advertisement
लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में पश्चिम बंगाल में चुनावी जंग सबसे तेज है. 14 मई, मंगलवार को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान बीजेपी कार्यकर्ताओं के हाथों ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की मूर्ति का टूटना ममता बनर्जी के लिए वरदान बनकर आया. शायद वो यही चाहती थीं. बीजेपी के खिलाफ बंगाली क्षेत्रीयता की भावना उभारने का इससे बेहतर मौका कुछ भी नहीं हो सकता था.
उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का ममता बनर्जी पर जुबानी हमला जारी है. रोड शो के बाद अमित शाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर निशाना भी साधा.
पश्चिम बंगाल के 42 में से 32 संसदीय सीटों पर मतदान पहले ही खत्म हो चुका है और 19 मई को अंतिम चरण में 10 सीटों पर मतदान होना है.
2014 के चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी को महज 2 सीटें मिली थीं. अब बीजेपी उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के हाथों संभावित नुकसान की भरपाई पश्चिम बंगाल में करने को बेताब है.
इस बात से शायद ही कोई इनकार करे कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी का वोट शेयर बढ़ेगा, लेकिन बढ़े हुए वोट शेयर सीटों के रूप में बदलेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है. कई लोगों का मानना है कि पार्टी की सीटों की संख्या दहाई तक भी नहीं पहुंचेगी. आइये देखते हैं पश्चिम बंगाल के बारे में कुछ प्रमुख सर्वे क्या कहते हैं:
इस बात पर कमोबेश सभी सहमत हैं कि टीएमसी के वोट शेयर में 2014 लोकसभा चुनाव की तुलना में ज्यादा कमी नहीं आएगी. 2014 में टीएमसी को 39.8% लोगों का साथ मिला था, जबकि 2016 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट शेयर बढ़कर 44.9% हो गया था.
टीएमसी का वोट शेयर लगभग पहले के बराबर है, लेकिन असली उठापटक टीएमसी विरोधी वोटों में है. 2014 के चुनाव में 30% वोटों के साथ वाम मोर्चा मुख्य विरोधी दल था. बीजेपी की स्थिति पहले से बेहतर होकर 17 फीसदी और कांग्रेस की हिस्सेदारी महज 9.7 फीसदी की थी. कांग्रेस को मुख्य रूप से केन्द्रीय और बंगाल के उत्तरी हिस्से में अपने गढ़ में वोट मिले थे.
2016 के विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा और कांग्रेस ने हाथ मिला लिया था, लेकिन करीब 45% वोटों के साथ राज्य में टीएमसी की सरकार बनी रही.
इस बार बीजेपी की सेंध वाम मोर्चे में लगती दिख रही है. CVoter की भविष्यवाणी के मुताबिक बीजेपी को 35 फीसदी वोट मिल सकते हैं, जबकि वाम मोर्चा महज 15 फीसदी पर अटक जाएगा. कांग्रेस को भी कुछ नुकसान हो सकता है, लेकिन कांग्रेस का वोट टीएमसी को जा सकता है.
लोकनीति-CSDS भी कुछ ऐसे ही रुझान की भविष्यवाणी कर रहा है, लेकिन उसके सर्वे के मुताबिक बीजेपी को थोड़ा ही फायदा है. उसके मुताबिक बीजेपी को 26 फीसदी और वाम मोर्चा को 19 फीसदी वोट मिल सकते हैं, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 2014 के वोट शेयर के बराबर रहेगा. दोनों सर्वे के बीच मतभेद वाम मोर्चा की कीमत पर बीजेपी को होने वाले फायदे को लेकर है. लेकिन टीएमसी की मजबूती को लेकर सभी एकमत हैं.
पश्चिम बंगाल के हर संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्र पड़ते हैं. अगर 2016 के विधानसभा चुनाव में लोकसभा सीट के हिसाब से सभी पार्टियों का प्रदर्शन देखा जाए तो टीएमसी 38 सीटों पर आगे थी और कांग्रेस 4 सीटों पर.
