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बीजेपी की हाईप्रोफाइल सीट गोरखपुर से एक्टर रवि किशन मैदान में हैं. लेकिन रवि किशन की राह इतनी आसान नहीं दिखती. साल 2018 के उपचुनाव में अपना गढ़ रहे गोरखपुर को गंवा चुकी बीजेपी दोबारा हार का जख्म झेलना नहीं चाहती लेकिन ब्राह्मण-राजपूत की लड़ाई वाली इस सीट पर बीजेपी का दांव कितना कामयाब होगा, इस पर सबकी नजर है.
गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार रत्नाकर सिंह बीजेपी के इस फैसले पर हैरानी जताते हुए कहते हैं:
रत्नाकर सिंह के मुताबिक, ‘एसपी-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवार राम भुवाल निषाद जाति से आते हैं. तो जाहिर है निषाद समाज का वोट उन्हीं को जाएगा. गोरखपुर में करीब 4 लाख निषाद वोटर हैं. उसके अलावा एससी -एसटी तो मायावती के कोर वोटर हैं हीं. रवि किशन को जीत तभी मिल सकती है जब ब्राह्मण और ठाकुर गोलबंद होकर बीजेपी को वोट करें.’
हालांकि ब्राह्मण और राजपूत का एक साथ गोलबंद होना काफी मुश्किल लगता है, क्योंकि यहां सालों से राजपूत बनाम ब्राह्मण की लड़ाई चलती रही है. रही सही कसर संतकबीर नगर में हुए जूताकांड ने पूरी कर दी. जब सांसद शरद त्रिपाठी (ब्राह्मण ) ने अपनी ही पार्टी के विधायक राकेश सिंह बघेल (राजपूत ) की जूते से पिटाई कर दी थी.
गोरखपुर के ही मृत्युंजय चौबे बीजेपी के समर्थक रहे हैं लेकिन वो रवि किशन की उम्मीदवारी के पक्ष में नहीं हैं. वो ब्राह्मण समाज से आते हैं, लेकिन रवि किशन को अपना नहीं मानते.
गोरखपुर के बैंकर मृत्युंजय सिंह कहते हैं-
गोरखपुर के ही अकाउटेंट अतुल्य कुमार श्रीवास्तव कहते हैं-
2018 की हार के बाद सीएम योगी के लिए ये सीट बचाना नाक का सवाल है. इस सीट पर सालों से गोरक्षपीठ का दबदबा रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि पहले योगी चाहते थे कि गोरक्षपीठ का ही कोई उम्मीदवार यहां से चुनाव लड़े, लेकिन पार्टी ने रवि किशन के नाम पर मुहर लगाई.
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योगी आदित्यनाथ पिछले 5 बार से यहां से सांसद चुने जाते रहे हैं. योगी 1998 से 2017 तक गोरखपुर से सांसद रहे. 2017 में सीएम बनने के बाद योगी को इस सीट से इस्तीफा देना पड़ा.
शुरुआत हुई 1967 से जब महंत दिग्विजय नाथ पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते. 1969 में उनके निधन के बाद 1970 में उपचुनाव हुआ और उसमें दिग्विजय नाथ के उत्तराधिकारी महंत अवैधनाथ जीत गए. इसके बाद 1989 में अवैधनाथ हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव जीते. फिर 1991 में वो बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतकर संसद पहुंचे.
महंत अवैधनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ पहली बार 1998 में बीजेपी की सीट पर लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे. तब से लगातार वो सांसद बनते रहे हैं. लेकिन उनके गोरखपुर छोड़ते ही ये सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई. अब रवि किशन के कंधों पर इस सीट को वापस जीतने की जिम्मेदारी है.
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