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गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Election 2022) में बीजेपी-कांग्रेस के साथ ही कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां ताल ठोक रही हैं. लेकिन प्रदेश के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो यहां बीजेपी और कांग्रेस में ही मुख्य मुकाबला रहा है. बीते 20 साल में किसी भी तीसरे दल को गुजरात की जनता ने स्वीकार नहीं किया है. अधिकतर पार्टियां वोटकटवा ही साबित हुई हैं.
इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी, NCP, AIMIM, BTP सहित कई क्षेत्रीय पार्टियां किस्मत आजमा रही हैं. लेकिन उनके लिए मुकाबला इतना भी आसान नहीं है. एक तरफ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी प्रदेश में अपनी जमीन तलाशने की कोशिश में जुटी है. तो वहीं AIMIM मुस्लिम वोटर्स के भरोसे मैदान में उतरी है. हालांकि, दूसरी पार्टियां AIMIM पर बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप लगाती रही हैं. भारतीय ट्राइबल पार्टी भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है. लेकिन इस बार बाप-बेटे खुद ही आमने-सामने हो गए हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार गुजरात में 89.17 लाख आदिवासी हैं, जो कि प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 15 प्रतिशत है. राज्य के 14 पूर्वी जिलों में आदिवासी समुदाय बड़े पैमाने पर निवास करते हैं. वहीं विधानसभा की 27 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. गुजरात में आदिवासी कांग्रेस के परंपरागत वोटर्स माने जाते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में इन 27 आदिवासी सीटों में से सबसे ज्यादा 17 सीटें कांग्रेस ने जीती थी. वहीं बीजेपी के खाते में मात्र 8 सीटें आई थीं. वहीं दो सीटों पर बीटीपी ने कब्जा जमाया था.
कहा जा रहा था कि बीटीपी इस बार आदिवासी बेल्ट में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती थी. लेकिन पार्टी पारिवारिक लड़ाई में उलझ गई है. बीटीपी के संस्थापक छोटू वसावा और उनके बेटे महेश वसावा आमने-सामने हो गए हैं. पूरे विवाद की शुरुआत बीटीपी उम्मीदवारों के ऐलान के साथ हुआ. महेश वसावा ने झगड़िया सीट से अपने ही पिता का पत्ता काटते हुए चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. बता दें कि इस सीट से उनके पिता छोटू वसावा 1990 से लगातार 7 बार चुनाव जीत चुके हैं. बेटे के ऐलान के बाद पिता ने निर्दलीय पर्चा भरा है.
बता दें कि आदिवासी नेता छोटू वसावा 1990 से 2017 तक JDU के साथ थे. 2017 विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उन्होंने बीटीपी का गठन किया. इसके बाद 2020 में गुजरात पंचायत चुनाव से पहले असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM के साथ और इस साल AAP के साथ चुनावी गठबंधन किया था. हालांकि वसावा ने AAP से नाता तोड़ लिया और दावा किया कि केजरीवाल बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं.
2017 विधानसभा चुनाव में बीटीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. बीटीपी ने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. जिसमें से 2 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. वहीं 4 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. वहीं पार्टी को मात्र 0.74 फीसदी वोट मिल थे.
इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और NCP एक साथ है. प्रदेश की 182 विधानसभा सीटों में से सिर्फ तीन सीटों- उमरेठ (आणंद जिला), नरोदा (अहमदाबाद) और देवगढ़ (दाहोद जिला) पर NCP चुनाव लड़ रही है. इन तीनों सीटों पर फिलहाल सत्तारूढ़ बीजेपी का कब्जा है.
2012 के चुनाव में पार्टी ने 2017 चुनाव के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया था. पार्टी ने 12 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 2 पर जीत हासिल की थी. पार्टी को 0.95 फीसदी वोट मिले थे. 2007 में पार्टी ने 10 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे और 3 ने जीत दर्ज की थी. पार्टी को 1.05 फीसदी वोट मिले थे.
गुजरात में दलितों की आबादी लगभग आठ प्रतिशत है. ये सीधे तौर पर 12 से 15 सीटों पर अपनी वोट से परिणाम को प्रभावित करने का दम रखते हैं. गुजरात विधानसभा की 13 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं. लेकिन इतनी बड़ी दलित आबादी होने के बावजूद प्रदेश में बीएसपी का जनाधार नहीं है.
वहीं 2007 में पार्टी ने 166 उम्मीदवार उतारे, इनमें से मात्र 3 उम्मीदवार ही अपनी जमानत बचा सके. वोट पर्सेंटेज 2.62 फीसदी रहा. 2002 चुनाव में 34 में से 34 सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था.
गुजरात में नतीश कुमार की JDU से लेकर समाजवादी पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी के साथ ही लेफ्ट और स्थानीय पार्टियां गिने-चुने सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारती हैं. लेकिन बीजेपी-कांग्रेस की टक्कर में इन पार्टियों के सामने जीत छोड़िए अस्तित्व बचाने की चुनौती खड़ी हो जाती है.
दो दशक से ज्यादा समय से बीजेपी गुजरात की सत्ता में काबिज है. इस दौरान कांग्रेस को छोड़कर कोई दूसरी पार्टी बीजेपी को टक्कर देने में नाकाम रही है. इस बार भी मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है. लेकिन आम आदमी पार्टी कुछ सीटों पर दोनों का खेल बिगाड़ सकती है. वहीं AIMIM के आने से भी मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर असर पड़ सकता है.
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