कम वोट शेयर होने के बावजूद कांग्रेस के सीटों की संख्या में बढ़ोतरी की वजह ये है कि उसके वोटों का जमावड़ा मालदा, बहरामपुर, रायगंज, जांगीपुर और मुर्शिदाबाद जैसी जगहों पर एक साथ है. राज्य के दूसरे इलाकों में शायद ही उसकी मौजूदगी है.
हालांकि CVoter की भविष्यवाणी है कि 2019 के चुनाव में पश्चिम बंगाल में सिर्फ दो पार्टियां हावी रहेंगी. उसके मुताबिक टीएमसी को 34 और बीजेपी को 8 सीटें मिल सकती है.
दूसरी ओर, लोकनीति-CSDS का पूर्वानुमान है कि कांग्रेस की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहेगी और वाम मोर्चा की स्थिति CVoter के आकलन की तुलना में ज्यादा खराब होगी. इसके मुताबिक टीएमसी 30-36 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है, बीजेपी को 2-6 सीट और कांग्रेस को 3-7 सीट मिलने की संभावना है. CSDS के आंकड़े रेंज में हैं, जिनका औसत हमने चार्ट में दिखाया है.
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के आकलन के आधार पर Chanakyya.com के पार्था दास के मुताबिक, टीएमसी 41 फीसदी वोटों के साथ 35 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है, बीजेपी को 30 फीसदी वोटों के साथ 5 सीट और कांग्रेस को 6 फीसदी वोटों के साथ 2 सीट मिल सकती हैं. दास ने 10 ऐसे सीटों की भी सूची बनाई है, जहां बीजेपी के जीतने की संभावना हो सकती है.
हर कोई मान रहा है कि बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा है, लेकिन शायद ही कोई सेफोलॉजिस्ट ये मानने को तैयार है कि सीटों के मामले में बीजेपी दहाई का आंकड़ा छू सकेगी.
बीजेपी के सीटों की संख्या बढ़ने का एक ही तरीका हो सकता है, अगर पार्टी मार्च में CVoter के वोट शेयर के पूर्वानुमान में सुधार लाए.
अब हम एक और आंकड़ा देखते हैं. लोकनीति-CSDS के चुनाव-पूर्व सर्वे के मुताबिक बंगाल में ममता बनर्जी सरकार की अप्रूवल रेटिंग मोदी सरकार से बेहतर है.
सर्वे के मुताबिक बंगाल में मोदी सरकार की नेट सैटिस्फैक्शन रेटिंग 14 फीसदी है. सरकार से संतुष्ट रहने वाले लोगों की संख्या में असंतुष्टों की संख्या घटाने पर नेट सैटिस्फैक्शन रेटिंग तय होती है. ममता बनर्जी सरकार के लिए यही रेटिंग 22 फीसदी है.
किसी का भी स्कोर विशेष रूप से अच्छा नहीं है. केन्द्र सरकार की नेट सैटिस्फैक्शन रेटिंग ओडिशा में 73 फीसदी, जबकि केरल और तमिलनाडु में -39 फीसदी है. जहां तक राज्य सरकारों का सवाल है, तो ओडिशा में नवीन पटनायक सरकार की नेट सैटिस्फैक्शन रेटिंग 84% है, जबकि तमिलनाडु में AIADMK सरकार की -41 फीसदी.
ये पूछने पर कि वोटिंग करते समय किसका कामकाज ध्यान में रखा जाएगा, बंगाल में 38% लोगों का कहना था कि केन्द्र सरकार का. 20 फीसदी लोग राज्य सरकार के कामकाज के मुताबिक वोट तय करने के पक्ष में थे, जबकि 17 फीसदी लोगों का कहना था कि दोनों के कामकाज का आकलन कर वो अपना वोट तय करेंगे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 16 May 2019,02:49 PM IST