ADVERTISEMENTREMOVE AD

CET हो या Board Exams भारत का पब्लिक एग्जामिनेशन सिस्टम अब भी निष्पक्ष नहीं

भारत में अधिकांश public examinations उम्मीदवारों को चुनने के बजाय उन्हें बाहर करने का काम कर रही हैं.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

केंद्रीय विश्वविद्यालयों (Central Universities) में एडमिशन के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटीज कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (CUCET) एक बार फिर सुर्खियों में है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने हाल ही में घोषणा की है कि सत्र 2022-2023 में CUCET के जरिए देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश दिया जाएगा.

ग्रेजुएशन और पाेस्टग्रेजुएशन कोर्स में एडमिशन देने के लिए इस परीक्षा में प्राप्त अंकों का उपयोग किया जाना है. अभी इस प्रक्रिया के लिए 12वीं कक्षा में प्राप्त अंकों का इस्तेमाल किया जाता है. चूंकि इस प्रावधान को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी NEP 2020 में रेखांकित किया गया था. नीति में कहा गया था कि इस टेस्ट के आयोजन की जिम्मेदारी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी NTA को सौंपी जाएगी. 2010 में CUCET के लॉन्च होने के बाद से इसमें हिस्सा लेने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है.

स्टूडेंट्स के सीखने के मूल्यांकन का उनके जीवन में हमेशा महत्वपूर्ण स्थान रहा है. इसलिए यह शिक्षकों, अभिभावकों, स्कूलों और यहां तक कि आम जनता के लिए चिंता का विषय बन जाता है.

मेरे तर्क का समर्थन करने के लिए भारत की तीन प्रमुख घटनाओं और उसके आस-पास निर्मित होने वाले माहौल और सामूहिक पागलपन को याद करने की जरूरत है.

  1. हर जनवरी के आस-पास प्रकाशित होने वाली एनुअल एजुकेशन रिपोर्ट जो ग्रामीण भारत में पढ़ रहे स्टूडेंट्स की दयनीय स्थिति और उनके सीखने के खराब स्तर को उजागर करती है.

  2. बोर्ड परीक्षाओं के परिणामों की घोषणा.

  3. दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में एडमिशन की घोषणा और उनके बेतुके कट-ऑफ पर्सेंटेज.

ये ऐसे समय होते हैं जब लोग परीक्षाओं में छात्रों के प्रदर्शन को लेकर एक अजीब सी बेचैनी महसूस कर रहे होते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए कॉमन परीक्षा

यो समझना जरूरी है कि मूल्यांकन के बारे में ऐसा क्या है जो इसे इतना महत्वपूर्ण या आवश्यक बनाता है. आकलन को चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  • आंतरिक परीक्षाओं का उपयोग छात्रों के सीखने का आकलन करने और यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि वो सीखने की अवस्था में कहां हैं और उनकी बेहतर मदद कैसे की जा सकती है. ये कक्षा तक ही सीमित हैं, जहां शिक्षक खुद के द्वारा पढ़ाए गए छात्रों का आकलन करते हैं.

  • स्कूली शिक्षा के अंत में किसी भी स्टूडेंट का मूल्यांकन एग्जिट एग्जाम की तरह होता है, जिसका इस्तेमाल अक्सर स्टूडेंट्स को पुरस्कृत (पदोन्नति) और दंडित (रोकने) के लिए किया जाता है.

  • बाहरी एजेंसियां जो बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक क्षमताओं के मूलभूत कौशल को मापने के लिए बड़े पैमाने पर असेसमेंट सर्वे करती हैं. उन्होंने हाल के वर्षों में काफी लोकप्रियता हासिल की है. इन एजेंसियों में एएसईआर और एनएएस (नेशनल अचीवमेंट सर्वे) जैसे नाम शामिल हैं.

  • एंट्रेन्स एग्जाम विशेष तौर पर कॉलेजों, यूनिवर्सिटीज और विशेष प्रोग्राम जैसे कि मेडिकल व इंजीनियरिंग आदि के लिए डिजाइन किए गए हैं. इन परीक्षाओं के प्रश्न पत्र उनकी (संस्थान या प्रोग्राम) आवश्यकताओं और वो (संस्थान या प्रोग्राम) एक छात्र में क्या देख रहे हैं इसको ध्यान में रखकर तैयार किए जाते हैं.

