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मोदी सरकार 3.0 (Modi Govt 3.0) के पहले बजट (Budget 2024) में बिहार का विशेष ध्यान रखा गया है. बिहार को करीब 59 हजार करोड़ की सौगात मिली है. केंद्र सरकार ने भले ही प्रदेश को विशेष राज्य (Special Status) का दर्जा नहीं दिया हो, लेकिन केंद्रीय बजट में बिहार के लिए अपना पिटारा खोल दिया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने अपने बजट भाषण में ऐलानों की झड़ी लगा दी.
लेकिन, इन घोषणाओं के बावजूद सवाल है कि क्या बिहार की बदहाली दूर होगी? सूबे के लिए जो ऐलान किए गए हैं, वो 'विशेष दर्जे' के तहत मिलने वाली आर्थिक मदद से कितनी अलग है? इसके साथ ही हम एक्सपर्ट से समझने की कोशिश करेंगे कि केंद्र ने जो फंड आवंटित किया है, उससे बिहार का कितना विकास होगा?
2024-25 के बजट में केंद्र सरकार ने बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश को कवर करते हुए देश के पूर्वी क्षेत्र के विकास के लिए 'पूर्वोदय' योजना का ऐलान किया है. वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा कि इसके तहत मानव संसाधन विकास, बुनियादी ढांचे और आर्थिक अवसरों के सृजन पर ध्यान दिया जाएगा, जिससे इन क्षेत्रों को विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने का इंजन बनाया जा सके.
बजट में बिहार के लिए लगभग 59 हजार करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स की घोषणा की गई है. रोड कनेक्टिविटी के लिए 26 हजार करोड़ का ऐलान किया गया है. इसमें तीन एक्सप्रेस वे और एक पुल शामिल हैं:
पटना-पूर्णिया एक्सप्रेस वे
बक्सर-भागलपुर एक्सप्रेस वे
बोधगया, राजगीर, वैशाली और दरभंगा एक्सप्रेस वे
बक्सर में गंगा नदी पर अतिरिक्त 2-लेन पुल
इसके साथ ही वे कहते हैं कि एक्सप्रेस वे बनने से इंडस्ट्री आएगी तो उससे भी राज्य को फायदा होगा.
बिहार में 21 हजार 400 करोड़ रुपये की लागत से पावर प्रोजेक्ट भी शुरू होंगे, जिसमें भागलपुर के पिरपैंती में 2,400 मेगावाट का एक नया पावर प्लांट बनाना शामिल है.
बाढ़ प्रबंधन के लिए 11,500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. इससे कोसी-मेची नदी अंतरराज्यीय लिंक, बैराजों और सिंचाई परियोजनाओं समेत 20 अन्य चालू योजनाओं के लिए वित्तीय मदद की जाएगी.
अलग-अलग परियोजनाओं के लिए बिहार को करीब 59 हजार करोड़ देने की बात पर वे कहते हैं, "बिहार के विकास के लिए ये बहुत छोटा सा हिस्सा है. सिर्फ बिहार कृषि रोडमैप के लिए 1.62 लाख करोड़ चाहिए. मूल रूप से ये ऊंट के मुंह में जीरा है. वास्तव में बिहार को कुछ नहीं मिला है."
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पिछले साल अक्टूबर में बिहार का चौथा कृषि रोड मैप (2023-2028) लॉन्च किया था. कृषि रोड मैप का लक्ष्य राज्य में कृषि उत्पादन बढ़ाना है, साथ ही अगले पांच सालों में किसानों की आय में भी बढ़ोतरी करना है. बता दें कि पहला कृषि रोडमैप 2008 में लॉन्च किया गया था, इसके बाद 2012 में दूसरा और 2017 में तीसरा रोडमैप लॉन्च किया गया.
बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने बिहार में एयरपोर्ट, मेडिकल कॉलेज और खेल संबंधी बुनियादी ढांचा स्थापित करने का भी ऐलान किया है.
केंद्रीय बजट में बिहार के पर्यटन क्षेत्रों के विकास पर भी जोर दिया गया है. काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर की तर्ज पर गया के विष्णुपद मंदिर और बोधगया के महाबोधि मंदिर कॉरिडोर को विकसित किया जाएगा. इसके साथ ही राजगीर को व्यापक रूप से विकसित किया जाएगा.
वित्त मंत्री ने कहा, "हमारी सरकार नालंदा विश्वविद्यालय को उसके गौरवशाली स्वरूप में पुनर्जीवित करने के अलावा नालंदा को एक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने में भी सहयोग करेगी."
