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6 फीट की दूरी भी नहीं सेफ, ब्लैक फंगस: बार-बार चौंका रहा कोरोना

कोरोना महामारी को ज्यादा खतरनाक बना सकती हैं ये चेतावनी

क्विंट हिंदी
कोरोना-वायरस
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कोरोना का कहर दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है. देश में पिछले कुछ दिनों से हर दिन 4 लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. वहीं मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है. इन सबके बीच कोविड से जुड़ी कुछ ऐसी भी बातें सामने आ रही हैं जो डराती हैं. कोरोना के बारे में सबसे चिंता की बात यही है कि हम इसके बारे में कुछ समझ बनाकर इलाज और ऐहतियात सोचते हैं, तब तक ये रूप और असर बदल लेता है. हर कुछ दिन में इसके बारे में नई बातें पता चलती हैं.

6 फीट से भी ज्यादा दूरी तक जा सकता है वायरस : CDC

अमेरिका में कोरोना के बदलते रूप के बीच इस वायरस को लेकर हाल ही में यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन CDC ने नई जानकारी दी है. सीडीसी की नई गाइडलाइन में बताया गया है कि कोरोना वायरस एरोसोल ट्रांसमिशन से भी फैल सकता है. इसका मतलब यह हुआ कि यह केवल क्लोज कॉन्टैक्ट से ही नहीं बल्कि हवा से भी फैल सकता है. यानी अगर कोई भी कोरोना पॉजिटिप व्यक्ति से 6 फीट की दूरी पर है, तो भी वह हवा में मौजूद वायरस से संक्रमित हो सकता है.

  • सीडीसी के मुताबिक हवा में कोरोना वायरस 6 फीट से भी ज्यादा दूरी तक जा सकता है.

  • इसमें सबसे ज्यादा जोखिम संक्रामक स्रोत के तीन से छह फीट के भीतर होता है.

  • इसकी बहुत ही महीन बूंद और कण इससे भी ज्यादा दूरी तक जा सकती हैं.

  • हाल ही में मेडिकल जनरल लैंसेट ने भी हवा में वायरस के संक्रमण की पुष्टि की थी.

  • सीडीसी की नई गाइडलाइन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बंद कमरे या दफ्तर कोरोना वायरस के प्रसार के लिए नया केंद्र हो सकते हैं.

एरोसोल ट्रांसमिशन उस प्रक्रिया को कहते हैं जब सांस छोड़ी जाती है तो इसके साथ ही तरल पदार्थ भी बूंदों के रूप में बाहर आते हैं. ऐसा आराम से सांस लेने, बोलने, गाना गाने, व्यायाम करने, खांसते और छींकते वक्त भी होता है. इसमें 1 से 9 बूंदें भी वायरस ट्रांसमिट कर संक्रमण फैला सकती हैं. संक्रमण का खतरा सोर्स से बढ़ती दूरी और सांस छोड़ने के बाद बढ़ते समय के साथ कम होता जाता है.

स्टडी में कहा गया है कि ये महीन बूंदें इतनी छोटी होती हैं कि हवा में मिनटों से घंटों तक बनी रह सकती हैं.

ब्लैक फंगस संक्रमण

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के दौर में ब्लैक फंगल इंफेक्शन के मामले भी देखने को मिले हैं. दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद जैसे बड़े शहरों से इस बीमारी से जुड़े केस सामने आए हैं. इस संक्रमण में आंखों की रोशनी जाने के साथ-साथ मौत तक होने की खबरे भी हैं. इस इंफेक्शन को म्यूकॉरमाइकोसिस नामक बीमारी से भी जाना जाता है.

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में ब्लैक फंगस इंफेक्शन का सबसे पहला मामला दर्ज किया गया. इसके साथ ही दिल्ली के मैक्स, अपोलो, और फोर्टिस जैसे कई अस्पतालों में भी ब्लैक फंगस के मरीज पहुंचे हैं, जिनमें से कई की मौत भी हो चुकी है.

कीमोथेरेपी, अनियंत्रित डायबिटीज, ट्रांसप्लांट मरीजों और बुजुर्गों में ये बीमारी पहले ज्यादा देखने को मिलती थी, लेकिन कोरोना के बाद को-मॉर्बिडिटी और ज्यादा स्टेरॉयड लेने वाले मरीजों में भी ये बीमारी नजर आने लगी है.

  • ये फंगस नाक से होते हुए बलगम में मिलकर नाक की चमड़ी में चला जाता है.

  • इसके बाद ये बीमारी बहुत तेजी से फैलती हुई सब कुछ खराब करते हुए दिमाग तक चली जाती है.

  • इसमें मृत्यु दर 50 प्रतिशत है.

इससे अनियंत्रित डायबिटीज, ट्रांसप्लांट और आईसीयू में भर्ती मरीजों को ज्यादा खतरा है, क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कम होती है.

