Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Elections Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Delhi elections  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019दिल्ली के बाद पंजाब में विकल्प बन सकती है AAP, 5 मुश्किलें हैं

दिल्ली के बाद पंजाब में विकल्प बन सकती है AAP, 5 मुश्किलें हैं

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की जीत पंजाब में AAP की स्थिति दोबारा बेहतर कर सकती है

आदित्य मेनन
दिल्ली चुनाव
Updated:
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की जीत पंजाब में AAP की स्थिति दोबारा बेहतर कर सकती है
i
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की जीत पंजाब में AAP की स्थिति दोबारा बेहतर कर सकती है
(फोटो: द क्विंट)

advertisement

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शानदार जीत, 70 में 62 सीट और 54% वोट शेयर, पंजाब में पार्टी के लिए बड़ी उम्मीद बन कर आई है, क्योंकि यहां AAP की अच्छी खासी मौजूदगी है.

AAP के इकलौते लोकसभा सांसद – भगवंत मान – पंजाब के संगरूर से हैं और 117 सदस्यों वाली पंजाब विधानसभा में पार्टी के 19 विधायक हैं. पंजाब में विपक्ष के नेता हरपराल सिंह चीमा भी आम आदमी पार्टी से हैं.

दिल्ली में जबरदस्त जीत के साथ-साथ आम आदमी पार्टी की पंजाब ईकाई का उत्साह इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि तिलक नगर, हरि नगर, राजौरी गार्डेन, राजेन्द्र नगर, मोती नगर, कालकाजी और जंगपुरा जैसे देश की राजधानी के सिख और पंजाबी बहुल इलाकों में भी पार्टी विजयी रही. जबकि शिरोमणि अकाली दल ने बीजेपी को समर्थन का ऐलान किया था और कांग्रेस ने बड़ी तादाद में सिख उम्मीदवार खड़े किए थे. हालांकि इसके बावजूद पंजाब में आम आदमी पार्टी के पुनरुत्थान में कई मुसीबतें हैं.

2014 की कामयाबी के बाद पतन

2014 लोकसभा चुनाव से शुरुआत करते हुए आम आदमी पार्टी ने पंजाब में 4 सीटें जीतकर जोरदार खाता खोला. लेकिन इसके बाद पार्टी कमजोर होती चली गई.

लोकसभा चुनाव के दौरान 30 विधानसभा क्षेत्रों के हिस्से में आगे रहने के बाद भी 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ 20 सीटें जीत पाई, ज्यादातर मालवा इलाके में, जहां किसानों की समस्या विकराल हो चुकी थी.

स्थानीय चुनाव, गुरदासपुर और अमृतसर उपचुनावों में तो हालत और खराब हो गई, और आखिर में 2019 के लोकसभा चुनाव में 4 सीटों वाली आम आदमी पार्टी 1 सीट पर सिमट कर रह गई.

सबसे जरूरी सवाल यहां ये है: क्या AAP पंजाब में रेस से बाहर हो गई है या पार्टी दोबारा उठ खड़ी हो सकती है?

दिल्ली में सत्ता में वापसी से AAP को बड़ा मौका मिला है और अब पार्टी पंजाब में भी दोबारा ऊभर सकती है, शर्त ये है कि पार्टी 5 बिंदुओं पर गौर करे:

1. गुटबाजी और केन्द्रीय नेतृत्व से मतभेद खत्म हो

पंजाब में आम आदमी पार्टी की परेशानियों की जड़ है गुटबाजी और केन्द्रीय नेतृत्व से खींचतान. जैसे कि पिछले 3 सालों में पंजाब में AAP के 3 चेहरे नेता विपक्ष की जिम्मेदारी निभा चुके हैं: एच एस फूल्का, सुखपाल सिंह खैरा और अब हरपाल चीमा. फूलका और खैरा दोनों पार्टी छोड़ चुके हैं.

पंजाब में पार्टी के दो अध्यक्ष – सच्चा सिंह छोटेपुर और गुरप्रीत घुग्गी भी पार्टी से अलग हो चुके हैं. आप के ज्यादातार बागी नेता इसके लिए पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व की बेतहाशा दखल को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं.

AAP की इस बात को लेकर भी आलोचना हुई कि पार्टी ने दुर्गेश पाठक जैसे गैर-पंजाबी नेताओं को पंजाब की कमान सौंप दी, जिससे स्थानीय नेता बुरी तरह खीझ चुके थे.

दिल्ली और पंजाब के पार्टी नेतृत्व के बीच सबसे बड़ी दरार तब पड़ गई जब आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम मजीठिया से ‘ड्रग माफिया’ वाले बयान के लिए माफी मांग ली.

