिए आप अधिक से अधिक उस पदार्थ को चाहते हैं और फिर ब्रेन इस वातावरण के अनुकूल और उस पर निर्भर हो जाता है. ये एक आदत बन जाती है और लगता है कि इस आनंद को पाने का कोई दूसरा तरीका नहीं है.डॉ शमशा सोनावाला
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार नशीले पदार्थ लेने से ‘डिपेंडेंस सिंड्रोम’ हो सकता है. इसमें बिहेवियर, संज्ञानात्मक और मनोवैज्ञानिक घटनाओं का समूह देखने को मिलता है, जो नशीले पदार्थों के बार-बार उपयोग के बाद विकसित होता है. इसमें आमतौर पर ड्रग्स लेने की तीव्र इच्छा शामिल होती है. इसके यूज को कंट्रोल करने में कठिनाइयां होने, हानिकारक परिणामों के बावजूद इसका यूज बना रहता है. ऐसी स्थिति में प्रभावित व्यक्ति अन्य कामों और जिम्मेदारियों की तुलना में ड्रग के यूज को अधिक प्राथमिकता देता है. इससे आपके बर्दाश्त करने की क्षमता कम होती है. कभी-कभी आप ड्रग या अन्य नशीला पदार्थ छोड़ने के कारण डिप्रेशन, बेचैनी, मूड स्विंग, दर्द, अनिद्रा जैसी स्थिति में पहुंच जाते हैं.
एक्सरसाइज का क्या रोल हो सकता है?
इस बात के प्रूफ सामने आए हैं कि फिजिकल एक्सरसाइज और रिलैप्स ( दुबारा नशे की लत लगना) की घटनाओं के कम होने बीच एक सकारात्मक संबंध है.
उदाहरण के लिए, हाल की एक स्टडी में पाया गया है कि एक्सरसाइज से कोकीन की लत को खत्म किया जा सकता है. रिसर्च साइंटिस्ट और स्टडी के सह-लेखक के हवाले से कहा गया, “हमारे परिणाम बताते हैं कि कोकीन एब्यूज को ठीक करने के लिए एक कॉम्प्रिहेंसिव ट्रीटमेंट प्रोग्राम के हिस्से के रूप में, रेगुलर रूप से एरोबिक्स एक्सरसाइज रिलैप्स की रोकथाम के लिए एक उपयोगी रणनीति हो सकती है. यह देखने के लिए और रिसर्च की आवश्यकता है कि क्या ये परिणाम दूसरे नशीले ड्रग्स के लिए भी सही हैं या नहीं.”
लेकिन ये संबंध क्या समझाता है? ग्लोबल हॉस्पिटल, मुंबई के कंसल्टेंट साइकाइट्रिस्ट डॉ संतोष बांगर हमें बताते हैं कि ऐसे कई तरीके हैं, जिनमें एक्सरसाइज से मदद मिलती है.
“एक बेसिक लेवल पर, ये दिन को सही रूप देता है. एक बार जब आपका रूटीन बन जाता है, तो शराब या धूम्रपान की लालसा से खुद को ध्यान हटाना आसान होता है. इसके साइंस को ऐसे समझा जा सकता है कि एक्सरसाइज के दौरान एंडोर्फिन जैसे पॉजिटिव हार्मोन रिलीज होते हैं, जिससे हमारी हेल्थ पर पॉजिटिव इफेक्ट पड़ता है.”डॉ संतोष बांगर
डॉ शमशा एक ऐसे ही तर्क की व्याख्या करती हैं. “सौभाग्य से, एडिक्शन में जब आप नशीला पदार्थ लेते हैं तो उस दौरान जो केमिकल बढ़ता है, वही केमिकल जब आप एक्सरसाइज करते हैं तब बढ़ता है. हमारा शरीर कुछ इस तरह से बना है कि यह फिजिकली एक्टिव हो सके."
कई लोग जो नशे के आदी हैं, वे दूसरी परेशानियों से भी जूझते हैं. डिप्रेशन या चिंता हो सकती है. एक्सरसाइज डिप्रेशन के लिए एक साबित हो चुका इलाज है. इसलिए यह एक ही बार में दो चीजों का इलाज करता है- एक लत और दूसरा इससे संबंधित दूसरी दिक्कतों से. इस तरह, ये क्रेविंग और रिलैप्स यानी फिर से नशे की लत लगने के रिस्क को कम करता है.डॉ शमशा सोनावाला
हालांकि, दोनों डॉक्टरों का मानना है कि इलाज का कोर्स नशे की गंभीरता पर निर्भर करेगा. अगर ये हल्का और सिर्फ एक ही पदार्थ के बारे में है तो एक प्रॉपर एक्सरसाइज प्रोग्राम- खासकर एक ग्रुप एक्टिविटी के रूप में - बहुत मदद कर सकता है.
“कार्डियो और योग अच्छी तरह से काम करते हैं. एक ग्रुप इसमें सामाजिक पहलू और जवाबदेही को जोड़कर इसे बेहतर बना सकता है. ऐसे में निरंतरता और एक्सरसाइज किए जाने की अधिक संभावना है.”
अधिक गंभीर मामलों, वह बताती हैं, एक उचित डिटॉक्स प्रक्रिया की आवश्यकता होगी. और इसके साथ लत से निपटने के लिए एक्सरसाइज को एक पावरफुल टूल के रूप में जोड़ा जा सकता है.
डॉ संतोष कहते हैं,
यह एक समग्र दृष्टिकोण है. दवा का कॉम्बिनेशन, साइकोलॉजिकल थेरेपी, जैसे काउंसलिंग, टॉकिंग थेरेपी, सोशल इंटरवेंशन्स, मेडिटेशन और एक्सरसाइज यह सब एक व्यक्ति किसी के मार्गदर्शन में कर सकता है.
वह सलाह देते हैं, एक सेल्फ हेल्प ग्रुप भी चुना जा सकता है.
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