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बीबीसी के मुताबिक सर गंगाराम हॉस्पिटल के वरिष्ठ ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. मनीष मुंजाल का मानना है कि ये एक गंभीर बीमारी जरूर है, लेकिन इससे डरने की जरूरत नहीं है. वे कहते हैं कि “ब्लैक फंगस या म्यूकॉरमाइकोसिस कोई नई बीमारी नहीं है. ये नाक, कान और गले ही नहीं, शरीर के अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचाती है. पिछले कुछ दिनों से ये बीमारी एक बड़ा रूप धारण कर रही है, क्योंकि ये बीमारी इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की वजह से होती है.” वहीं अच्छी बात यह है कि इस फंगस से संक्रमित होने वाले लोगों में कई लोग कोरोना की जंग लड़कर भी आए हैं.

महामारी को घातक बनाते नए वैरिएंट

एक ओर जहां कोरोना की वजह से हर दिन भयावह आंकड़े सामने आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश अलग-अलग वैरिएंट भी पाए जा रहे हैं जो ज्यादा खतरनाक बताए जा रहे हैं. पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (PHE) ने कहा है कि COVID-19 के इंडियन वैरिएंट का एक वर्जन अब 'चिंताजनक वैरिएंट' है. वहीं WHO ने बताया है कि लगभग 17 देशों में इस वैरिएंट की पुष्टि हुई है.

अक्टूबर में सबसे पहले पहचाने गए इंडियन वैरिएंट को आधिकारिक तौर पर B.1.617 कहते हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जीनोम सिक्वेंसिंग से ऐसा पता लग रहा है कि यही वैरिएंट भारत में कोरोना की दूसरी लहर की संभावित वजह बना है. इसी की वजह भारत में रोजाना 4 लाख से ज्यादा नए केस आ रहे हैं.

  • पहला बड़ा वैरिएंट जो मशहूर हुआ वह यूके वैरिएंट था.

  • डबल म्यूटेंट जिसे औपचारिक रूप से B.1.617 नाम से जाना जाता है. यह भारत से पहले कैलिफोर्निया और ब्राजील में पाया गया था.

  • B382L को ‘ट्रिपल म्यूटेंट’ कहा जाता है, क्योंकि यह डबल म्यूटेंट की एक उप-शाखा है और इसका अभी तक अलग से कोई नाम नहीं है. यह अभी तक ज्यादातर महाराष्ट्र में पाया गया है, लेकिन बिहार और कर्नाटक समेत कुछ दूसरे राज्यों में भी पाया गया है.

  • इसके अलावा बंगाल वैरिएंट, दक्षिण भारत के वैरिएंट B.1.6.29 जैसे और भी वैरिएंट देखने को मिल हैं.

दूसरी के बाद तीसरी लहर का खतरा बरकरार

केंद्र सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के. विजयराघवन ने कहा, ''फेज तीन निश्चित है, लेकिन सर्कुलेट हो रहे वायरस के हाई लेवल को देखते हुए यह स्पष्ट नहीं है कि फेज तीन किस वक्त आएगा. हमें नई लहरों के लिए तैयार रहना चाहिए.'' फाइनेंसियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 की तीसरी लहर काफी तेजी से और हर जगह फैलती है.

विजयराघवन ने कहा है कि नए म्यूटेंट से निपटने के लिए वैक्सीन को अपडेट करना जरूरी था. उनका मानना है कि वायरस ने जब म्यूटेट करना शुरू किया उसके बावजूद इसके संक्रमण को रोकने के लिए लोगों द्वारा अपनाई जा रही सावधानियों में कोई बदलाव नहीं किया गया.

पीडियाट्रिक्स और इन्फेक्शन डिसीज के एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना की तीसरी लहर 18 से कम आयु वर्ग वालों को तेजी अपने चपेट में ले सकती है. यह काफी गंभीर हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर पर चिंता जाहिर की है. साथ ही केंद्र सरकार से बच्चों के वैक्सीनेशन के बारे में भी सोचने के लिए कहा है.

  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ,बेंगलुरु के टीम ने एक 'मैथमेटिकल मॉडल' का प्रयोग करते हुए यह अनुमान लगाया है कि अगर हालात यही रहे तो 11 जून तक मरने वालों की संख्या 4,04,000 तक हो सकती है.

  • आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक मणींद्र अग्रवाल ने अपनी नई रिसर्च के मुताबिक बताया कि एक्टिव केसों के लिए पीक की टाइमिंग 14-18 मई और नए केसों के लिए 4-8 मई है. पीक के दौरान एक्टिव केस 38-48 लाख और नए केस 3.4-4.4 लाख होंगे.

  • अमेरिका में मिशिगन यूनिवर्सिटी में महामारी विशेषज्ञ भ्रमर मुखर्जी का कहना है कि मध्य मई के दौरान रोजाना 8-10 लाख केस सामने आ सकते हैं. उन्होंने आशंका जताई कि 23 मई के आसपास रोजाना 4,500 लोग कोरोना से जान गंवा सकते हैं.

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