2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले AAP के बड़े चुनावी वायदों में से एक था मजीठिया को जेल भेजना, इसलिए जब केजरीवाल ने माफी मांगी तो राज्य में पार्टी की साख को बड़ा नुकसान हुआ. उस वक्त विपक्ष के नेता रहे सुखपाल खैरा ने खास तौर पर इसके लिए केजरीवाल की जमकर आलोचना की थी.

2. पंजाब में बनी शून्यता को समझना होगा

दो दशकों से पंजाब की राजनीति में एक तरफ SAD-BJP गठबंधन और दूसरी तरफ कांग्रेस का दबदबा बना है. मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर स्थानीय स्तर पर हल्का प्रभारी तक, समाज के बड़े तबके के हित का इन्हीं दो सियासी ताकतों ने ख्याल रखा है.

यही वजह है पंजाब की आम जनता सियासी वर्ग से पूरी तरह कट गई है और लोगों ने बदलाव की मांग शुरू कर दी है.

लोकनीति-CSDS ने 2019 लोकसभा चुनावों से पहले जो सर्वे कराया था उसमें पंजाब की जनता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नेगेटिव रेटिंग दी थी और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर भी लोगों में कोई उत्साह नहीं था.

लोग बादल परिवार को अब भी नापसंद करते हैं और उनकी राय है कि कैप्टन बरगाड़ी कांड और कोटकपुरा फायरिंग जैसे मामलों में बादल परिवार के साथ नरमी बरत रहे हैं.

पंजाब में पिछले कुछ सालों में बरगाड़ी मोर्चा और माल्वा के किसानों जैसे कई प्रदर्शन हुए. बदलाव की मांग तेज होती जा रही है, ना सिर्फ सरकार में परिवर्तन बल्कि SAD-BJP-Congress वाली सियासी सिस्टम से भी लोगों को छुटकारा चाहिए.

लोकसभा चुनाव में वैकल्पिक पार्टियों को 24 फीसदी वोट मिले, जिसमें आम आदमी पार्टी का शेयर 7.6 फीसदी और पंजाब प्रजातांत्रिक गठबंधन का शेयर 10.6 फीसदी था.

पंजाब में बदलाव के लिए आम आदमी पार्टी को इस वैकल्पिक जगह पर काबिज होना होगा, और कांग्रेस और SAD-BJP गठबंधन को चुनौती देने वाली पार्टी बनकर उभरना होगा.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

3. सभी वैकल्पिक खिलाड़ियों को एकसाथ लाना होगा

इस वक्त पंजाब की सियासत में मौजूद वैकल्पिक जगह पूरी तरह AAP, BSP, लोक इंसाफ पार्टी, पंजाबी एकता पार्टी, SAD (तक्षाली) और लेफ्ट पार्टियों में बंट चुकी है. इसमें अपनी जगह बनाने के लिए AAP को इन बिखरी हुई पार्टियों को अपने साथ मिलाना होगा या उनके साथ गठबंधन करना होगा.

शुरुआत इससे हो सकती है कि AAP से निकले नेता जैसे कि पटियाला के पूर्व सांसद डॉ. धर्मवीर गांधी, सुखपाल खैरा और फूलका जैसे दूसरे बागी AAP विधायकों की घर वापसी कराई जाए.

4. किसी चेहरे को आगे बढ़ाया जाए

2017 के चुनाव में AAP की सबसे बड़ी गलती थी पार्टी में मुख्यमंत्री के चेहरे को आगे नहीं करना. पार्टी ने इस पर कई तरह के संकेत जरूर दिए कि चुनाव जीतने पर

केजरीवाल खुद पंजाब की बागडोर संभाल सकते हैं या मान और फूलका जैसे नेता सीएम बनाए जा सकते हैं.

कांग्रेस ने इस भ्रम का भरपूर फायदा उठाया और कैप्टन पर फोकस करते हुए व्यक्तित्व और नीति पर आधारित चुनाव प्रचार चलाया.

अगर AAP को पंजाब में वैकल्पिक ताकत बनकर उभरना है तो इसे राज्य में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार की घोषणा करनी होगी. दूसरी पार्टियों से कहीं ज्यादा AAP इसकी अहमियत को समझ सकती है जिसने अभी सीएम के चेहरे के बल पर दिल्ली में चुनाव जीता है.

AAP के सलाहकार प्रशांत किशोर, जिन्होंने 2017 में कैप्टन के लिए कैंपेन किया, भी तब ज्यादा कुछ कर पाते हैं जब कोई मजबूत चेहरा आगे रखा जाता है.

मुश्किल यह है कि कौन? फूलका का पंजाब में अच्छा खासा सम्मान है लेकिन वो अब पार्टी के साथ नहीं हैं. वहीं मान, चीमा और अमन अरोड़ा जैसे नेताओं में कैप्टन और बादल परिवार का सामना करने की काबिलियत नहीं है.

