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Budget 2023-24: बजट के 'अमृत कलश' से दलित और आदिवासियों के हिस्से कितनी बूंदें?

वित्तमंत्री ने इस बार भी भारत@100 के लिए आर्थिक एजेंडे में तीन बातों पर केंद्रित रहने की बात की है.

अशोक भारती
आम बजट 2022
Published:
<div class="paragraphs"><p>'अमृत' की तलाश में दलित और आदिवासी</p></div>
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'अमृत' की तलाश में दलित और आदिवासी

(फोटोः क्विंट हिंदी)

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वित्तमंत्री ने वर्ष 2023-24 का बजट पेश करते हुए इसे “अमृतकाल में पहला बजट” बताया है. उन्होंने इस बजट को पिछले बजट में रखी गई नींव पर सतत निर्माणकारी बताते हुए आगे बढ़ने की उम्मीद जताई है. अपने पिछले वर्ष के बजट भाषण की तरह वित्तमंत्री ने इस बार भी भारत@100 के लिए आर्थिक एजेंडे में तीन बातों पर केंद्रित रहने की बात की.

यह तीन बातें हैं:

  1. नागरिकों, विशेषकर युवा वर्ग को अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराना

  2. दूसरा, विकास और रोजगार सृजन पर विशेष ध्यान देना

  3. तीसरा, बृहद आर्थिक सुस्थिरता को सुदृढ़ करना

इसके लिए उन्होंने “अमृतकाल के दौरान” चार मौकों के रूपांतकारी होने पर हम सबका ध्यान दिलाया है.

यह चार मौके हैं

  1. महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण

  2. पीएम विश्वकर्मा कौशल सम्मान (पीएम विकास)

  3. पर्यटन

  4. हरित विकास

साल 2023-24 के बजट में एक-दूसरे को सम्पूर्ण करने वाली सात प्राथमिकताओं को अपनाने की बात कही गई है. यह सात बातें हैं:

  1. समावेशी विकास

  2. अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना

  3. अवसंरचना एवं निवेश

  4. सक्षमता को सामने लाना

  5. हरित विकास

  6. युवा शक्ति

  7. वित्तीय क्षेत्र

वित्तमंत्री ने इन्हें “सप्तऋषि” बताते हुए अमृतकाल का मार्गदर्शक बताया है. अमृतकाल के मार्गदर्शक इन सप्तऋषियों वाला यह बजट क्या हाशिये पर रहने को मजबूर दलितों और आदिवासियों के विकास को कोई दिशा देता है? क्या यह बजट वाकई में दलित और आदिवासियों की विकास आकांक्षाओं में गंभीर हस्तक्षेप है, या काम चलाऊ प्रयास है.    

वित्तमंत्री ने संसद में वर्ष 2023-24 के लिए 4503097 करोड़ रुपए का बजट पेश किया है, जोकि वर्ष 2022-23 के बजट अनुमानों से 558188 करोड़ (14.14%), संशोधित अनुमानों से 315865 करोड़ (8%) और वर्ष 2021-22 के वास्तविक अनुमानों से 709296 करोड़ (18.69%) रुपये अधिक है.

अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए वर्ष 2023-24 के बजट अनुमानों में कुल 159126.22 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जोकि कुल बजट का 3.53% है.

पिछले वर्ष के बजट अनुमानों में अनुसूचित जातियों के लिए कुल 142342 करोड़ रुपये (कुल बजट का 3.61%) आबंटित किए गए थे, जिन्हें संशोधित अनुमानों में बढ़ाकर 152604 (3.64%) करोड़ रुपये कर दिया गया. इस तरह अनुसूचित जातियों के आबंटन में पिछले साल के बजट अनुमानों से 2% कम राशि आबंटित की गई है.

अनुसूचित जाति के लिए आबंटित की जाने वाली कुल राशि का 88% आबंटन केवल 10 मंत्रालयों और उनके विभागों ने किया है. नीचे दी गई सारणी में इन मंत्रालयों अथवा विभागों में अनुसूचित जातियों के विकास हेतु प्रावधान और अनुसूचित जातियों के कुल बजट में उनकी हिस्सेदारी दिखाई गई है.
The Quint
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यह सारणी बताती है कि केन्द्रीय सरकार के बजट प्रावधानों में छ: मंत्रालयों ने अपने बजट में अनुसूचित जातियों के कल्याण हेतु सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय से अधिक बजट का आबंटन किया है.