अब 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश (चाहे वे किसी भी विषय में हो) के लिए एक कॉमन परीक्षा प्रस्तावित की जा रही है. हालांकि परीक्षा के पैटर्न या प्रारूप को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है, लेकिन बताया जा रहा है कि पूरी संभावना है कि ये परीक्षा दो भागों में होगी. सेक्शन ए 50-प्रश्नों का कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट होगा, जबकि सेक्शन बी एक डोमेन-स्पेसिफिक टेस्ट होगा, जिसमें चुने हुए विषयों के प्रत्येक सेट से 30 प्रश्न होंगे.

CUCET के लिए NEP का तर्क कि ये इन परीक्षाओं के लिए कोचिंग की आवश्यकता को दूर करते हुए स्टूडेंट्स की वैचारिक समझ (conceptual understanding) और ज्ञान (knowledge) को लागू करने की क्षमता का आकलन करेगी.

ये भी दावा किया जाता है कि इस तरह की परीक्षा के मानकीकरण से मानव और वित्तीय संसाधनों पर दबाव कम होगा. साथ ही छात्रों, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और परीक्षा से संबंधित संपूर्ण बुनियादी ढांचे पर भी ज्यादा तनाव नहीं होगा.

भारत की परिभाषित विशेषता है सामाजिक असमानता

इन परीक्षाओं की सराहना या आलोचना करने के तर्क दोनों पक्षों में हैं. निष्पक्षता की बात करें तो दोनों प्रणालियों (बोर्ड एग्जाम स्कोर और काॅमन एंट्रेस एग्जाम स्कोर) की स्ट्रेंथ और लिमिटेशन की तुलना करने के लिए और CET के बारे में किए गए दावों को सत्यापित करने के लिए, दोनों प्रणालियों पर छात्रों और कॉलेज प्रशासन से व्यवस्थित डेटा (बोर्ड एग्जाम स्कोर और काॅमन एंट्रेस एग्जाम स्कोर) एकत्र करना होगा. शायद कुछ अस्पष्टता के साथ कहा जा सकता है कि इन परीक्षाओं से बोर्ड परीक्षाओं के कारण होने वाले दबाव में कमी आने की संभावना है. इस तथ्य के बावजूद कि मूल्यांकन के दोनों तौर-तरीकों में परिवर्तन होगा, लेकिन इसमें कुछ अंतर्निहित निरंतरता बनी रहेगी.

ऊपर की गई टिप्पणी को समझने के लिए सबसे पहले हमें एक स्तरीय समाज में सार्वजनिक परीक्षण (चाहे बोर्ड हो या कॉमन एंट्रेस एग्जाम) की भूमिका को समझना चाहिए. इस प्रक्रिया में मैं कुछ परीक्षा संबंधी भ्रांतियों का भंडाफोड़ कर सकती हूं. भारत न केवल एक विविध समाज है बल्कि स्तरीकृत भी है, जिसमें सामाजिक असमानता इसकी परिभाषित विशेषता है.

कोई भी पब्लिक एग्जामिनेशन, चाहे वो बोर्ड एग्जाम हो या CET (कॉमन एंट्रेंस टेस्ट), मुख्य तौर पर स्टूडेंट्स का चयन के बजाय उनके उन्मूलन का कार्य करती है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि उच्च शिक्षा संस्थानों में उपलब्ध सीटों की तुलना में उम्मीदवारों की संख्या काफी ज्यादा है.

