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केंद्र सरकार ने 1 फरवरी को केंद्रीय बजट 2023 पेश किया है. इस दौरान सरकार ने कहा कि 2023 में फिस्कल डेफिसिट (Fiscal Deficit) या राजकोषीय घाटे को 2025-26 तक कम कर जीडीपी के 4.5% स्तर से भी नीचे लाया जाएगा.
सरकार का अनुमान है कि 2022-23 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4% होगा और साल 2023-2024 में इसे 5.9% रखने का लक्ष्य है.
इन सारे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक तरीका तो खर्च (Capital Expenditure) में कमी लाने का है. लेकिन वो पूरी तरह से मुमकिन भी नहीं है क्योंकि भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था है. अब हमें दूसरे तरीकों की तरफ रुख करना होगा.
3 फरवरी को द क्विंट के 'डिकोडिंग बजट विद राघव बहल' के सेशन में द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल ने बताया कि खर्च के अलावा और कौन से विकल्प हैं जिससे कि फिस्कल डेफिसिट को कम किया जा सकता है? आगे राघव बहल से समझिए कि कैसे दूसरे तरीकों से फिस्कल डेफिसिट को कम किया जा सकता है.
"फिस्कल डेफिसिट के जीडीपी का 5.4 फीसदी होना भी बहुत ज्यादा है. याद कीजिए कि एक समय में फिस्कल डेफिसिट को घटा कर 3%-3.5% तक लाया गया था और तब लक्ष्य उसे 2.5% तक लाने का था. लेकिन फिर कोरोना की महामारी ने सब बर्बाद कर दिया, हमारा फिस्कल डेफिसिट भी 6% से ज्यादा बढ़ गया.
फिस्कल डेफिसिट को लेकर हर चीज सरकार की तरफ से है. क्योंकि सरकार ही ज्यादा उधार लेती है, फिर सरकार बड़ी ब्याज दरों पर उधार चुकाती है, सरकार ही कैपेक्स को बढ़ाती है, और फिस्कल डेफिसिट बढ़ता है. साथ ही सरकार टैक्स भी बढ़ाती है. लेकिन मेरा मानना है कि टैक्स को घटा कर इन लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है.
आप देखिए, पहले कई बजट में सरकार का फोकस टैक्स घटाने पर होता था. जैसे यशवंत सिन्हा के समय अटल बिहारी वाजपाई सरकार के दौरान, जसवंत सिंह के दौरान और पी चिदंबरम के दौरान."
एक उदाहरण से समझिए, ठाकरे सरकार ने महामारी के दौरान मुंबई के रियल एस्टेट सेक्टर को बचाने के लिए स्टैंप ड्यूटी में लगभग 3% की कटौती की थी. नतीजा ये हुआ कि कोरोना के समय रिकॉर्ड घरों की बिक्री हुई थी. तो टैक्स में कटौती करने से भी फिस्कल डेफिसिट तो मेंटेन किया जा सकता है.
तो इस तरह टैक्स में अलग-अलग तरह की कटौती कर वित्तीय घाटे को कम किया जा सकता है.
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