advertisement
कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते जो इकनॉमी पर संकट आया है, सरकार ने इससे उबरने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के इकनॉमिक पैकेज का ऐलान किया है. लेकिन इस 20,97,053 करोड़ रुपये के पूरे पैकेज में सरकार को सिर्फ 1,78,800 करोड़ रुपये ही वास्तविक रूप में खर्च करना पड़ रहा है. कई अर्थशास्त्रियों ने भी कहा है कि इस पूरे पैकेज में सरकार को बहुत कम खर्च करना पड़ रहा है और हो सकता है कि सरकार जितना खर्च कर रही है उतना इकनॉमी में डिमांड लाने के लिए पर्याप्त न हो.
पैकेज का सबसे बड़ा हिस्सा आरबीआई का 8 लाख करोड़ का लिक्विडिटी पैकेज है. साथ ही सरकार ने ये भी ऐलान किया है कि छोटे कारोबारियों को दिए जाने वाले 3 लाख करोड़ रुपये के कर्ज की 100 फीसदी गारंटी देगी लेकिन इस स्कीम में सरकार की सीमित रकम ही खर्च होने वाली है. क्योंकि सारे लोग डिफाल्ट नहीं करेंगे.
नोमुरा ग्लोबर मार्केट की चीफ इंडिया अर्थशास्त्री सोनल वर्मा का कहना है कि ये पैकेज कई कारोबारों के लिए फौरी चुनौतियों से निपटने में कम पड़ सकता है लेकिन इस पैकेज को इस तरह बनाया गया है कि भारत की मीडियम टर्म ग्रोथ में सुधार करेगा.
ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का मानना था कि सरकार इस पैकेज के जरिए सरकारी खर्चों में बढ़ोतरी करेगी. लेकिन 5 हिस्सों की जानकारी को देखने के बाद लगता है कि इसमें सरकारी खर्च का हिस्सा कम ही है.
बारक्लेज के चीफ इंडिया इकनॉमिस्ट राहुल बजोरिया का कहना है कि- सरकार ने 5 चरणों में जिस राहत पैकेज का ऐलान किया है इसका बजट पर फिस्कल असर सिर्फ 1.5 लाख करोड़ रुपये होगा जो कि जी़डीपी का 0.75% है.
अगर इस 20 लाख करोड़ के पैकेज में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज और स्वास्थ्य इंफ्रा को मजबूत बनाने के लिए 15000 करोड़ के आवंटन को जोड़ दें तो कुल खर्च बढ़कर 2.7 लाख करोड़ हो जाएगा जो कि जीडीपी का 1.2 फीसदी होगा.
HSBC सिक्योरिटी की चीफ इंडिया इकनॉमिस्ट प्रांजुल भंडारी कहती हैं- सरकार ने जो इकनॉमिक पैकेज का ऐलान किया है वो और सरकार ने जो मार्च में ऐलान किए थे उसकी फिस्कल लागत करीब 2.13 लाख करोड़ रुपये आएगी जो कि जीडीपी का करीब 1 फीसदी हिस्सा है. उनका मानना है कि कुछ योजनाएं अर्थव्यवस्था को शॉर्ट टर्म में मदद करेंगी लेकिन ज्यादातर का असर मिडियम टर्म में देखने को मिलेगा.
जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से इस राहत पैकेज के आने वाले बजट पर फिस्कल असर को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने साफ-साफ जवाब नहीं देते हुए कहा सरकार सुनिश्चित कर रही है कि राहत रकम सही जगह पहुंचे.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस और पॉलिसी में प्रोफेसर एनआर भानूमूर्ति का मानना है कि सरकार ने जो राहत पैकेज जारी किया है उसका फोकस इकनॉमी की मीडियम और लॉन्ग टर्म स्थिति पर है. हांलाकि शॉर्ट टर्म में ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढ़ाने को लेकर सरकार को और कदम उठाने चाहिए थे. स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव ने क्विंट से कहा कि किसानों को फौरी मदद चाहिए थी, जो उन्हें इस पैकेज में नहीं मिली।
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)