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गोरखपुर वालों को क्या रवि किशन हैं मंजूर, क्या बचेगा योगी का गढ़?

बीजेपी की हाईप्रोफाइल सीट गोरखपुर से रवि किशन मैदान में हैं.

स्मिता चंद
चुनाव
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गोरखपुरवालों को क्या रवि किशन हैं मंजूर,क्या बचेगा का योगी का गढ़
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गोरखपुरवालों को क्या रवि किशन हैं मंजूर,क्या बचेगा का योगी का गढ़
(फोटो: द क्विंट)

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बीजेपी की हाईप्रोफाइल सीट गोरखपुर से एक्टर रवि किशन मैदान में हैं. लेकिन रवि किशन की राह इतनी आसान नहीं दिखती. साल 2018 के उपचुनाव में अपना गढ़ रहे गोरखपुर को गंवा चुकी बीजेपी दोबारा हार का जख्म झेलना नहीं चाहती लेकिन ब्राह्मण-राजपूत की लड़ाई वाली इस सीट पर बीजेपी का दांव कितना कामयाब होगा, इस पर सबकी नजर है.

साल 2018 के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद ने बीजेपी उम्मीदवार को पटखनी दी थी. निषाद हाल ही में बीजेपी में शामिल हो गए. चर्चा यही थी कि बीजेपी का टिकट उन्हें ही मिलेगा. लेकिन पार्टी ने निषाद को गोरखपुर से सटे संतकबीर नगर से टिकट दिया और गोरखपुर से भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार रवि किशन को उतार दिया.

क्या कहते हैं गोरखपुर के लोग

गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार रत्नाकर सिंह बीजेपी के इस फैसले पर हैरानी जताते हुए कहते हैं:

बीजेपी ने रवि किशन को मैदान में उतारकर विपक्ष को थाली में सजाकर जीत दे दी है. रवि किशन भले ही ब्राह्मण समाज से आते हैं, लेकिन गोरखपुर के ब्राह्मण कभी भी बाहरी को सपोर्ट नहीं करेंगे. अगर उनकी जगह बीजेपी उपेंद्र शुक्ला को मैदान में उतारती तो शायद कोई उम्मीद बनती. लेकिन रवि किशन को ना तो ब्राह्मणों का वोट मिलेगा और ना ही राजपूतों का. 

रत्नाकर सिंह के मुताबिक, ‘एसपी-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवार राम भुवाल निषाद जाति से आते हैं. तो जाहिर है निषाद समाज का वोट उन्हीं को जाएगा. गोरखपुर में करीब 4 लाख निषाद वोटर हैं. उसके अलावा एससी -एसटी तो मायावती के कोर वोटर हैं हीं. रवि किशन को जीत तभी मिल सकती है जब ब्राह्मण और ठाकुर गोलबंद होकर बीजेपी को वोट करें.’

अमित शाह के साथ रवि किशन (फोटो: ANI)

हालांकि ब्राह्मण और राजपूत का एक साथ गोलबंद होना काफी मुश्किल लगता है, क्योंकि यहां सालों से राजपूत बनाम ब्राह्मण की लड़ाई चलती रही है. रही सही कसर संतकबीर नगर में हुए जूताकांड ने पूरी कर दी. जब सांसद शरद त्रिपाठी (ब्राह्मण ) ने अपनी ही पार्टी के विधायक राकेश सिंह बघेल (राजपूत ) की जूते से पिटाई कर दी थी.

गोरखपुर के ही मृत्युंजय चौबे बीजेपी के समर्थक रहे हैं लेकिन वो रवि किशन की उम्मीदवारी के पक्ष में नहीं हैं. वो ब्राह्मण समाज से आते हैं, लेकिन रवि किशन को अपना नहीं मानते.

बीजेपी का ये फैसला मुझे समझ नहीं आया, रवि किशन तो एक फिल्म स्टार हैं, वो यहां के लोगों के लिए क्या करेंगे. हमें उम्मीद थी कि प्रवीण निषाद को ही टिकट दिया जाएगा, लेकिन पता नहीं क्यों बीजेपी ने रवि किशन पर दांव खेला. ये फैसला हमारे गले से नीचे नहीं उतर रहा. 

गोरखपुर के बैंकर मृत्युंजय सिंह कहते हैं-

बीजेपी ने ये बहुत गलत फैसला किया है, यहां के लोकल नेताओं को हाशिये पर रखकर रवि किशन को टिकट देना सही नहीं हैं. हो सकता है मोदी के नाम पर ही शायद वोट मिल जाए, लेकिन रवि किशन को निजी तौर पर लोग पसंद नहीं कर रहे. गोरखपुर योगी की कर्मभूमि है और इतने हाईप्रोफाइल सीट पर रवि किशन को उतारना बड़ा अजीब है. 

गोरखपुर के ही अकाउटेंट अतुल्य कुमार श्रीवास्तव कहते हैं-

ये सीट बहुत महत्वपूर्ण है, यहां से रवि किशन को नहीं उतारना चाहिए था, लेकिन मोदी के नाम पर वो जीत जाएंगे. बीएसपी और एसपी के कैडिंडेट राम भुवाल इतने बड़े कद के नेता नहीं हैं, इसका फायदा रवि किशन को मिलेगा. वैसे हम लोग तो बीजेपी के नाम पर कोई भी खड़ा हो जाए तो वोट उसी को देंगे.
योगी आदित्यनाथ के साथ रवि किशन(फोटो: ट्विटर)

रवि किशन की राह है मुश्किल?

018 की हार के बाद सीएम योगी के लिए ये सीट बचाना नाक का सवाल है.(फोटो: ट्विटर)

2018 की हार के बाद सीएम योगी के लिए ये सीट बचाना नाक का सवाल है. इस सीट पर सालों से गोरक्षपीठ का दबदबा रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि पहले योगी चाहते थे कि गोरक्षपीठ का ही कोई उम्मीदवार यहां से चुनाव लड़े, लेकिन पार्टी ने रवि किशन के नाम पर मुहर लगाई.

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योगी 5 बार जीते चुनाव

योगी आदित्यनाथ पिछले 5 बार से यहां से सांसद चुने जाते रहे हैं. योगी 1998 से 2017 तक गोरखपुर से सांसद रहे. 2017 में सीएम बनने के बाद योगी को इस सीट से इस्तीफा देना पड़ा.

गोरखपुर की राजनीति में गोरक्षपीठ का काफी प्रभाव रहा है(ग्राफिक्स: तरुण अग्रवाल/ क्विंट हिंदी)

शुरुआत हुई 1967 से जब महंत दिग्विजय नाथ पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते. 1969 में उनके निधन के बाद 1970 में उपचुनाव हुआ और उसमें दिग्विजय नाथ के उत्तराधिकारी महंत अवैधनाथ जीत गए. इसके बाद 1989 में अवैधनाथ हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव जीते. फिर 1991 में वो बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतकर संसद पहुंचे.

महंत अवैधनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ पहली बार 1998 में बीजेपी की सीट पर लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे. तब से लगातार वो सांसद बनते रहे हैं. लेकिन उनके गोरखपुर छोड़ते ही ये सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई. अब रवि किशन के कंधों पर इस सीट को वापस जीतने की जिम्मेदारी है.

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Published: 17 Apr 2019,06:50 PM IST

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