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मायावती कांग्रेस से इतनी उखड़ी उखड़ी क्यों हैं? जानकार कहते हैं अखिलेश यादव ने तो नामुमकिन लगने वाला काम मुमकिन कर दिखाया. लेकिन कांग्रेस ने अपनी ही गलती से बनता काम बिगाड़ लिया.
मायावती के तेवरों का अंदाजा उनके हालिया बयान से भी लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा, 'मैंने फिलहाल लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है. मैं चुनाव के बाद जब भी चाहूंगी, प्रदेश की किसी भी सीट को खाली कराकर लोकसभा में जा सकती हूं.'
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी गठबंधन में शामिल होना चाहती थी. लेकिन मायावती ने कांग्रेस को बिल्कुल भी भाव नहीं दिया. उल्टा जब कांग्रेस ने गठबंधन के लिए सात सीटें छोड़कर करीब आने की कोशिश की तो मायावती ने सार्वजनिक तौर पर फटकार लगा दी.
जानकार कहते हैं कि कांग्रेस के लिए कड़वाहट की असली वजह है बीएसपी से बर्खास्त किए गए नसीमुद्दीन सिद्दीकी को कांग्रेस में शामिल किया जाना. सिद्दीकी को मायावती ने मई 2017 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया था. नसीमुद्दीन ने बीएसपी चीफ मायावती पर कई गंभीर आरोप लगाए थे और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऑडियो क्लिप भी जारी की थी.
नसीमुद्दीन 2018 में समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए. बीएसपी के करीबी सूत्रों के मुताबिक नसीमुद्दीन को मायावती ने विश्वासघाती करार दिया था. लेकिन कांग्रेस ने उन्हें पार्टी में शामिल करके दरवाजे बंद कर लिए.
बीएसपी से बर्खास्त नसीमुद्दीन सिद्दीकी समाजवादी पार्टी में शामिल होना चाहते थे, लेकिन अखिलेश यादव ने आने वाले वक्त का अंदाजा लगा लिया था, उन्हें पता था कि इससे मायावती नाराज हो सकती हैं और इसका असर गठबंधन की बातचीत पर पड़ सकता है. इसी वजह से समाजवादी पार्टी में जगह नहीं दी थी.
यूपी की सियासत का एक और चेहरा शिवपाल सिंह यादव, जिन्होंने हाल ही में समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाई है. पहले चाचा पहले एसपी-बीएसपी गठबंधन में घुसने की कोशिश करते रहे. लेकिन एसपी चीफ अखिलेश और बीएसपी चीफ मायावती की नाराजगी के चलते ऐसा नहीं हो सका. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोशिश की. लेकिन इसे मायावती का खौफ ही कहेंगे कि कांग्रेस ने भी शिवपाल को गठबंधन में शामिल नहीं किया.
लखनऊ गेस्टहाउस कांड के लिए मायावती शिवपाल को ही जिम्मेदार ठहराती हैं. इसके अलावा एसपी-बीएसपी के गठबंधन के वक्त भी शिवपाल ने मायावती को लेकर जो बयान दिए थे उससे बीएसपी सुप्रीमो बेहद खफा थीं.
यूपी में एसपी-बीएसपी के बीच हुए गठबंधन ने सभी को चौंकाया था. कहा गया कि मायावती सियासी फायदे की वजह से गेस्टहाउस कांड भी भूल गईं. लेकिन मायावती ने परिपक्वता दिखाते हुए यह कहकर विरोधियों का मुंह बंद कर दिया कि गेस्टहाउस कांड से अखिलेश का क्या लेना-देना है.
एसपी के सूत्रों का कहना है बीएसपी सुप्रीमो की तरफ से अखिलेश यादव को साफ निर्देश हैं कि हर मसले पर सिर्फ वन-टू-वन बातचीत होगी और बीच में कोई नहीं आएगा. दरअसल, मायावती ने एसपी के साथ गठबंधन अखिलेश की ओर से लगातार पहल किए जाने के बाद ही किया और वो इस पर मुलायम सिंह यादव या रामगोपाल यादव से कोई संवाद नहीं करना चाहती हैं.
सावित्री बाई फुले बहराइच से बीजेपी की टिकट पर सांसद चुनी गई थीं. लेकिन पिछले साल उन्होंने बीजेपी पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया. कहा जाता है कि जब फुले ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला था, तब बीएसपी ने उन्हें 2019 के लिए टिकट का ऑफर दिया था.
लेकिन बीजेपी छोड़ने के बाद बीसपी ने उन्हें पार्टी में लेने से इनकार कर दिया. इसके बाद फुले ने एसपी चीफ अखिलेश यादव से भी मुलाकात की. लेकिन चर्चा है कि मायावती के दबाव के चलते अखिलेश ने भी फुले को टिकट देने में असमर्थता जता दी. इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गईं.
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