इन परिस्थितियों में एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो सफलता और असफलता दोनों को सही ठहराती हो इसके साथ ही निष्पक्ष, तटस्थ और उद्देश्यपूर्ण हो. उदाहरण के तौर पर दिल्ली विश्वविद्यालय को ही ले लीजिए. हर साल वहां स्टूडेंट्स द्वारा अर्जित किए गए स्कोर समाचारों की सुर्खियां बनते हैं. सेंट स्टीफेंस कॉलेज में एडमिशन की चाह रखने वाला कोई स्टूडेंट अगर बोर्ड परीक्षा में 99% अंक अर्जित करता है लेकिन कॉलेज का कटऑफ 99.5% जाता है तो वो कभी भी प्रणाली की निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठाएगा. लेकिन वो या तो अपनी किस्मत को कोसेगा या खुद को ये कहते हुए सांत्वना देगा कि उसे कड़ी मेहनत करनी चाहिए थी और शायद चुने गए स्टूडेंट्स उससे अधिक योग्य रहे होंगे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोचिंग सेंटर और गाइडबुक : कभी न खत्म होने वाली संस्कृति

सामाजिक रूप से असमान ढांचे में एक ऐसी शिक्षा प्रणाली मौजूद है, जिसमें विभिन्न स्कूलों में असमान गुणवत्ता वाली शिक्षा दी जाती है. ऐसी शिक्षा प्रणाली में पब्लिक एग्जामिनेशन किसी तमाशे जैसा है. बोर्ड परीक्षा या CET में बैठने वाले स्टूडेंट्स अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं. फिर चाहे बात उनके स्कूल के बारे में हो या उनकी घर परिवार के बारे में हो, दोनों में मामले में स्टूडेंट्स की पृष्ठभूमि पूरी तरह से अलग-अलग रहती है. लेकिन जब यही स्टूडेंट्स इन परीक्षाओं में बैठते हैं तो इनसे समान रूप से प्रतिस्पर्धा करने की अपेक्षा की जाती है. लेकिन परीक्षा की भेदभावपूर्ण प्रकृति की जड़ें उसके दृष्टिकोण में निहित हैं, जो सभी के साथ उनके मतभेदों को ध्यान में रखे बिना एक जैसा व्यवहार करती हैं.

इस तरह की परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करना किसी व्यक्ति की योग्यता या क्षमता का संकेतक नहीं है, बल्कि परीक्षा को उत्तीर्ण करने की तकनीक के बारे में अधिक है. इन परीक्षाओं में सफल होने का मंत्र यह है कि आप हार्ड वर्क करने की बजाय स्मार्ट वर्क करें.

पब्लिक एग्जामिनेशन में जहां न तो क्वेश्चन पेपर जांचने वाले शिक्षक छात्रों को जानते हैं, न ही छात्र अपने शिक्षकों को जानते हैं स्थिति में कोचिंग सेंटर फलते-फूलते रहेंगे. इसी तरह, गाइडबुक न केवल छात्रों के लिए, बल्कि शिक्षकों के लिए भी उपलब्ध हैं. जिन्हें अपने रिपोर्ट कार्ड में स्टूडेंट्स के बारे में विस्तृत रिपोर्ट देने की आवश्यकता होती है.

एक समाज के तौर पर ये देखना अजीब है कि हम पब्लिक और प्राइवेट दोनों क्षेत्रों में असमान शिक्षा प्रणालियों को लेकर हम कितने आत्मसंतुष्ट हैं.

स्टूडेंट्स के पास उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर विभिन्न संस्थानों तक पहुंच होती है, जो कि स्पष्ट रूप से हेरारकी है. इसकी वजह से जो स्टूडेंट्स सुविधा संपन्न हैं उन्हें फायदा मिलता रहता है वहीं कम सुविधा संपन्न कैंडिटेड सामाजिक गतिशीलता के मामले में पीछे रहते हैं.

हालांकि ये हमेशा सच नहीं होता है लेकिन खंडित सामाजिक ताने-बाने और उसी तरह से मौजूद असमान शिक्षा प्रणाली के सामने स्टूडेंट्स को निष्पक्ष और न्यायसंगत अवसर प्रदान करने के लिए एक मूल्यांकन प्रणाली पर भरोसा करना थोड़ा दूर की कौड़ी है.

(दिशा नवानी - टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेज, मुंबई में स्कूल ऑफ एजुकेशन की प्रोफेसर हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×