यहां नवजोत सिंह सिद्धू एक्स-फैक्टर साबित हो सकते हैं. कैप्टन के हाथों किनारे किए जाने के बाद सिद्धू बतौर मंत्री पंजाब सरकार से इस्तीफा दे चुके हैं. दिल्ली में AAP के खिलाफ चुनाव प्रचार से सिद्धू बचते रहे, इसके बावजूद कि वो पार्टी के स्टार कैंपेनर की लिस्ट में शामिल थे.

इससे उन अटकलों को हवा मिल गई है कि सिद्धू पंजाब में AAP का चेहरा बनने के लिए तैयार हैं, अगर कांग्रेस में उन्हें कोई सम्मानजनक जगह नहीं दी जाती है.

सिद्धू मुख्यधारा की राजनीति में शामिल उन नेताओं में से हैं जिन्हें पंजाब में खूब पसंद किया जाता है, खास तौर पर करतारपुर साहिब कॉरिडोर बनाने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को मनाने के लिए.

सिद्धू उन चंद भारतीय नेताओं में शामिल थे जिन्हें पाकिस्तान की तरफ आयोजित उद्घाटन समारोह में बोलने की इजाजत दी गई थी.

2017 के चुनाव से पहले भी सिद्धू AAP के संपर्क में थे और उनसे मोल-तोल कर रहे थे, लेकिन आखिरकार उन्होंने कांग्रेस को चुना. इस बार AAP, जो कि पंजाब में अपना वजूद बचाने के लिए बेताब है, शायद सिद्धू की शर्तें मानने के लिए तैयार हो जाए.

5. सभी मसलों पर अपना रुख स्पष्ट करें

दिल्ली चुनाव में AAP के चुनाव प्रचार के कई ऐसे पहलू हैं जिन्हें पंजाब में दोहराया जा सकता है. एक ऐसा राज्य जिसमें किसानों की परेशानी और बेरोजगारी बड़े मसले हैं, कल्याणकारी और लोकलुभावन नीतियों पर AAP का जोर पंजाब में अच्छा असर दिखा सकता है.

हालांकि पंजाब में AAP को कुछ ऐसे विवादित मसले भी उठाने पड़ सकते हैं जिससे पार्टी दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान बचती रही.

बतौर सिख राज्य, पंजाब में हिंदू-विरोधी भावना बहुत प्रबल है, ऐसे में AAP से उम्मीद रहेगी कि धर्मनिरेपक्षता के मुद्दे पर मजबूत रुख अख्तियार करे.

जैसे कि नागरिकता संशोधन कानून पर बीजेपी की सहयोगी पार्टी अकाली दल ने संसद में बिल के समर्थन में वोट के बावजूद लोगों के सामने खुलकर इसकी आलोचना की. ऐसा पार्टी ने पंजाब में लोगों की राय को दिमाग में रखकर किया.

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और उसके दो टुकड़े करने के फैसले पर भी पंजाब में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. सिख और किसान संगठन केन्द्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतर आए.

AAP ने सरकार के इस फैसले का समर्थन किया लेकिन पंजाब से पार्टी के इकलौते सांसद मान वोटिंग के दौरान नदारद रहे, साफ तौर पर वो अपने राज्य में इस पर होने वाली तीखी प्रतिक्रिया से बचना चाहते थे.

पंजाब में, खास तौर पर सिख, लोग उन्हें पसंद करते हैं जो कमजोर के साथ खड़े होते हैं और ताकतवर से टकराने का माद्दा रखते हैं. खास तौर पर अल्पसंख्यकों से जुड़े मसलों पर.

इसलिए पंजाब के लोगों का दिल जीतने के लिए दिल्ली जैसी लोकलुभावन राजनीति काफी नहीं होगी.

इसके अलावा ये भी याद रखना चाहिए दिल्ली से ठीक उल्टा पंजाब में मोदी इतने पसंद नहीं किए जाते. इसलिए AAP से उम्मीद होगी कि वो पंजाब में मोदी पर सियासी वार करने में कोई कसर ना छोड़ें.

सबकुछ इस पर निर्भर करता है कि केजरीवाल की प्राथमिकता क्या है? क्या वो पिछले दो साल की तरह खुद को दिल्ली तक ही समेट कर रखना चाहते हैं या फिर राष्ट्रीय स्तर पर AAP का विस्तार करना चाहते हैं? इसमें प्रशांत किशोर और सिद्धू दो अहम किरदार साबित हो सकते हैं, दोनों अपने दांव कैसे खेलते है बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करता है.

पंजाब बदलाव के लिए बेचैन है, लेकिन ये साफ नहीं है कि AAP अभी वो बदलाव बनना चाहता है या नहीं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 13 Feb 2020,10:09 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT