advertisement
दिल्ली के चितरंजन पार्क में रहने वाला अरिंदम सेनगुप्ता किसी भी आम मिलेनियल की तरह बिंदास है. खाने-पीने और क्रिकेट का शौकीन. ट्रैवल का भी शौक है. मुंबई के नरसी मुन्जी मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से फाइनेंशियल मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद आजकल वहीं एक फाइनेंशियल एडवाइजरी फर्म में छह महीने की नौकरी के बाद सप्ताह भर की छुट्टी में पैरेंट्स के यहां आया हुआ है.
लेकिन दो-चार दिन के बाद ही उसे अपने पैरेंट्स की लाइफस्टाइल खटकने लगी है. उनके खर्च करने के तरीकों से वह हैरान है.
इस आर्टिकल को यहां सुन भी सकते हैं:
पिता गुड़गांव की एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर हैं. सैलरी चार लाख रुपये महीने है. दिल खोल कर खर्च करने में विश्वास है. मां अच्छी हाउसवाइफ हैं लेकिन पति की खुल कर खर्च करने की आदत पर अंकुश नहीं लगा पातीं. सीनियर सेनगुप्ता महंगी गाड़ियों, पार्टियों, ट्रैवलिंग और बाजार में आने वाली नई-नई चीजें खरीदने के शौकीन हैं.
अरिंदम अपने पिता की खर्च करने की इस आदत और फाइनेंशियल प्लानिंग के प्रति उनके लापरवाह रवैये को देख कर परेशान है. उसे पता है कि छह साल बाद वह रिटायर हो जाएंगे. सैलरी आनी बंद हो जाएगी और पीएफ और ग्रेच्यूटी का पैसा इतना नहीं होगा कि इस शानदार लाइफस्टाइल को बरकरार रख सकें. सीनियर सेनगुप्ता को इनवेस्टमेंट, बैंकिंग और फाइनेंशियल प्लानिंग की मोटी जानकारी है लेकिन इसे लेकर वह लापरवाह हैं. अपने खर्चों को ठीक से मैनेज करना उन्हें नहीं आता.
अरिंदम को पता है कि अमीर बनना आसान हो सकता है लेकिन अमीर बने रहना आसान नहीं है. उसके बॉस कहा करते हैं आदमी सिर्फ अच्छी सैलरी से अमीर नहीं बनता. अमीर बनता है बचत और इनवेस्टमेंट के सही तरीके अपनाने से. अरिंदम के पिता जैसे लोगों के लिए तो यह और मुश्किल होता है जो फाइनेंशियल प्लानिंग या रिटायटरमेंट के बाद की आर्थिक जरूरतों के प्रति लापरवाह होते हैं. ऐसे लोग अपने बच्चों के मोहताज हो जाते हैं.
अरिंदम के पिता के पास न तो कोई पीपीएफ अकाउंट है और न ही कोई पेंशन फंड. सेविंग अकाउंट में उनका कैश यूं ही पड़ा रहता है. उसने अपने पिता को सलाह दी कि वह इस कैश को म्यूचुअल फंड में इनवेस्ट करें ताकि लांग टर्म में उन्हें अच्छा रिटर्न मिल सके. यह रिटर्न लिक्विड होगा ताकि इसका इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर तुरंत कर सकें.
सीनियर सेनगुप्ता के पास दो बड़ी कारें हैं. पेट्रोल पर उनका खासा खर्च हो जाता है. दोनों कारों के मेंटनेंस, उनके इश्योरेंस प्रीमियम और सर्विसिंग में भी साल भर में अच्छी रकम निकल जाती है. अरिंदम चाहता है कि वह एक कार बेच दें. रिटायरमेंट के बाद दूसरी कार भी बेच सकते हैं.
रिटायरमेंट के बाद उनकी ट्रैवल जरूरतें कम हो जाएंगी. अगर वह दिल्ली में रहते हैं तो ओला और उबर जैसी सर्विस उनकी जरूरत के मुफीद बैठेगी. अगर किसी छोटे शहर में बसना चाहते हैं तो वहां भी कार की जरूरत कम होगी. नौकरी के रहते हम अपना खर्चा इतना बढ़ाए रखते हैं कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें बरदाश्त करना मुश्किल होता है. इन्हें रोकने की जरूरत है ताकि बचे हुए पैसे को इनवेस्ट किया जा सके.
नौकरी में रहने के दौरान कंपनियां कर्मचारियों का मेडिकल इंश्योरेंस कराती हैं. लेकिन रिटायरमेंट के बाद मेडिकल खर्चों को आप ही को उठाना पड़ता है और यह वो वक्त होता है जब आप पहले की तुलना में शारीरिक तौर पर ज्यादा कमजोर हो जाते हैं और मेडिकल जरूरतें पूरी करने के आर्थिक स्त्रोत भी आपके पास कम रह जाते हैं.
इसलिए वक्त रहते अपने पैसे से अलग मेडिकल इंश्योरेंस पॉलिसी जरूर लें. इसे कम उम्र में लेने से बड़ी उम्र में कंटीन्यू करना आसान होता है. बड़ी उम्र में मेडिकल इंश्योरेंस का प्रीमियम काफी महंगा होता है.
सीनियर सेनगुप्ता के जनरेशन के लोगों के लिए मकान एक बड़ा असेट होता है. लोगों के पास मकान होता है लेकिन मकान के रखरखाव वगैरह में काफी खर्च हो जाता है. प्रॉपर्टी की दाम में गिरावट के दौर में सेनगुप्ता के लिए यह अच्छा होगा कि वे इस बड़े मकान को बेच कर छोटे फ्लैट में शिफ्ट करें. बेहतर होगा दिल्ली के पॉल्यूशन भरे माहौल को छोड़ कर वे कोलकाता के नजदीक अपने छोटे होम टाउन में शिफ्ट हो जाएं. जहां उनकी जिंदगी ज्यादा आसान होगी.
मकान बेचने से हासिल रकम के एक हिस्से को इनवेस्ट किया जा सकता है, जिससे रेगुलर इनकम हासिल हो. उसे अपने एक फाइनेंशियल एडवाइजर दोस्त के एक क्लाइंट के बारे में पता है, जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद ग्राउंड फ्लोर का बड़ा मकान बेच कर फ्लैट में शिफ्ट किया. इस पैसे का एक हिस्सा म्यूचुअल फंड में लगाया और आज उन्हें इस इनवेस्टमेंट से अच्छी कमाई हो रही है.
ज्यादातर मां-बाप अपने रहते वसीयत नहीं बनाते. सीनियर सेनगुप्ता भले ही अरिंदम पर डिपेंड न रहना चाहते हों. लेकिन वसीयत कर देंगे तो अरिंदम को उनकी प्रॉपर्टी ट्रांसफर होने में आसानी होगी. सीनियर सेनगुप्ता भी चाहेंगे कि बेटे को ही उनकी प्रॉपर्टी मिले. इसलिए वसीयत जरूरी है. अरिंदम की इन बातों पर सीनियर सेनगुप्ता ने गौर फरमाया. देर से ही सही बेटे ने बाप को फाइनेंशियल प्लानिंग के लिए मना लिया.
ये भी पढ़ें-
MUTUAL FUND निवेश : अनसुनी न करें खतरे की इन 5 घंटियों की आवाज
म्यूचुअल फंड : जानिए,नामचीन पोर्टफोलियो मैनेजर क्यों रहे फ्लॉप?
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)