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पिता रामविलास पासवान (Ramvilas paswan) से लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) की बागडोर अपने हाथों में लिए एक साल से भी कम समय बीता है, लेकिन 37 साल के चिराग पासवान ने साबित कर दिया है राजनीति में उनको कम न आंका जाए. वो फिलहाल बिहार की राजनीति में पार्टी के लिए जगह की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं और उनके निशाने पर हैं - बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख नीतीश कुमार और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी.
इससे बिहार में आने वाले विधानसभा चुनावों में सबसे आगे माने जा रहे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के भीतर एक तनाव पैदा हो गया है. एलजेपी की तरफ से अंतिम फैसला एक सप्ताह से कम समय के अंदर लिए जाने की संभावना है.
पासवान के एलजेपी और नीतीश कुमार की जेडीयू के बीच तनातनी के 6 फैक्टर हैं.
नीतीश कुमार ने मन बना लिया है कि वो बीजेपी की मदद से ही सत्ता में वापसी कर सकते हैं और उन्हें एलजेपी के समर्थन की जरूरत नहीं है. उनकी मुख्य प्राथमिकता बीजेपी के साथ गठबंधन के तहत एक अनुकूल समीकरण हासिल करना है.
जेडीयू के लिए अहम होगा कि वो ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े और जीते, इसलिए LJP के लिए किसी भी स्थान को स्वीकार करने की अनिच्छा दिख रही है.
जेडीयू चाहता है कि 2010 के विधानसभा चुनाव की तरह ही एनडीए के सीट बंटवारे का फॉर्मूला रहे, जिसमें जेडीयू को 141 सीटें और बीजेपी को 102 सीटें मिली थीं. जेडीयू चाहेगी की वो करीब-करीब आधी यानी 122 सीटों पर अपनी दावेदारी रखे.
जेडीयू के जवाब में, एलजेपी ने 143 उम्मीदवारों को खड़ा करने की धमकी दी है, मूल रूप से वहां जहां जेडीयू अपने उम्मीदवार उतारेगी. ये नजारा कुछ-कुछ 2005 की तरह ही है, जिसमें एलजेपी की कांग्रेस की सहयोगी आरजेडी के साथ नहीं बल्कि कांग्रेस के साथ मौन सहमति थी.
चिराग पासवान सहयोगी होने के बावजूद पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार पर हमला कर रहे हैं. इस साल की शुरुआत में, प्रवासी मजदूरों के संकट को लेकर उन्होंने बिहार के सीएम की आलोचना की थी. पिछले महीने, उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि उन्होंने एक साल में कुमार से बात नहीं की.
पूरे समीकरण का केंद्र है - बीजेपी. रिपोर्ट्स बताती हैं कि बीजेपी की बिहार में मजबूत पकड़ है और वो 2010 की तुलना में ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहेगी.
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के बगावती तेवर और 2013 में एनडीए से नीतीश कुमार का अलग होना, इसे देखते हुए बीजेपी उन पर निर्भर एक कमजोर नीतीश को पसंद करगी. इसलिए, बीजेपी वास्तव में जेडीयू की स्थिति को कमतर करने के लिए एलजेपी को तरजीह दे सकती है.
हालांकि ये सवाल है कि क्या बीजेपी जेडीयू से एलजेपी को चुनाव पूर्व सहयोगी के रूप में समायोजित करने के लिए कहेगी या अपने गठबंधन सहयोगी के खिलाफ एलजेपी के उम्मीदवारों का खड़ा होना पसंद करेगी. बीजेपी जेडीयू पर लगाम के लिए, रणनीतिक रूप से कुछ सीटों पर एलजेपी का समर्थन करने का विकल्प इस्तेमाल कर सकती है.
बिहार की आबादी में दलितों की संख्या 16 प्रतिशत है. इनमें से आधे रामविलास पासवान के दुसाध समुदाय के हैं. जब से उन्होंने 2000 में एलजेपी का गठन किया, इस तबके से अपेक्षाकृत स्थिर समर्थन प्राप्त किया. कुछ सालों तक उन्हें सभी दलितों और कुछ मुसलमानों का समर्थन प्राप्त था. इससे उन्हें अन्य दलों के साथ सौदेबाजी करने की ताकत मिली.
हालांकि, नीतीश कुमार ने महादलितों के लिए सब-कोटा पेश किया. दलितों के बीच पासवान के लिए व्यापक समर्थन को कम करते हुए इसने जेडीयू को गैर-दुसाध दलितों का समर्थन दिलाया.
नीतीश की महा-महादलित रणनीति का एक प्रमुख प्रतीक जीतन राम मांझी थे, जिन्हें नीतीश ने सीएम नियुक्त किया था. मांझी, जो महादलित मुसहर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, ने अपनी पार्टी एचएएम (एस) बनाई.
हालांकि, उन्होंने जीत का स्वाद नहीं चखा है. वो 2015 में एनडीए और 2019 में यूपीए का हिस्सा थे और दोनों बार हार गए. अब वो एनडीए में वापस आ गए हैं और ये वापसी नीतीश कुमार द्वारा एलजेपी के पर कतरने के तरीके के रूप में देखा जा रहा है. एलजेपी ने कई बार मांझी के खिलाफ हमला बोला है.
बिहार में युवा राजनीतिक रूप से अशांत हैं लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है.
लगता है कि बीजेपी अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या को एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर इस वोट में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है. आरजेडी इसे तेजस्वी यादव, लेफ्ट कन्हैया कुमार के जरिये ये करने की कोशिश कर रहा है, और यहां तक कि रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी युवाओं पर केंद्रित एक अभियान शुरू किया है.
चिराग पासवान को प्रोजेक्ट करके एलजेपी यही कर रही है. एलजेपी के अंदरूनी सूत्रों का मानना
है कि चिराग तेजस्वी या कन्हैया की तुलना में कहीं अधिक चतुर राजनेता हैं - वे कहते हैं कि 2014 के चुनावों में अपने पिता को यूपीए के बजाय जीत हासिल करने वाली एनडीए की तरफ इन्होंने ही खड़ा किया था.
चिराग के समर्थकों का ये भी कहना है कि अपने समुदाय से परे जाकर वो एक युवा नेता के तौर पर खुद को दिखाने की अपील के साथ सफल हुए हैं. इन फैक्टर्स ने चिराग को अधिक आक्रामक रुख अपनाने के लिए और खुद के लिए अधिक से अधिक जगह बनाने के लिए प्रेरित किया.
विधानसभा चुनावों में एनडीए से अलग रहने का मतलब ये हो सकता है कि एनडीए की जीत से एलजेपी सत्ता से वंचित रह जाए.
इसलिए, केंद्र में पार्टी के लिए एक फेवरेबल डील सुरक्षित रखने के लिए भी ऐसा हो सकता है. रामविलास पासवान अगले साल 75 साल के हो जाएंगे. बीजेपी के मानदंडों के हिसाब से मंत्रियों की रिटायरमेंट एज 75 साल है, लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि ये सहयोगी दलों पर लागू होता है या नहीं. एलजेपी अपने पत्ते इस तरह से खेलने की कोशिश कर सकती है कि उसे पासवान को 75 वें जन्मदिन के बाद भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में रखने के लिए या चिराग के लिए संभावित बर्थ को सुरक्षित करने का मौका मिल जाए.
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