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लोकसभा चुनावों में बीजेपी की संभावनाएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में वो कैसा प्रदर्शन करती है. पिछले साल दिसम्बर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस के हाथों पार्टी की हार इशारा करती है कि इस बार उसके लिए 2014 चुनावों जैसा प्रदर्शन दोहराना मुश्किल होगा. पिछले चुनाव में इन तीन राज्यों की 65 में से 62 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था.
मध्य प्रदेश में पार्टी को 29 में से 27 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस के खाते में महज दो सीटें आई थीं. छिंदवाड़ा से कांग्रेस दिग्गज कमल नाथ और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया ही अपनी सीटें बचा पाए थे. अगर पोल आइज के सर्वे की मानें, तो 2014 की तुलना में बीजेपी को मध्य प्रदेश में भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है.
सर्वे का अनुमान है कि पार्टी का आंकड़ा 16 सीटों तक सिमट सकता है, यानि 11 सीटों का नुकसान. दूसरी ओर कांग्रेस को इतनी ही सीटों का फायदा होने की संभावना है और वो राज्य में 13 सीटों का आंकड़ा छू सकती है. जहां तक वोट शेयर का सवाल है, तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही लगभग 47 फीसदी वोट हासिल कर सकती हैं.
बीजेपी का आंकड़ा अगर 16 रहता है तो ये विधानसभा चुनावों की तुलना में एक सीट की कमी है, जिसमें बीजेपी 17 लोकसभा क्षेत्रों में, जबकि कांग्रेस 12 लोकसभा सीटों पर आगे थी. ये हैरानी की बात है कि ऐसी स्थिति में कांग्रेस को बीजेपी की तुलना में ज्यादा विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि उसे बीजेपी की तुलना में कम लोकसभा सीटों पर बढ़त मिली थी. इसकी वजह थी कि बीजेपी ने बड़े अंतर से कम सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को कम अंतर से ज्यादा सीटों पर विजय हासिल हुई.
खंडवा लोकसभा क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों का उदाहरण लेते हैं. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इनमें से चार, बीजेपी ने तीन और निर्दलीय उम्मीदवार ने एक सीट पर कब्जा जमाया. लेकिन वोट शेयर के मामले में बीजेपी को पूरे खंडवा लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस की तुलना में 5 फीसदी ज्यादा वोट मिला.
पोल आइज के सर्वे में भी कांग्रेस को कई सीटों पर हल्की बढ़त मिली हुई है. ऐसी हालत में थोड़ा भी उतार-चढ़ाव पार्टी के लिए खतरनाक हो सकता है. ये सर्वे बालाकोट स्ट्राइक से पहले किया गया था, लिहाजा, बीजेपी कुछ करीबी मुकाबलों में कांग्रेस पर बीस साबित हो सकती है.
सर्वे के मुताबिक, मुरैना, भिंड, ग्वालियर, देवास, मांडला और खरगौन में बीजेपी को मजबूत बढ़त मिली हुई है. दूसरी ओर गुना, छिंदवाड़ा, राजगढ़ और खजुराहो में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है. अन्य सभी सीटों पर दोनों पार्टियों के बीच करीबी मुकाबला है.
चम्बल के आसपास के क्षेत्रों में बीजेपी का भाग्य साथ देता दिख रहा है. भिंड, मुरैना और ग्वालियर जैसी जगहों पर विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा था. ये वो सीटें थीं, जहां अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को लेकर अगड़ी जातियों का विरोध प्रखर था. कई सवर्ण वोटर बीजेपी छोड़कर कांग्रेस के पक्ष में चले गए. लेकिन अब लगता है कि अगड़ी जातियों के वोट बीजेपी के समर्थन में वापस आ गए हैं.
दूसरी ओर कांग्रेस को मालवा क्षेत्र में फायदा होता दिख रहा है, जिनमें मंदसौर, उज्जैन, रतलाम और राजगढ़ जैसी सीटें शामिल हैं.
सर्वे के समय बीजेपी जिन सीटों पर कम फासले से पिछड़ी हुई थी, उनमें कुछएक पर बढ़त मिलने पर भी 2014 की तुलना में उसे मध्य प्रदेश में 7-8 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है. झारखंड और गुजरात जैसे राज्यों की तुलना में यहां की स्थिति भी अलग नहीं है, जहां सर्वे के अनुमान के मुताबिक, बीजेपी को इतनी ही सीटों का नुकसान हो रहा है. अगर हिंदी भाषी क्षेत्र में यही रुझान बना रहा तो बीजेपी के लिए अपने सहयोगियों की मदद से भी बहुमत हासिल करना मुश्किल हो जाएगा.
(सर्वे की कार्यपद्धति: ये सर्वेक्षण 10 राज्यों के सभी विधानसभा क्षेत्रों में फरवरी में किया गया था. हर विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर अनियमित तरीके से चुनकर 50 व्यक्तियों का इंटरव्यू किया गया.)
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