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Budget 2019: साल का बही-खाता या 5 साल का विजन डॉक्यूमेंट?

सरकार ये बखूबी समझ गई है कि भारत की ग्रोथ की जरुरत घरेलू निवेशकों और कारोबारियों से पूरी नहीं हो सकती.

संजय पुगलिया
आम बजट 2022
Published:
बजट को एक्सपर्ट्स ने पांच साल का विजन डॉक्यूमेंट बताया
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बजट को एक्सपर्ट्स ने पांच साल का विजन डॉक्यूमेंट बताया
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम

ये निर्मला जी का बही-खाता है जो सबको समझ नहीं आता है, जिसको समझ में आता है वो इसे अपने-अपने नजरिए से समझता है...

2019 के बजट पर कुछ एक्सपर्ट्स ने अपनी राय दी है. स्वामीनाथन अय्यर ने कहा कि ये ढीला ढाला बजट है. वहीं आनंद महिंद्रा ने क्रिकेट की शब्दावली के साथ समझाया कि निर्मला सीतारमण जी ने पिच पर टिके रहने के लिए चौके-छक्के की बजाय एक-एक रन बनाए हैं. उदय कोटक ने इस बजट को न्यू इंडिया के लिए पाथ ब्रेकिंग बताया. विपक्ष के नेता, इकनॉमिक्स के जानकार पी चिदंबरम ने कहा कि ये बजट पारदर्शी नहीं है.

शेयर बाजार को भी ये बजट पसंद नहीं आया.

दरअसल, बजट को एक्सपर्ट्स ने सरकार के पांच साल का विजन डॉक्यूमेंट बताया. इसमें आंकड़ों, अकाउंटिंग की भारी कमी है.

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बजट का निचोड़ ये है कि सरकार ये बखूबी समझ गई है कि भारत की ग्रोथ की जरूरत घरेलू निवेशकों और कारोबारियों से पूरी नहीं हो सकती. इसे पूरा करने के दो तरीके हो सकते हैं, पहला सरकार के खर्च के जरिए और दूसरा विदेशी पूंजी को भारत में लाकर. इसलिए ये तय किया गया है कि भारत अब विदेशी मुद्रा में लोन लेना शुरू करेगा.

लेकिन सरकार का ये कदम बहुत जोखिम भरा साबित हो सकता है क्योंकि कर्ज चुकाने के समय विदेशी मुद्रा के सामने भारतीय रूपये का रेट कितना होगा, ये बता पाना मुश्किल है.

पिछले पांच साल में डॉलर रूपये के मुकाबले 18%-20% बढ़ा है. चाइनीज करेंसी 60% -70% बढ़ी है. हालांकि सरकार को उम्मीद है कि लोन चुकाने के समय तक भारत की इकनॉमी की साइज काफी बढ़ चुकी होगी.

सरकार ने अगले पांच साल में पांच ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी खड़ा करने का टारगेट बनाया है. ये ऐसा ही एलान है जैसे किसी 50 साल के व्यक्ति को ये कह दिया जाए कि अगले 5 साल में आप 55 साल के हो जाएंगे!

एक्सपोर्ट से ज्यादा कमाई न होने की उम्मीद में सरकार ने इस बार गैर-जरूरी इंपोर्ट को रोकने या महंगा करने पर जोर दिया है. उदाहरण के तौर पर सोना या विदेशी किताबों को लिया जा सकता है. 303 सीटों की इस सरकार ने सरकारी खर्च के बल पर गांव, गरीब, किसान, महिला, युवा और रोजगार पर फोकस रखकर इकनॉमी को चलाने का फैसला किया है.

सरकार ये बताना चाहती है कि उनकी एंटी-रिच पॉलिटिक्स और प्रो-पूअर पॉलिटिक्स जारी रहेगी.

कुछ क्रिटिक का मानना है कि ग्रोथ की जरूरतों को पूरा करने वाली कैपिटल इन्वेस्टमेंट का दावा इस बार के बजट में नहीं मिलता है. साथ ही लैंड, लेबर और कैपिटल इन्वेस्टमेंट पर सरकार ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया है.

अमीरों पर टैक्स लगाना पॉलिटिकल सिग्नल के लिए तो ठीक है, पर ये सिर्फ सिंबॉलिज्म को बढ़ावा देगा जो एक बहुत बड़े वर्ग को नुकसान पहुंचाएगा. मैसेज ये जाएगा कि भारत में सरकार को बड़े बिजनेसमैन की चिंता नहीं है यानी उसे दूसरे जगह मौके ढूंढने होंगे.

इकोनॉमिक सर्वे में इस्तेमाल शब्द 'बिहेवियरल इकेनॉमिक्स' को मैं इस बात से जोड़ना चाहता हूं. सोने को महंगा कर देना अच्छा है, एंटी रिच पॉलिसी है, पर ये सोने की तस्करी को बढ़ावा देगा. पिछले सालों के कस्टम डिपार्मेंट के डेटा से ये बात सामने आई है कि भारत में गोल्ड की स्मगलिंग ज्यादा बढ़ी है, क्योंकि डिमांड-सप्लाई के रूल को कानून से रोकना मुश्किल है. ये एक प्रकार का नेगेटिव बिहेवियर पैदा करता है. तो कई बार इकनॉमिक टूल का इस्तेमाल बिहेवियर को पॉजीटिव ही नहीं नेगेटिव भी बनाता है.

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