यह वाकई आश्चर्यजनक है कि अनुसूचित जातियों के विकास और उनके विकास से सम्बंधित नीतियों, कार्यक्रमों और उनकी देखरेख के लिए देश में सीधे तौर पर जिम्मेदार सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का बजट अनुसूचित जातियों से अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े मंत्रालयों और विभागों से कम है.

प्रावधान यह भी बताते हैं कि एक तरह से सामाजिक न्याय और आधिकारिता मन्त्रालय की नौकरशाही आबंटन के मामले में न केवल अपने मंत्री के अनुभव का फायदा उठाने में पूरी तरह विफल है, बल्कि वह आशा के अनुरूप अनुसूचित जातियों के लिए बजट संबंधी इंतजाम भी नहीं कर पा रहे हैं.

वर्ष 2023-24 के बजट अनुमानों  में अनुसूचित जनजातियों के लिए कुल 119509.97 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है जोकि कुल बजट का 2.65% है.  यह खुशी की बात है कि बजट प्रावधानों में आदिवासी या अनुसूचित जनजातियों के लिए उत्तरोत्तर राशि में वृद्धि की जा रही है. हालांकि, इस संदर्भ में भी मुद्दा यही है कि आदिवासियों के विकास हेतु कुल राशि का 87.41% हिस्सा उन मंत्रालयों और विभागों ने किया है जो आदिवासियों के विकास के लिए सीधे तौर पर जवाबदेह नहीं हैं. नीचे दी गई सारणी आदिवासियों के लिए आबंटन करने वाले दस प्रमुख मंत्रालयों और विभागों के आबंटन प्रावधानों को दर्शाती है.

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उपरोक्त सारणी मे दिए गए आबंटन से साफ जाहिर होता है कि अनुसूचित जनजातियों के विकास की राशि उन बातों के लिए रखी गई है, जिनका आदिवसियों के विकास से शायद ही कुछ लेना देना हो. उदाहरण के तौर पर आदिवासी क्षेत्रों में कौन से हाईवे बनाएं जा रहे हैं जिनके लिए आदिवासियों के विकास की कुल राशि का करीब 20% प्रावधान हाईवे और सड़क यातायात की मद में रख दिया गया है.

अनुसूचित जातियों और जनजातियों के मसले ही नहीं, बल्कि बजट को विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के अंतहीन अनुमानों और बजट के भारी भरकम दस्तावेजों में असल खर्चा और खर्चे के वास्तविक मदें खो जाती हैं, गर इनका गहराई से आकलन न किया जाए. बजट के दौरान लोक लुभावन घोषणाओं की असली कहानी उन बजट दस्तावेजों में दबी होती है जो प्रमुख मदों एवं प्रमुख योजनाओं पर व्यय के होते हैं.

सभी लोग इस बात पर सहमत हैं कि कोरोना काल से उभरे भारत को सामाजिक सेवाओं का मजबूत सहारा चाहिए. वर्ष 2023-24 के बजट दस्तावेजों में बजट हेड के अनुसार दिए गए विवरणों में वित्त मंत्री ने सामाजिक सेवाओं के लिए कुल कल्याण के लिए 211423.43 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, जोकि बजट की मात्रा 4.7% है.

कोविड-19 महामारी के गंभीर संकट के दौर में 2021-22 में सरकार ने सामाजिक सेवाओं पर 254696.97 करोड़ रुपये खर्च किए, जोकि उस साल के बजट के वास्तविक खर्चों का 6.71% था. इस तरह इस वर्ष के बजट में सामाजिक सेवाओं में आनुपातिक तौर पर 30% की कटौती की गई है.

सामाजिक सेवाओं की श्रेणी में सामान्य शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, यूआव और खेल, कला और संस्कृति, चिकित्सा और जन स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, जल आपूर्ति और सेनिटेशन, आवास, शहरी विकास, श्रम, रोजगार और कौशल विकास तथा अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों का विकास जैसे मद आते हैं.

यदि इन मदों पर देश के कुल बजटीय संसाधनों का 5% से भी कम खर्च किया जाएगा, तो भारत@100 दृष्टिकोण से समावेशी विकास कैसे होगा? 

(लेखक नेशनल कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ दलित एन्ड आदिवासी आर्गेनाईजेशन्स (नैक्डोर) के अध्यक्ष हैं)

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