हालांकि, डीएम दिवाकर पर्यटन क्षेत्रों के विकास की बातों को बहुत महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं और इसे केवल "ड्रेसिंग" करार देते हैं.
बिहार में इन्वेस्टमेंट को लेकर वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा है कि "पूंजी निवेश को समर्थन देने के लिए अतिरिक्त आवंटन किया जाएगा. बहुपक्षीय विकास बैंकों से बाहरी सहायता के लिए बिहार सरकार के अनुरोधों पर शीघ्र कार्रवाई की जाएगी."
इसके साथ ही वे कहते हैं, "अमृतसर-कोलकाता इंडस्ट्रियल कॉरिडोर वर्ल्ड बैंक से फंडेड है. सरकार गया में जो इंडस्ट्रियल नोड बनाने की बात कर रही है, उसमें भी वर्ल्ड बैंक की भागीदारी होगी."
केंद्र की मोदी सरकार ने 22 जुलाई को संसद में जानकारी देते हुए बताया कि बिहार को विशेष राज्य का दर्ज नहीं मिलेगा. जेडीयू सांसद रामप्रीत मंडल के सवाल पर वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बताया कि विशेष दर्जा राष्ट्रीय विकास परिषद यानी एनडीसी की ओर से उन राज्यों को दिया जाता है, जो खास चुनौतियों का सामना करते हैं.
एनडीसी ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मौजूदा मानदंडों के आधार पर बिहार के लिए विशेष दर्जे का मामला नहीं बनता है.
बिहार सरकार पिछले कई सालों से केंद्र से विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करती रही है.
भले ही केंद्र ने इस बार के बजट में बिहार के लिए कई ऐलान किए हों, लेकिन सवाल है कि क्या उससे बिहार का पूर्ण विकास संभव है या फिर 'स्पेशल स्टेटस' से प्रदेश को फायदा होता?
इस सवाल के जवाब में डीएम दिवाकर कहते हैं, "स्पेशल स्टेटस सिर्फ पैकेज नहीं है. उसमें कुछ संवैधानिक शर्तें भी होती हैं- ग्रांट ज्यादा होगा, लोन कम होगा. इससे राज्य पर पड़ने वाला बोझ कम हो जाएगा. निवेशकों के लिए आसान शर्तें होती हैं. ऐसे में ये बजट घोषणाएं विशेष दर्जे की भरपाई तो नहीं ही है."
इसके साथ ही वे कहते हैं, "इस बजट में ऐसा कुछ नहीं दिखता है कि उससे बिहार का भला हो जाएगा. बस मैसेज देने की कोशिश की गई है."
वहीं आरजेडी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा, "बिहार को प्रगति पथ पर ले जाने के लिए एक रिवाइवल प्लान की जरूरत थी और जिसके लिए विशेष राज्य के दर्जे के साथ विशेष पैकेज की सख्त जरूरत है."
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार बिहार भारत का सबसे गरीब राज्य है, जहां राज्य की 33.76% आबादी बहुआयामी गरीब है.
एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण बिहार में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में stunting यानी उम्र के हिसाब से लंबाई (44%) और कम वजन (42%) की समस्या बहुत अधिक है.
वहीं 2022 के बिहार जाति आधारित सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य के लगभग एक तिहाई लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं.
प्रति व्यक्ति आय लगभग ₹60,000 है जो देश में सबसे कम है और राज्य कई मानव विकास संकेतकों में राष्ट्रीय औसत से पीछे है.
नीति आयोग के वार्षिक स्वास्थ्य सूचकांक 2020-21 के मुताबिक, 19 बड़े राज्यों की सूची में बिहार 19वें पायदान पर है.
शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, बिहार में साक्षरता दर भारत में सबसे कम 61.8% है.
PLF सर्वे के मुताबिक, भारत में बेरोजगारी दर के राष्ट्रीय औसत 3.2 प्रतिशत के मुकाबले बिहार में जुलाई 2022 और जून 2023 के बीच 3.9 प्रतिशत की बेरोजगारी दर दर्ज की गई.
बिहार में निर्भरता अनुपात भारत में सबसे ज्यादा 67.1 प्रतिशत है. इसका मतलब है कि दो तिहाई आबादी बाकी एक तिहाई आबादी पर निर्भर है.
डीएम दिवाकर कहते हैं, "सरकार बिहार के बुनियादी मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रही है. गरीबी, कुपोषण, निरक्षरता जैसी गंभीर समस्याओं पर फोकस की जरूरत है, जिससे की प्रदेश की स्थिति सुधर सके."
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